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Class 10 History V.V.I Subjective Questions & Answer Chapter - 1 यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय

Class 10 History V.V.I Subjective Questions & Answer Chapter – 1 यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय

                                             ( 2 – Marks Questions )

 

प्रश्न:1 यूरोपीय इतिहास में ‘ घेटो ‘ का क्या महत्व है ?

उत्तर – यह शब्द मध्य यूरोपीय देशों में यहूदी बस्ती के लिए प्रयोग किया जाता था । आज की भाषा में यह एक धर्म , प्रजाति या समान पहचान वाले लोगों को दर्शाती है । घेटोकरण मिश्रित व्यवस्था के स्थान पर एक सामुदायिक व्यवस्था थी ; जो सामुदायिक दंगों को देशी रूप देते थे ।

 

प्रश्न:2 गैरीबाल्डी के कार्यों की चर्चा करें ।

उत्तर – इतिहास गैरीबाल्डी को इटली के एकीकरण के क्रम में दक्षिणी इटली के रियासतों का एकीकरण करने हेतु याद करता है । प्रारंभ में वह मेजिनी के विचारों का समर्थक था , किन्तु बाद में काबूर से प्रभावित हो संवैधानिक राजतंत्र का पक्षधर बन गया । गैरीबाल्डी पेशे से नाविक था । उसने कर्मचारियों तथा स्वयंसेवकों की सशस्त्र सेना का गठन कर इटली के प्रांत सिसली तथा नेपल्स पर आक्रमण कर विजय प्राप्त की । गैरीबाल्डी ने यहाँ विक्टर इमैनुअल के प्रतिनिधि के रूप में सत्ता सम्भाली । तत्पश्चात गैरीबाल्डी विक्टर इमैनुअल से मिला और दक्षिणी इटली के जीते गये सम्पूर्ण क्षेत्र एवं संपत्ति उसे सौंप दी । गैरीबाल्डी ने विक्टर इमैनुअल द्वारा दक्षिण क्षेत्र के शासक बनने के निमंत्रण को ठुकरा दिया और कृषि कार्य करना स्वीकार किया ।

                           

                                               ( 5 – Marks Questions )

 

प्रश्न:1 यूनानी स्वतंत्रता आन्दोलन का संक्षिप्त विवरण दें ।

उत्तर – यूनान का अपना गौरवशाली अतीत रहा है । यूनानी सभ्यता की साहित्यिक प्रगति , विचार , दर्शन , कला , चिकित्सा विज्ञान आदि क्षेत्र की उपलब्धियाँ यूनानियों के प्रेरणास्रोत थीं । पुनर्जागरण काल में इनसे ही प्रेरणा लेकर पाश्चात्य देशों ने तरक्की की शुरुआत की किन्तु यूनान स्वयं तुर्की साम्राज्य के अधीन था । फ्रांसीसी क्रांति से यूनानियों में राष्ट्रीयता की भावना विशेष रूप से जगी क्योंकि धर्म , जाति और संस्कृति के आधार पर इनकी समान पहचान थी । फलत : तुर्की शासन से मुक्ति हेतु यूनानियों ने हितेरिया फिलाइक नामक संस्था की स्थापना कर स्वतंत्रता आन्दोलन की शुरूआत की । चूँकि यूनान सारे यूरोपवासियों के लिए प्रेरणा एवं सम्मान का पर्याय था , अत : उसके स्वतंत्रता संघर्ष ने सम्पूर्ण यूरोप में सहानुभूति पैदा कर दी । रूस भी अपनी धार्मिक तथा साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षा के कारण यूनान की स्वतंत्रता चाहता था । 1821 ई ० में अलेक्जेंडर चिपसिलांटी के नेतृत्व में यूनान में विद्रोह शुरू हो गया । तुर्की शासकों ने यूनानी स्वतंत्रता सेनानियों का दमन करना प्रारम्भ कर दिया । रूस का जार अलेक्जेंडर व्यक्तिगत रूप से यूनानी राष्ट्रीयता का पक्षधर था परन्तु मेटरनिख के कारण मुखर नहीं था । नये जार निकोलस ने खुलकर यूनानियों का समर्थन किया । अप्रैल , 1826 ई ० में ग्रेट ब्रिटेन और रूस ने तुर्की – यूनान विवाद में मध्यस्थता करने का समझौता किया ।

1827 में लंदन में एक सम्मेलन हुआ जिसमें इंग्लैंड , फ्रांस तथा रूस ने मिलकर तुर्की के खिलाफ तथा यूनान के समर्थन में संयुक्त कार्यवाही करने का निर्णय लिया । तुर्की के समर्थन में सिर्फ मिस की सेना आयो । युद्ध में मिस और तुर्की की सेना बुरी तरह पराजित हुई । अंत में 1829 ई . के एड्रियानोपल की संधि हुई जिसमें तुर्की की नाममात्र की प्रभुता में यूनान को स्वायत्तता देने की बात तय हुई । परन्तु यूनानी राष्ट्रवादी स्वतंत्र यूनान चाहते थे । इंग्लैंड और फ्रांस भी यूनान पर रूसी प्रभाव की अपेक्षा इसे एक स्वतंत्र देश बनाना बेहतर मानते थे । अन्तत : 1832 ई . में यूनान को एक स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर बवेरिया के शासक ” ऑटो ” को स्वतंत्र यूनान का राजा बनाया गया ।

 

 

प्रश्न:2 जर्मनी के एकीकरण में बिस्मार्क की भूमिका का वर्णन करें । इसमें विलियम प्रथम ने क्या सहायता की ? क्या विलियम की मदद के बिना एकीकरण संभव था ?

उत्तर – प्रशा का चाँसलर बनने के बाद बिस्मार्क का मुख्य उद्देश्य प्रशा को शक्तिशाली बनाना था । वह जर्मन संघ में आस्ट्रिया के प्रभाव को समाप्त कर प्रशा के नेतृत्व में जर्मनी के एकीकरण के सपने देखा करता था । अपने इस उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए बिस्मार्क को अनेक आंतरिक तथा बाह्य कठिनाइयों का सामना करना पड़ा । प्रशा की सेना के पुनर्गठन हेतु आवश्यक धनराशि को जुटाने के क्रम में उसे प्रतिनिधि सभा से काफी संघर्ष करना पड़ा । बिस्मार्क जर्मन एकीकरण के लिए सैन्य शक्ति के महत्व को समझता था । अत : इसके लिए उसने रक्त और लौह नीति का अवलम्बन किया । उसने अपने देश में अनिवार्य सैन्य सेवा लागू की । प्रशा को सर्वश्रेष्ठ सैनिक शक्ति बनाकर उसने कूटनीति का सहारा लेते हुए पहले रूस , फ्रांस और इटली से मित्रता कर ऐसी अंतर्राष्ट्रीय स्थिति बना दी कि जब आस्ट्रिया के साथ प्रशा का युद्ध हो तो कोई भी पड़ोसी राष्ट्र आस्ट्रिया की सहायता न कर सके । उपरोक्त सैन्य एवं कूटनीतिक तैयारी के उपरान्त बिस्मार्क ने अगले तीन युद्धों के द्वारा जर्मनी के एकीकरण का कार्य पूर्ण किया ।

डेनमार्क के साथ युद्ध -1864 ई ० में शेल्सविग और होल्सटीन राज्यों के मुद्दे पर बिस्मार्क के आस्ट्रिया के साथ मिलकर डेनमार्क पर आक्रमण कर दिया । इसमें जीत के बाद शेल्सविग प्रशा को मिला । आस्ट्रिया को होल्सटीन मिला जिसकी अधिकांश जनता जर्मन थी तथा वह क्षेत्र आस्ट्रिया से दूर तथा प्रशा के निकट था । यह बिस्मार्क की कूटनीति का ही कमाल था ।

आस्ट्रिया से युद्ध –बिस्मार्क ने ऑस्ट्रिया – प्रशा युद्ध को अवश्यम्भावी जान इस युद्ध के समय तटस्थ रहने के लिए फ्रांस से समझौता किया । साथ ही इटली के साथ संधि की कि आस्ट्रिया – प्रशा युद्ध के समय इटली आस्ट्रियाई क्षेत्रों पर आक्रमण कर देगा । बिस्मार्क के कार्यों से क्षुब्ध आस्ट्रिया ने 1866 ई ० में प्रशा के खिलाफ सेडोवा में युद्ध की घोषणा कर दी । संधियों के फलस्वरूप आस्ट्रिया दोनों तरफ से युद्ध फंसकर बुरी तरह पराजित हुआ । इससे आस्ट्रिया का जर्मन क्षेत्रों से प्रभाव समाप्त हो गया ।

फ्रांस के साथ युद्ध – शेष जर्मनी के एकीकरण के लिए फ्रांस के साथ युद्ध आवश्यक था । स्पेन की राजगद्दी के मामले पर अन्ततः 1870 ई . में फ्रांस ने सेडॉन युद्ध की घोषणा कर दी । प्रशा ने फ्रांस को बुरी तरह हराया और एक महाशक्ति के रूप में जर्मनी का यूरोप के राजनैतिक मानचित्र पर उदय हुआ । इन युद्ध में प्रशा की विजय और परिणामस्वरूप जर्मनी का एकीकरण बिस्मार्क की रक्त और लौह नीति के साथ – साथ उसके कूटनीति का ही परिणाम था । बिस्मार्क अपनी विदेशी नीति में पूर्णतः सफल हुआ । जर्मन सम्राट कैसर विलियम उस पर भरोसा करता था । वह उसे सभी प्रकार का समर्थन देता था । उसके समर्थन के बिना बिस्मार्क के एकीकरण के प्रयास सफल नहीं हो पाते ।

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