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Class 9 Science Subjective Question Chapter - 14 प्राकृतिक सम्पदा

Class 9 Science Subjective Question Chapter – 14 प्राकृतिक सम्पदा

                                                                      -:  अतिलघु उत्तरीय प्रश्न  :-

 

प्रश्न:1 मिट्टी के अवयवों को लिखें।

उत्तर:-  मिट्टी के अवयव ये हैं—

(i) जल

(ii) वायु

(iii) कार्बनिक पदार्थ

(iv) अकार्बनिक पदार्थ

(v) खनिज

 

प्रश्न:2 मिट्टी में जल कैसे रिसता है?

उत्तर:-  मिट्टी के कणों के बीच रिक्त स्थानों के कारण।

 

प्रश्न:3  क्या वायु प्राकृतिक संसाधन है?

उत्तर:-  हाँ

 

प्रश्न:4  हरितगृह प्रभाव किस गैस के कारण होता है ?

उत्तर:-  कार्बन डाइऑक्साइड गैस के कारण

 

प्रश्न:5 जल प्रदूषण की परिभाषा लिखें।

उत्तर:-  प्राकृतिक या मानव-जनित कारणों से जल की गुणवत्ता में गिरावट को जल प्रदूषण कहा जाता है।

 

प्रश्न:6 पाँच जल प्रदूषकों के नाम लिखें।

उत्तर:-  पाँच जल-प्रदूषक ये हैं—

(i) यूरिया

(ii) अमोनियम सल्फेट

(iii) सीसा

(iv) मरकरी

(v) आणविक एवं नाभिकीय ऊर्जा।

 

प्रश्न:7 वायुमण्डल के उस प्रक्षेत्र का नाम लिखें जहाँ ओजोन पाया जाता है।

उत्तर:-  समताप मण्डल या स्ट्रेटोस्फियर।

 

प्रश्न:8 अम्ल-वर्षा में उपस्थित अम्लों के नाम लिखें।

उत्तर:-  सल्फर डाइऑक्साइड तथा नाइट्रोजन।

 

प्रश्न:9  प्लास्टिक के कारण प्रदूषण को रोकने के उपाय बतायें।

उत्तर:-  प्लास्टिक का पुनर्चक्रण करके प्लैस्टिक को दूसरे रूप में इस्तेमाल करना तथा पॉलिथीन की थैलियों के विकल्प के रूप में पूरी तरह जैव निम्नीकरणीय (Bio-gradable) होने वाले प्लैस्टिक का विकास करना।

 

प्रश्न:10 भूमि प्रदूषण की परिभाषा लिखें।

उत्तर:-  मिट्टी से उपयोगी घटकों का हटना और दूसरे हानिकारक पदार्थों का मिट्टी में मिलना, जिससे मिट्टी की उर्वरता नष्ट हो, उसे भूमि प्रदूषण या मृदा प्रदूषण कहते हैं।

 

प्रश्न:11 दो उर्वरकों के नाम लिखें।

उत्तर:-  (i) हरित उर्वरक     (ii) कम्पोस्ट।

 

प्रश्न:12 मिट्टी का अपरदन रोकने के उपाय बतायें।

उत्तर:-  मिट्टी के अपरदन को रोकने के उपाय–

(i) मिट्टी की सतह पर अधिक-से-अधिक पौधे लगाना चाहिये

(ii) खेत को खाली नहीं छोड़ना चाहिये।

 

प्रश्न:13 बी० ओ० डी० (BOD) किस प्रक्रिया का छोटा रूप है?

उत्तर:-  BOD-Biological Oxygen Demand (बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमाण्ड)।

 

प्रश्न:14 हाइड्रोकार्बन को जलाने (Combustion) से हमें क्या प्राप्त होता है ?

उत्तर:-  हाइड्रोकार्बन को जलाने से कार्बन डाइऑक्साइड और जलवाष्प तथा ऊष्मा भी प्राप्त होता है।

 

प्रश्न:15 CNG क्या है?

उत्तर:-  CNG संपीडित प्राकृतिक गैस या Compressed Natural Gas है।

 

प्रश्न:16 सीसा-युक्त पेट्रोल में सीसा (Pb) का कौन-सा यौगिक मिला होता हैं ?

उत्तर:-  टेट्राइथाइल (C2H5)4

 

प्रश्न:17 वायुमंडल में ऑक्सीजन किस विधि द्वारा प्राप्त होता है ?

उत्तर:-  प्रकाश संश्लेषण

 

प्रश्न:18  मिट्टी का अपरदन मुख्य रूप से किसके द्वारा होता है ?

उत्तर:-  वायु और वर्षा

 

प्रश्न:19 वायुमंडल के मुक्त नाइट्रोजन को नाइट्रोजन के यौगिक में परिणत होने की क्रिया को क्या कहते हैं?

उत्तर:-  अमोनीकरण

 

प्रश्न:20 अमोनिया का नाइट्रोजन तथा नाइट्रइट में परिणत होने की क्रिया को क्या कहते हैं?

उत्तर:-  अमोनीकरण

 

प्रश्न:21 नाइट्रेट के लवण का नाइट्रोजन गैस में परिणत होने की प्रक्रिया को क्या कहते हैं?

उत्तर:-  अमोनीकरण

 

प्रश्न:22 पृथ्वी पर पशु एवं वनस्पतिजगत के द्वारा का मुख्य कारण क्या है?

उत्तर:-  प्रदूषण

 

प्रश्न:23 ओजोन परत का हास किस कार्बनिक यौगिक द्वारा होता

उत्तर:-  क्लोरोफ्लोरोकार्बन

 

प्रश्न:24 वायु प्रदूषण का मुख्य कारण क्या है?

उत्तर:-  यातायात और औद्योगिकीकरण में वृद्धि

 

प्रश्न:25 कोहरा और धुआँ के मिश्रण को क्या कहते

उत्तर:-  धूम कोहरा

 

 

                                                                           -:  लघु उत्तरीय प्रश्न  :-

 

प्रश्न:1  वायुमण्डल का कौन-सा क्षेत्र पुश्वी से निकट है और इसका क्या महत्व है ?

उत्तर:-  पृथ्वी तल से लगभग 10-12 किलोमीटर की ऊँचाई तक वायुमंडल के क्षेत्र को क्षोभमंडल या ट्रोपोस्फीयर कहते हैं। यह वायुमंडल का पृथ्वी के सर्वाधिक निकट का क्षेत्र है जिसमें मनुष्य, अन्य जीव-जंतु तथा वनस्पति जीवित रहते हैं तथा फलते-फूलते हैं। वायुमंडल के इसी क्षेत्र में हम साँस लेते हैं। सामान्य व्यक्ति को विभिन्न कार्यकलापों के लिए प्रतिदिन 250 से 265 kg वायु की आवश्यकता होती है जो वायुमंडल के इसी क्षेत्र से आती है। जीवों के जीवित रहने के अतिरिक्त वायु एक संचार का माध्यम भी है।

 

प्रश्न:2 जल जीवन के लिये अनिवार्य है, इस कथन की पुष्टि करें।

उत्तर:-  जल मानव जीवन का मुख्य आधार है। मानव को जीवित रखने के लिये वायु के बाद दूसरा स्थान जल का ही है। जल के बिना जीवन संभव नहीं है और न ही इसका कोई विकल्प है। आधुनिक समय में सिंचाई, जल-विद्युत उत्पादन, मत्स्यपालन, जल-यातायात तथा उद्योग आदि के लिये जल का प्रयोग किया जाता है, इसके अलावा जल का इस्तेमाल पीने, नहाने, भोजन बनाने, कपड़ा साफ करने आदि दैनिक कार्यों के लिये भी किया जाता है। जल से ही मानवीय क्रियाकलापों का निष्पादन होता है, इसीलिये कहा जाता है कि जल मानव जीवन के लिये एक अनिवार्य और प्रकृति का दिया हुआ मनुष्य के लिये एक नायाब तोहफा है।

 

प्रश्न:3 मिट्टी की उर्वरता से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर:-  मिट्टी में मौजूद सूक्ष्म जीव और केंचुए होते हैं जो मिट्टी के पोषक तत्वों के पुनर्चक्रण में सहायक होते हैं जिससे पैदावार में बढ़ोतरी होती है।

 

प्रश्न:4 उदाहरण के साथ नवीकरणीय और अनवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों को समझायें।

उत्तर:- 

नवीकरणीय ऊर्जा संसाधन (Renewable Energy Resources) :- वे संसाधन जो एक बार लगातार उपयोग होने पर पुनः स्वत: उत्पन्न हो जाते हैं, नवीकरणीय ऊर्जा संसाधन कहलाते हैं। वायु, सौर ऊर्जा, जल और वन नवीकरणीय संसाधन हैं।

अनवीकरणीय ऊर्जा संसाधन (Non renewable Energy Resources) कहलाते :– वे संसाधन जो एकबार समाप्त हो जाने पर पुनः जल्दी उत्पन्न नहीं होते, अनवीकरणीय ऊर्जा संसाधन हैं। उदाहरण के लिये कोयला और पेट्रोलियम।

 

प्रश्न:5 कुछ वायु प्रदूषकों का उल्लेख करें।

उत्तर:-  वायु को पेट्रोल वाहन प्रदूषित करते हैं, वायुमण्डल में कल-कारखानों के चिमनियों द्वारा छोड़े गये धुएँ, थर्मल पावर स्टेशनों, तेल-शोधक कारखानों कोयला खदानों एवं पेट्रोलियम आदि के दहन के धुएँ वायुमण्डल में पहुँचकर वायु को प्रदूषित करते हैं। वायुमण्डल में सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड कार्बन मोनोक्साइड, अधजले हाइड्रोकार्बन और सीसा मुख्य रूप से वायु में मिलकर इसे प्रदूषित करते हैं।

 

प्रश्न:6 ओजोन परत हमारे लिये क्यों उपयोगी है ?

उत्तर:-  ओजोन की परत, पराबैंगनी विकिरण का अवशोषण करती है तथा सूर्य की किरणों में उपस्थित पराबैंगनी विकिरण को पृथ्वी तक पहुँचने से रोकती है। ये पराबैंगनी विकिरण लघु तरंगदैर्घ्य अथवा उच्च आवृत्ति की होती है जो हमारे शरीर में बहुत गहराई तक प्रवेश कर सकती है। यदि ओजोन आवरण हटा दिया जाएगा तो पराबैंगनी विकिरण, पृथ्वी तक पर्याप्त मात्रा में पहुँच जायेंगे जो जैव शरीर के उन अणुओं को नष्ट कर देंगे जो जीवन के लिए आवश्यक हैं। इसके फलस्वरूप मानव को त्वचा कैंसर, जलन तथा मोतियाबिंद जैसी व्याधियाँ व आनुवंशिक रोग हो जायेंगे।

 

प्रश्न:7 जल प्रदूषकों की एक सूची बनायें।

उत्तर:- 

(i) कृषि क्षेत्र में रासायनिक उर्वरकों के उपयोग से जल का प्रदूषण होता है, खासकर अमोनियम सल्फेट, यूरिया, नाइट्रोजन और फॉस्फोरस भी जल को प्रदूषित करते हैं।

(ii) नगरीय क्षेत्रों से सीवेज, गंदे जल इत्यादि जल को प्रदूषित करते हैं।

(iii) विभिन्न कारखानों से निकलनेवाले रासायनिक प्रदूषक तथा कई प्रकार के धात्विक पदार्थ, जैसे सीसा, मरकरी इत्यादि नदियों, झीलों एवं तटीय सागरों के जल को प्रदूषित करते हैं।

(iv) समुद्र में खनिज तेल के उत्पादन से जल प्रदूषित होता है।

(v) आणविक एवं नाभिकीय ऊर्जा के प्रयोग से रेडियो सक्रिय पदार्थ जल को प्रदूषित कर देते हैं।

 

प्रश्न:8 वायुमण्डल में कार्बन मोनोक्साइड का प्रभाव बतायें।

उत्तर:-  कार्बन मोनोक्साइड वाहनों के धुएँ द्वारा जनित वायु प्रदूषक है। वायुमण्डल में इसका बहुत ही नकारात्मक प्रभाव पड़ता है जो मानवीय जीवन के लिये खतरा उत्पन्न करता है, वाहनों के धुएँ में मौजूद कार्बन मोनोक्साइड शरीर में प्रवेश कर रक्त में मिल जाता है और हीमोग्लोबिन से अभिक्रिया कर कार्बोक्सी हीमोग्लोबिन का निर्माण करता है। कार्बोक्सी हीमोग्लोबिन पर्याप्त मात्रा में रक्त में ऑक्सीजन का अवशोषण नहीं होने देता, जिसके अनेक दुष्प्रभाव होते हैं। अतः कार्बन मोनोक्साइड का वायुमण्डल में नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

 

प्रश्न:9 ओजोन ऊपरी वायुमण्डल में कैसे बनता है ?

उत्तर:-  ओजोन ऑक्सीजन का ही एक रूप है जिसमें ऑक्सीजन के तीन परमाणु होते हैं।

इसका निर्माण वायुमण्डल की ऊपरी परत में पराबैंगनी प्रकाश के द्वारा ऑक्सीजन गैस के टूटने से होता है।

पराबैंगनी ऊर्जा + 3O2 → 2O3

ओजोन वायुमण्डल की बाहरी परत है जो हमें हानिकारक पराबैंगनी विकिरण से सुरक्षित रखती है।

 

प्रश्न:10  नाइट्रिक ऑक्साइड और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड वातावरण में कैसे बनता है ?समीकरण देकर बतायें।

उत्तर:- 

(i) नाइट्रिक ऑक्साइड–N2+O2 → 2NO

(ii) नाइट्रोजन डाइऑक्साइड- 2NO + O2→ 2NO2

 

प्रश्न:11 बी० ओ० डी० ( BOD ) का उल्लेख करें।

उत्तर:-  बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमाण्ड या BOD-रासायनिक उर्वरकों में मुख्य रूप

स्ले यूरिया (NH2CONH2) अमोनियम सल्फेट [(NH4)2SO4] आदि का प्रयोग होता है।

जलप लाइट्रोजन और फॉस्फोरस की मात्रा बढ़ने से जल में शैवाल की वृद्धि होती है। शैवाल के मासे पर यह बैक्टीरिया द्वारा सड़ता है। इस सड़न प्रक्रिया में जल में घुले ऑक्सीजन का उपयोग होता है जिससे जल में घुले ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है, इस प्रक्रिया को बायोलॉजिकल ऑक्सीजन हिमाण्ड (Biological Oxygen Demand) कहा जाता है। जल में ऑक्सीजन की मात्रा घटने से जीव-जन्तुओं की मृत्यु हो जाती है।

 

प्रश्न:12  समीकरण देकर बतायें कि कैसे वायुमण्डल में सल्फ्यूरिक अम्ल बनता है?

उत्तर:-  वायुमण्डल में सल्फ्यूरिक अम्ल निम्नलिखित अभिक्रिया के फलस्वरूप बनते हैं..

S+O2 → SO2

2SO2+O2 → 2SO3

SO3+H2O → H2SO4

 

प्रश्न:13  किन कारणों से ओजोन के परत क्षीण होते हैं ?

उत्तर:-  ओजोन के क्षय होने का मुख्य कारण मनुष्य द्वारा बनाये गये क्लोरो-फ्लोरो-कार्बन यौगिक है, ये बहुत स्थायी होते हैं जो वायुमण्डल में पहुँच जाते हैं जहाँ ओजोन परत होती है, जिसे समताप मण्डल कहते हैं। यही सूर्य से आते पराबैंगनी किरणों को तोड़कर क्लोरीन बनाती हैं। इस क्लोरीन का एक परमाणु 1 लाख ओजोन परमाणुओं को नष्ट करती है।

 

प्रश्न:14 कार्बन-चक्र का वर्णन करें।

उत्तर:-  सभी जीव कार्बन आधारित कार्बनिक यौगिकों जैसे प्रोटीन कार्बोहाइड्रेट, वसा, विटामिन

कार्बन-चक्र

और न्यूक्लिक (Nucleic) अम्ल पर आधारित होता है। वायुमंडल में कार्बल मुख्यत: कार्बन डाइऑक्साइड के रूप में विद्यमान रहता है। कार्बन डाइऑक्साइड में जल भी घुला पाया जाता है। ज्यादातर कार्बन डाइऑक्साइड जैविक जगत में प्रकाशसंश्लेषण द्वारा प्रवेश करता है। प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया द्वारा पेड़-पौधे क्लोरोफिल की उपस्थिति में Co²को ग्लूकोस में बदल देते हैं। सलूकोस का उपयोग जीवित प्राणियों में भोजन के रूप में अथवा ऊर्जा प्रदान करने की प्रक्रिया होता है। समुद्री जल में घुले कार्बन डाइऑक्साइड के द्वारा चूना पत्थर (कैल्सियम कार्बोनेट) में बने चट्टान का निर्माण होता है। समुद्री जीव-जंतुओं के बाहरी और भीतरी कंकाल भी कार्बोनेट लवणों के बने होते हैं। कई विधियों द्वारा CO² वायुमंडल में पुनः लौटता है,

जिनमें अनलिखित

( i ) जीव-जंतुओं के श्वसन-क्रिया त्याग किए गए कार्बन डाइऑक्साइड वायुमंडल में लौट जाता है। श्वसन में जीव-जंतु ऑक्सीजन ग्रहण करते हैं और कार्बन ऑक्साइड का त्याग करते हैं।

( ii ) वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बहुत बड़े पैमाने पर जीवाश्म ईंधनों को जलाने से तथा ज्वालामुखी के विस्फोट से होता है। इस प्रकार के कार्बन-चक्र से कार्बन डाइऑक्साइड की प्रतिशत मात्रा वायुमंडल में सदैव बनी रहती है।

 

प्रश्न:15  मिट्टी प्रदूषण रोकने के कोई तीन उपाय बतायें।

उत्तर:-  मिट्टी प्रदूषण को रोकने के लिये तीन उपाय ये हैं

(i) कूड़े-कचरों को नष्ट करना :- कूड़े-कचरे के कुप्रभाव से पर्यावरण एवं मानव को बचाया जा सकता है। इन्हें नष्ट करने के लिये एक सहज विधि भस्मीकरण है जिससे इसकी मात्रा करीब 80% कम की जा सकती है। इस विधि में कूड़े-कचरों को भट्ठी में डालकर जलाया जाता है। किन्तु इस क्रिया में वायु प्रदूषण न हो इसका ध्यान रखना चाहिये।

(ii) कूड़े-कचरों से कम्पोस्ट बनाना :- नगरीय कूड़े-कचरों को भूमि में दबाकर, सड़ा-गलाकर उत्तम उर्वरक बनाया जा सकता है।

(iii) कचरों का पुनर्चक्रण :- कचरे में स्थित रद्दी कागज से कागज, लोहे की कतरनों से स्टील, ऐलुमिनियम के छोटे-छोटे टुकड़ों से पुन: ऐलुमिनियम, व्यर्थ प्लास्टिक से प्लास्टिक बनाने आदि की समुचित व्यवस्था होनी चाहिये।

 

प्रश्न:16  प्रस्वेदन क्या है?

उत्तर:-  जल का कुछ भाग प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में भोजन बनाने में प्रयुक्त होता है तथा शेष जल प्रस्वेदन की क्रिया द्वारा वायुमंडल में छोड़ दिए जाते हैं। जानवर जलाशयों से जल पीते हैं और उनके शरीर में जल वाष्यीकृत होकर वायुमंडल में चला जाता है इस तरह जल चक्र चलता है।

 

प्रश्न:17 प्रकाशसंश्लेषण-प्रक्रिया का क्या महत्त्व है?

उत्तर:-  प्रकाशसंश्लेषण प्रक्रिया के द्वारा पौधे अपना भोजन तैयार करते हैं। इस क्रिया से वायुमंडल में ऑक्सीजन की मात्र तथा शुद्धता बनी रहती है।

 

प्रश्न:18  अमानीकरण किसे कहते हैं?

उत्तर:-  जब जंतु या पौधे की मृत्यु हो जाती है तो मिट्टी में मौजूद अन्य बैक्टीरिया मरे हुए पौधे में स्थित प्रोटीन को अमोनिया में बदल देते हैं। इस प्रक्रिया को अमोनीकरण कहते हैं।

    

 

                                                                            -:  दीर्घ उत्तरीय प्रश्न  :-

 

प्रश्न:1  प्रदूषण की परिभाषा लिखें। वातावरण में प्रदूषक क्या-क्या हैं और उनके स्रोत क्या हैं ? वायु प्रदूषण को रोकने के उपाय बताएं।

उत्तर:-  पर्यावरण के अवांछित गुणों में वृद्धि तथा वांछित गुणों में कमी को ही प्रदूषण कहते हैं अथवा पर्यावरण के गुणों में अवांछित परिवर्तन जिनसे जीवों तथा अंतत: मानव को हानि पहुँचती है, प्रदूषण कहलाता है।

 

वातावरण में मुख्य रूप से तीन प्रदूषक हैं-

(i) वायु प्रदूषण :– वायुमण्डस में पायी जानेवाली गैसें एक निश्चित मात्रा एवं अनुपात होती हैं। इस मात्रा एवं अनुपात में ताल या कमी हो जाने पर वायु प्रदूषण की समस्या उत्पन्न होती है। कई वर्षों से वायु की गुणवत्ता में कमी आयी है। वायु की गुणावता की जाँच-पड़ताल के पश्चात यातायात और औद्योगीकरण में वृद्धि को ही वायु प्रदूषण का मुख्य कारण बताया जाता है।

(ii) जल प्रदूषण :– वर्तमान आधुनिक समय में तकनीकी विकास के कारण जल का उपयोग सिंचाई, जल-विद्युत उत्पादन, मत्स्यपालन, जल-यातायात तथा उद्योग आदि के लिये किया जा रहा है। आज जल की खपत मानव की प्रगतिशील का द्योतक बन गया है। फलतः जल की माँग में उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही है, लेकिन साथ ही जल की गुणवत्ता में भारी गिरावट भी आ रही है, दिन-प्रतिदिन जल प्रदूषित होता जा रहा है। जल का प्रदूषण कृषि क्षेत्र में रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से होता है। साथ ही शहर का गंदा पानी नालियों के जरिये नदी-तालाब में जाकर गिरता है जिससे जल प्रदूषित होता है, विभिन्न कारखानों से निकले रासायनिक प्रदूषक तथा कई प्रकार के धात्विक पदार्थ जल में मिलकर इसे दूषित कर देते हैं। समुद्र में खनिज तेल के उत्पादन से खुदायी से एवं अन्य विभिन्न दुर्घटनाओं से जल में तेल का फैलाव बढ़ता जा रहा है जिससे समुद्री जल प्रदूषित होता है। इसके अतिरिक्त आणविक एवं नाभिकीय ऊर्जा के प्रयोग से रेडियोसक्रिय पदार्थ जल को प्रदूषित कर देते हैं।

(iii) भूमि प्रदूषण :– आधुनिक कृषि में उर्वरकों और पीड़कनाशियों का उपयोग हो रहा है जिससे मिट्टी में पाये जाने वाले सूक्ष्मजीव और केंचुए मर जाते हैं, जो मिट्टी के पोषक तत्वों के पुनर्चक्रण में सहायक होते हैं। उर्वरक एवं पीड़कनाशियों के लंबे समय तक उपयोग करने से उपजाऊ मिट्टी जल्द बंजर भूमि में परिवर्तित हो जाती है। मिट्टी में अकार्बनिक उर्वरकों जैसे NaNO³ और (NH⁴)²SO⁴ मिट्टी को प्रदूषित करते हैं। औद्योगीकरण, नगरीकरण एवं तीव्र जनसंख्या वृद्धि के कारण कूड-कचड़ो की मात्रा में निरंतर वृद्धि हो रही है। इसमें एक ओर मानव द्वारा उपयोग में लाये गये पदार्थ जैसे कागजों कपड़ा, प्लास्टिक, लकड़ी, धातु के टुकड़े, सब्जियों एवं फलों के छिलके आदि सम्मिलित हैं, तो दूसरी ओर उद्योगों से निकले तरल पदार्थ एवं ठोस कचरे, जैसे धातु के छोटे-छोटे टुकड़े रासायनिक पदार्थ, अनेक विषैले ज्वलनशील पदार्थ, अम्लीय तथा क्षारीय पदार्थ, राख आदि सम्मिलित हैं। इसके अतिरिक्त खदानों का मलवा एवं कृषि से प्राप्त कचरे आदि खुले में फेंक देने से पर्यावरण प्रदूषण सहित भूमि प्रदूषण भी होता है।

 

वायु प्रदूषण को रोकने के निम्नलिखित उपाय हैं-

(i) पेट्रोल वाहनों में ईंधन के रूप में सीसारहित पेट्रोल का इस्तेमाल करना चाहिये।

(ii) वन-विनाश रोकना तथा नगरों को हरा-भरा बनाना चाहिये।

(iii) संपीडित प्राकृतिक गैस या कम्प्रेस्ड नेचुरल गैस का अन्य वाहनों में इस्तेमाल करना चाहिये।

(iv) धूमरहित चूल्हे का उपयोग करना चाहिये।

(v) घरों तथा सड़कों के किनारे अत्यधिक पेड़ लगाना चाहिये।

 

प्रश्न:2 जल प्रदूषण के मुख्य स्रोत क्या हैं ? जल प्रदूषण रोकने के उपाय बतायें।

उत्तर:-  जल प्रदूषण के स्रोत या कारण-

(i) जल का प्रदूषण कृषि-क्षेत्र में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग से होता है। वर्षा-जल इन रसायनों को अपने में घुलाकर समीप में स्थित झीलों, तालाबों तथा नदियों में पहुँचा देता है जिससे इनका जल प्रदूषित हो जाता है।

(ii) नगरीय क्षेत्रों से सीवेज, भारी मात्रा में कूड़ा-कचरा, नगरों में अवस्थित कारखानों के गंदे जल की नालियों से, जल का प्रदूषण होता है। प्रदूषित जल के सेवन करने से हैजा, पीलिया, टायफायड आदि रोग होते हैं।

(iii) विभिन्न कारखानों से निकलनेवाले रासायनिक प्रदूषक तथा कई प्रकार के धात्विक पदार्थ, जैसे सीसा (Pb) और मरकरी (Hg) आदि नदियों, झीलों एवं तटीय सागर के जल को प्रदूषित करते हैं। जल में उपस्थित सीसा तथा मरकरी एन्जाइम से अभिक्रिया कर एन्जाइम की कार्य-क्षमता को कम करता है जिससे कई बीमारियाँ होती हैं। सीसा तंत्रिका तंत्र को भी प्रभावित करती है।

(iv) समुद्र में खनिज तेल के उत्पादन से खुदायी से एवं अन्य विभिन्न दुर्घटनाओं से जरा में तेल का फैलाव बढ़ता जा रहा है तथा समुद्र जल प्रदूषित होता जा रहा है जिससे अधिकांश

(v) आणविक एवं नाभिकीय ऊर्जा के प्रयोग से रेडियोसक्रिय पदार्थ जल को प्रदूषित कर सागरीय जीव मर जाते हैं। देते हैं। अपेक्षित हैं

 

जल प्रदूषण रोकने के उपाय –

जल जीवनदायी है, लेकिन धीरे-धीरे प्रदूषण के कारण यह मृत्यु का कारण बनता जा रहा है। अत: इसे दूषित होने से बचाना है जिसके लिये निम्नांकित उपहार

(i) हर व्यक्ति को घरों से निकलनेवाले कचरे को निर्धारित स्थानों पर फेंकना चाहिये।

(ii) कारखानों से निकलनेवाले गंदे जल को बिना शोधित किये नदियों, झीलों या तालाबों में विसर्जित नहीं करना चाहिये।

(iii) सरकार को जल प्रदूषण के नियंत्रण से संबंधित उपयोगी एवं कारगर नियम कानून बनाने होंगे।

(iv) इस समस्या के बचने के लिये हमें आमलोगों को जल प्रदूषण एवं उसके दुष्प्रभावों से अवगत कराना होगा।

 

प्रश्न:3  हरितगृह प्रभाव और वैश्विक उष्मीकरण ( Global warming ) पर एक निबंध लिखें।

उत्तर:-  वायु की उपस्थिति के कारण पृथ्वी का ताप अनुकूल बना रहता है। पृथ्वी के ताप का नियंत्रण हरितगृह प्रभाव ( Green house effect ) के कारण होता है। हरितगृह काँच की बनी एक इमारत होती है जिसका निर्माण पौधों को ठण्डक से बचाने के लिये किया जाता है। सूर्य की किरणें काँच से होकर हरितगृह की सतह को गर्म करती हैं। काँच हरितगृह के भीतर के ऊष्मा को रोक लेता है जिससे हरितगृह के अन्दर का तापमान बाहर के तापमान से अधिक हो जाता है। ठीक इसी प्रकार वायुमण्डल में भी इस प्रकार की प्रक्रिया होती है, जिसे हरितगृह प्रभाव कहा जाता है। वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड पृथ्वी से ऊष्मा को पृथ्वी के वायुमण्डल के बाहर जाने से रोकती है जिससे रात में ताप बहुत कम नहीं हो पाता। यदि वायु में कार्बन डाइऑक्साइड गैस नहीं रहती तो रातें असामान्य रूप से ठण्डी हो जाती हैं और पृथ्वी पर जीवों का अस्तित्व कठिन हो जाता है, लेकिन दुर्भाग्यवश बड़े पैमाने पर औद्योगिकीकरण की मात्रा लगातार बढ़ती जा रही है। कार्बन डाइऑक्साइड वायु से भारी होता है और वायुमण्डल में विद्यमान रहता है और इसकी वृद्धि से वायुमण्डल में ऊष्मा की वृद्धि होती है, जिससे वैश्विक ऊष्मीकरण (Global warming) की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। अत: वैश्विक ऊष्मीकरण की स्थिति से बचने के लिये वृक्षारोपण करना चाहिये जिससे कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा हमारे वायुमण्डल में स्थिर रह सके।

 

प्रश्न:4  किन कारणों से ओजोन के परत क्षीण होते जा रहे हैं ? ओजोन के परत के क्षीण होने से जन-जीवन कैसे प्रभावित होता है ?

उत्तर:-  ओजोन के परत क्षीण होने के कारण लघु उत्तरीय प्रश्न संख्या-13 का उत्तर देखें। ‘ओजोन पस्त के क्षीण होने से जन-जीवन पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ता है-

(i) त्वचीय कैंसर :- ओजोन परत के क्षय होने से त्वचीय कैंसर होता है।

(ii) वैश्विक वर्षा :- ओजोन परत के क्षय होने से वैश्विक वर्षा होती है, इससे कहीं-कहीं खूब बारिश होती है, कहीं सुखाड़ हो जाता है।

(iii) पारिस्थितिक असंतुलन :-ओजोन परत के क्षय होने से पारिस्थितिकीय असंतुलन हो जाता है जिससे वायु, जल, भूमि असंतुलन गड़बड़ा जाता है।

(iv) आँखों तथा प्रतिरक्षित तंत्र को हानि :- ओजोन के क्षरण से मोतियाबिन्द आँखों में जलन तथा आँखों की रोशनी खत्म होती है इत्यादि।

 

प्रश्न:5  वायु प्रदूषण और जल प्रदूषण के संदर्भ में एक निबंध लिखें और किसी अखबार या पत्रिका में छपने के लिये भेजें।

उत्तर:- 

वायु प्रदूषण :– प्रकृति में वायु अहम भूमिका निभाता है। वायु के बिना सजीकों के बीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है, वायु के मुख्य अवयव जैसे ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोक्साइड, हाइड्रोजन, जलवाष्प तथा कुछ निष्क्रिय गैसें न्यूयोन, हीलियम, ऑर्गन होते हैं। वायुमण्डल में पायी जानेवाली जैसे एक निश्चित मात्रा एवं अनुपात में होती हैं। इस मात्रा एवं अनुपात में वृद्धि या कमी होने से वायु प्रदूषण की समस्या उत्पन्न होती है। कई वर्षों से वायु की गुणवत्ता में कमी आयी है। वायु में हानिकारक तत्व मिल जाने से वायु प्रदूषण होता है। कल-कारखानों के चिमनी द्वारा निकलते धुएँ वायु में मिल जाते हैं जिससे वायु प्रदूषण की समस्या बढ़ जाती है। वायु के प्रदूषण होने के मुख्य कारणों में वाहनों से निकले धुएँ, उन धुओं में कार्बन मोनोकसाइड, अधजले हाइड्रोकार्बन, नाइट्रोजन के विभिन्न ऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड और सीसा मुक्त हैं जो वायु को प्रदूषित करते हैं। वर्तमान समय में उद्योगों की बढ़ोतरी से उसकी चिमनियों से निकले जहरीले धुएँ (गैसें), थर्मल पावर स्टेशनों, तेल शोधक कारखानों, कोयला खदानों एवं पेट्रोलियम आदि के दहन के धुएँ से वायुमण्डल में पहुँचकर वायु को प्रदूषित कर देते हैं। वायु प्रदूषण संसार के विकसित देशों के साथ-साथ अल्पविकसित देशों तथा विकासशील देशों के लिये खतरा बन चुका है, क्योंकि आज के औद्योगिक प्रधान समाज में वायु प्रदूषित ज्यादा हो रहा है जिससे जीवन खतरे में जाता है। वायु प्रदूषण जन-जीवन के लिये खतरनाक है, अत: हमलोगों को इसके प्रति सचेत रहना होगा।

जल प्रदूषण :- प्राकृतिक या मानवजनित कारणों से जल की गुणवत्ता में गिरावट को जल प्रादूषण कहा जाता है। आधुनिक समय में तकनीकी विकास के कारण जल का उपयोग सिंचाई, जल-विद्युत उत्पादन, मत्स्यपालन, जल-यातायात तथा उद्योग आदि के लिये किया जा रहा है, आज जल की खपत. मानव की प्रगतिशीलता का द्योतक बन गया है। फलतः जल की माँग में उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही है, लेकिन साथ ही जल की गुणवत्ता में भारी गिरावट भी हो रही है। दिन-प्रतिदिन जल प्रदूषित होता जा रहा है। भारत में उपलब्ध कुल जल का लगभग 70% जल प्रदूषित है। जल प्रदूषण के स्रोत या कारण को निम्न बिंदुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-

(i) रिहायशी घरों से निकलनेवाले मल-जल में कई प्रकार के रोगाणु पनपते हैं, ऐसे मल-जल के जलस्रोतों में मिलने से जल प्रदूषित होता है।

(ii) कारखानों से निकलनेवाले ऐसे औद्योगिक बहि:स्राव जिनमें हानिकारक रसायन तथा जहरीली धातु होते हैं, के जलस्रोतों में मिलने से जल प्रदूषित होता है।

(iii) अस्पतालों से निकलनेवाले अपशिष्ट, शल्यक्रिया द्वारा निकाले गये बेकार अंग या सम्पूर्ण मृत शरीर जलस्रोत में मिलकर उसे प्रदूषित करते हैं।

(iv) रासायनिक खाद तथा कीटनाशक रसायन वर्षाजल के साथ खेतों से बहकर नदी, तालाब के जल में मिलकर उसे प्रदर्शित करते हैं। वास्तव में जल प्रदूषण होने से पारिस्थितिक तंत्र असंतुलित हो जायेगा और जन-जीवन खतरे में पड़ जाएगा। इसके अतिरिक्त प्रदूषण की समस्याओं में वायु प्रदूषण और जल प्रदूषण एक महत्वपूर्ण रूप से करना होगा। ताकि वायु आर जल प्रदूषण को कम-से-कम करके पारिस्थितिक तंत्र को संतुलित किया जा सके।

 

प्रश्न:6 वायुमण्डल को सीसा (Pb) कैसे प्रभावित करते हैं।

उत्तर:-  वायुमण्डल में सीसा (Pb) का बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ता है, जल में उपस्थित सीसा एन्जाइम से अभिक्रिया कर एन्जाइम की कार्य-क्षमता को कम करता है जिससे कई बीमारियाँ होती हैं। सीसा तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है। हवा को घातक रूप से दूषित करनेवाला द्रव्य सीसा (Pb) भी है। शहरों के वातावरण में पाया जानेवाला 90% सीसा, सीसायुक्त पेट्रोल द्वारा चलनेवाले वाहनों से आता है, पेट्रोल में टेट्राइथाइल लेड (C2H5)4 Pb मिलाते हैं, जिससे गाड़ी में ‘नाकिंग’ कम होता है। सीसे की मात्रा वायु में अधिक हो जाने से जिगर रक्त-प्रवाह, मस्तिष्क और प्रजनन-क्षमता पर घातक प्रभाव पड़ता है। इस प्रकार सीसा वायुमण्डल में एक प्राणघातक द्रव्य है।

 

प्रश्न:7  मिट्टी के अवयव क्या हैं ? मिट्टी का निर्माण कैसे होता है

उत्तर:-  मिट्टी के निम्नलिखित अवयव हैं-

(i) जल :-  मिट्टी के कणों के बीच रिक्त स्थानों में और उनकी बाहरी सतह पर जल उपस्थित रहता है।

(ii) वायु :-  मिट्टी के कणों के बीच स्थित स्थान में रंध्र कहलाते हैं जिनमें जल के साथ-साथ वायु भी रहती है। इसी वायु ने पौधों की श्वसन-क्रिया चलती रहती है।

(iii) कार्बनिक पदार्थ :-  मृतजीवों (जैसे पेड़-पौधे, जीव-जन्तु और जीवाणु) के सड़ने से मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ आ जाते हैं जिन्हें ह्यूमस कहा जाता है। ह्यूमस मिट्टी को नाइट्रोजन एवं फॉस्फोरस प्रदान करता है।

(iv) अकार्बनिक पदार्थ :-  जिन पत्थरों से मिट्टी का निर्माण होता है, उनमें उपस्थित अकार्बनिक पदार्थ भी मिट्टी में मिश्रित हो जाते हैं, रासायनिक खाद एवं उर्वरक के प्रयोग से भी मिट्टी में अकार्बनिक पौष्टिक तत्व आ जाते हैं।

(v) खनिज :-  मिट्टी में उपस्थित खनिज पदार्थ पौष्टिक तत्व कहलाते हैं, जो पौधों की वृद्धि और विकास में सहायक होते हैं। इनमें हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटैशियम, कैल्सियम, मैग्नीशियम और लोहा, ताँबा, जस्ता आदि प्रमुख हैं।

 

मिट्टी बनाने में निम्नलिखित कारक काम करते हैं-

(i) सूर्य :- सूर्य पत्थरों को गर्म करता है जिससे वे प्रसारित हो जाते हैं। रात के समय पत्थर सिकुड़ जाते हैं। इससे उसमें दरार पड़ जाती है और वह टूट जाता है।

(ii) जल :- जल मिट्टी के निर्माण में दो तरीके से सहायता करता

(a) सूर्य के ताप से बनी दरार में पानी भर जाता है जो यदि जम जाता है तो वह दरार को चौड़ा कर देता है लेकिन यदि पानी बाद में जमता है तो यह दरार को और भी चौड़ा करेगा क्योंकि बहता हुआ व जमा हुआ पानी पत्थर को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ देता है।

(b) तेज गति से बहता पानी पत्थर के टुकड़ों को बहा ले जाता है जिससे टकराकर टूटकर और छोटे हो जाते हैं। इस प्रकार मिट्टी अपने मूल पत्थर के स्थान से काफी दूर पायी जाती है।

(iii) हवा :- हवा से पत्थर के टुकड़े आपस में टकराकर और भी छोटे टुकड़ों में बँट जाते है।

(iv) जीव :- जीव भी मिट्टी के बनने की प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं। लाइकेन पत्थरों की सतह पर उगते हैं जो पत्थर को चूर्ण के रूप में बदल देते हैं और मिट्टी की परत का निर्माण करते हैं। इसी प्रकार मॉस भी मिट्टी को बारीक करने का काम करते हैं।

 

प्रश्न:8  मिट्टी का अपरदन क्या है ? इसे रोकने के उपाय बतायें।

उत्तर:-  उपरिमृदा (Top soil) का वायु/जल द्वारा उड़ने अथवा दूसरे स्थान पर पहुँचना ही का अपरदन है। मृदा के महीन कण बहते हुए जल के साथ चले जाते हैं। तेज वायु भी मृदा कानो को उड़ा कर ले जाती है।

 

मृदा अपरदन को नियन्त्रित करने के उपाय-

(i) जल को अधिक मात्रा में एकत्र होने से रोका जाये।

(ii) ढलानों पर घास एवं ऐसे पौधे उगाये जायें जिनकी जड़ें बहुत गहराई तक जायें।

(iii) वायु से मृदा अपरदन को रोकने के लिए भूमि पर पौधे उगाये जायें।

(iv) पशुओं द्वारा चरी गयी भूमि पर, चारे वाले पौधे लगाये जायें।

(v) पशुओं को कम-से-कम चराया जाये।

 

प्रश्न:9 नाइट्रोजन-स्थिरीकरण क्या है ? एक विधि का वर्णन करें जिससे नाइट्रोजन प्रकृति में स्थिर होता है।

उत्तर:-  राइजोबियम जीवाणुओं आदि द्वारा स्वतंत्र नाइट्रोजन का नाइट्रेट के रूप में परिवर्तन नाइट्रोजन स्थिरीकरण कहलाता है। कुछ बैक्टीरिया, जैसे राइजोबियम, एजोटोबैक्टर तथा क्लॉस्ट्रिडियम वायुमण्डलीय नाइट्रोजन को नाइट्रेट में बदलने की क्षमता रखते हैं, ऐसे बैक्टीरियों में से कई कुछ किस्म के पौधों की जड़ों में परजीवी के रूप में होते हैं। ऐसे कुछ बैक्टीरिया मुक्तजीवी के रूप में मिट्टी में पाये जाते हैं। ये बैक्टीरिया वायुमण्डलीय नाइट्रोजन को नाइट्रेट में बदलकर मिट्टी में छोड़ देते हैं। इससे मिट्टी की उर्वराशक्ति बढ़ती है।

प्रयोग विधि :- लगातार धान उजपाने से मिट्टी में नाइट्रोजन की कमी हो जाती है जिससे मिट्टी की उर्वरता पुनः कायम करने के लिये उसमें धान की दो फसलों के बीच एक बार दलहन की फसल उगानी चाहिये। दलहन पौधे (मटर, चना, उरद आदि) फलीदार होते हैं। हमें ज्ञात है कि फलीदार पौधों की जड़ की गाँठों में राइजोबियम नामक बैक्टीरिया पाये जाते हैं। ये बैक्टीरिया वायुमण्डलीय नाइट्रोजन को नाइट्रेट में बदलकर मिट्टी में स्थापित करते हैं, जिससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति पुन: स्थापित हो जाती है। अत: उपरोक्त विधि का अध्ययन कर यह कह सकते हैं कि नाइट्रोजन प्रकृति में स्थिर होता है।

 

प्रश्न:10 नाइट्रोजन-चक्र पर एक निबंध लिखें।

उत्तर:-  नाइट्रोजन भी जैव-जीवों के उत्तकों का एक महत्त्वपूर्ण घटक है। यह प्रोटीन, एमीनो अम्ल तथा न्यूक्लिक अम्लों का आवश्यक घटक है। वायुमंडल नाइट्रोजन का समृद्ध भण्डार है। इसमें लगभग 78% नाइट्रोजन होती है, जो आणविक रूप (N²) में उपस्थित रहती है। जल भण्डारों में भी नाइट्रोजन होती है, यह जैव-जीवों द्वारा उनके तत्त्व के रूप में उपयोग में नहीं लायी जा सकती है। इनको उपयोग में लाने के लिए इनके रूप में परिवर्तन करना आवश्यक है। जैसे—नाइट्रेट; यह मुख्यत: कुछ जीवों द्वारा संभव किया जाता है। वायुमंडल में नाइट्रोजन का जीवमंडल के जैव घटकों में विशेष प्रकार के जीवाणुओं द्वारा स्थिरीकरण तथा स्वांगीकरण होता है। अन्य प्रकार के जीवाणु नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करने में समर्थ नहीं हैं। परन्तु कुछ नील हरित शैवालों में भी स्थिरीकरण का गुण होता है। यह शैवाल धान के खेतों में पायी जाती है। नाइट्रोजन स्थिरीकारक जीवाणु फलीदार फसल के पौधों की जड़ों की गाँठों में पाए जाते हैं। कुछ अफलीदार

पौधों –

जैसे— एलनस, ग्रीकगों भी नाइट्रोजन स्थिरीकरण करते हैं। मृत पौधों एवं जन्तुओं के शरीर का सूक्ष्म जीवों द्वारा अपघटन प्रक्रिया के माध्यम से नाइट्रोजन वायुमंडल में पुनः मुक्त होता है।

नाइट्रोजन स्थिरीकरण को जैव यौगिकीकरण भी कहते हैं। वायुमंडल में उपस्थित नाइट्रोजन का मृदा में स्थित नाइट्रेट भी पौधों द्वारा अवशोषित किए जाते हैं। जीवाणु तथा शैवाल किए गए स्थिरीकरण वायुमंडलीय एवं औद्योगिक प्रक्रियाओं द्वारा भी हो सकता है। आजकल औद्योगिक प्रक्रियाओं द्वारा स्थिरीकरण नाइट्रोजन की मात्रा तथा जैव प्रक्रियाओं द्वारा स्थिरीकरण नाइट्रोजन की मात्रा के लगभग बराबर हो गई है। जीवमण्डल में नाइट्रोजन चक्र में निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण चरण होते हैं। वायुमण्डल में नाइट्रोजन का स्थिरीकरण Nitrates या Nitrites के रूपों में होता है। इसका अमोनीकरण micro organisms द्वारा होता है। एक अन्य प्रकार के micro-organism नाइट्रीकरण की प्रक्रिया द्वारा इन्हें Nitrates and Nitrites में परिवर्तन करने में तथा विनाइट्रीकरण की प्रक्रिया द्वारा इन्हें आणविक Nitrogen (N²) के रूप में परिवर्तित करने में सहायता करते हैं। जीवमण्डल में नाइट्रोजन चक्र को एक आदर्श चक्र माना जाता है, क्योंकि यह चक्र वायुमंडल तथा जल भण्डारों में Nitrogen की कुल मात्रा को अपरिवर्तित रखता है। NKP तथा Urea जैसे Nitrogen युक्त रासायनिक उर्वरकों के उपयोग से भी मृदा में पोषक तत्त्व तथा नाइट्रोजन चक्र को बनाए रखने में सहायता मिलती है। आजकल Nitrogen का औद्योगिक उत्पादन तथा उर्वरकों का उपयोग तीव्र दर से बढ़ रहा है, यह दर विनाइट्रीकरण की दर से कहीं अधिक है। इस कारण आवश्यकता से अधिक Nitrogen अधिकाधिक जल भण्डारों में पहुँच जाता है। नदियों तथा झीलों में पहुंचने वाली आवश्यकता से अधिक नाइट्रोजन बहुधा शैवाल तथा अन्य वनस्पति प्लवकों की वृद्धि को बढ़ावा देती है और यह वृद्धि Fin fish तथा Shell fish जैसे महत्वपूर्ण जन्तुओं की कीमत पर पड़ती है। अन्य जलीय जीवों को भी इससे हानि पहुँचती है, क्योंकि जल में ऑक्सीजन की मात्रा घट जाती है।

 

प्रश्न:11 अम्ल-वर्षा क्या है ? अम्ल वर्षा के प्रभाव का उल्लेख करें।

उत्तर:-  वर्षा के रूप में अम्ल-मिश्रित जल का धरती पर गिरना अम्ल-वर्षा कहलाता है। अम्ल-वर्षा का जनक प्रदूषित वायु है। प्रदूषित वायु में स्थित सल्फर तथा नाइट्रोजन के ऑक्साइड हवा की नमी के साथ क्रिया करके क्रमशः सल्फ्यूरिक अम्ल (H2SO4) तथा नाइट्रिक अम्ल (HNO3) बनाते हैं। इस प्रकार बना अम्ल वर्षाजल के साथ या ठंढे प्रदेशों में बर्फ के साथ धरती पर गिरता है। इन्हें ही हम अम्ल-वर्षा कहते हैं अम्ल-वर्षा के

निम्नलिखित प्रभाव इस प्रकार हैं-

(i) नदियों, झीलों आदि के जल की अम्लीयता बढ़ जाती है, जिससे इनके जल पीने-योग्य नहीं रह जाते हैं।

(ii) अम्ल-वर्षा के कारण जलीय जंतु अपने शरीर के लवण का स्तर संतुलित नहीं रख पाते हैं, जिससे वे मरने लगते हैं।

(iii) अम्लीयता बढ़ने के कारण धरती की मृदा अम्लीय हो जाती है, जिसका असर मृदा के सूक्ष्मजीवों और पौधों पर पड़ता है।

(iv) अम्ल-वर्षा के कारण मृदा के पोषक तत्त्वों का नाश होता है।

(v) अम्ल-वर्षा से पत्थर के बने ऐतिहासिक स्मारकों कलाकृतियों, भवनों आदि को क्षति पहुँचती है।

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