( 2 – Marks Questions )
प्रश्न:1 गुटेनबर्गने मुद्रणयंत्र का विकास कैसे किया ?
उत्तर- गुटेनबर्ग ने अपने ज्ञान और अनुभव से टुकड़ों में बिखरी मुद्रण कला को एकत्रित और संघटित कर टाइपों के लिए पंच , मेट्रिक्स , मोडल आदि बनाने पर योजनाबद्ध ढंग से काम शुरू किया । मुद्रा बनाने हेतु उसने सीसा , टिन और बिस्मिथ का उचित अनुपात में मिश्रित कर एक मिश्रधातु ढूँढ निकाला । गुटेनबर्ग ने आवश्यकतानुसार मुद्रण स्याही भी बनाई । गुटेनबर्ग ने हैण्ड प्रेस नामक मुद्रण यंत्रण बनाया जिसमें लकड़ी के चौखट में दो समतल भाग प्लेट तथा बेड एक के नीचे दूसरा रख दिया जाता था । कम्पोज किया हुआ टाइप मैटर बेड पर रखकर उस पर स्याही लगा दी जाती थी । तब कागज रखकर प्लेट्स को दबाकर मुद्रण किया जाता था । इस प्रकार गुटेनबर्ग ने एक सुस्पष्ट , सस्ता तथा शीघ्र कार्य करने वाला मुद्रण यंत्रण विकसित किया ।
प्रश्न:2 पाण्डुलिपिक्या है ? इसकी क्या उपयोगिता है ?
उत्तर– हस्तलिखित पुस्तक को पाण्डुलिपि कहते हैं । छापाखाना के विकास से पहले हस्तलिखित पांडुलिपियों को तैयार करने की पुरानी तथा समृद्ध परम्परा थी । पाण्डुलिपि काफी नाजुक , पुरानी , महँगी तथा दुर्लभ होती है । ये आम जनता के पहुँच के बाहर थीं । छापाखाना के विकास के पहले पाण्डुलिपि ही पुस्तक का कार्य करती थी । पाण्डुलिपि हमारे पूर्वजों के दुर्लभ ज्ञान का अक्षुण्ण भंडार थीं । इनका अध्ययन करके आसानी से ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है ।
प्रश्न:3 लार्डलिटन ने राष्ट्रीय आन्दोलन को गतिमान बनाया । कैसे ?
उत्तर – भारतीय प्रेस अंग्रेजी राज की शोषणकारी या दमनकारी नीतियों का पर्दाफाश कर जन – जागरण फैलाने का कार्य कर रही थीं । लिटन ने इस एक्ट के द्वारा समाचार पत्रों का मुँह बंद रखने का प्रयास किया । किन्तु इसके प्रतिक्रियास्वरूप जनमानस में आक्रोश भर गया और उनमें राष्ट्रीयता की भावना और उग्र हुई जिसके फलस्वरूप राष्ट्रीय आन्दोलन की गति और तीव्र हुई ।
प्रश्न:4 छापाखानासे क्या लाभ हुआ ? छापाखाना यूरोप में कैसे पहुँचा ?
उत्तर – छापाखाना लकड़ी के ब्लॉक द्वारा होता था । यह मुद्रण कला समरकन्द पर्शिया मार्ग ( सिल्क रूट ) से यूरोप तक पहुँची । इसे यूरोप पहुँचाने वाला रोमन मिशनरी एवं मार्कोपोलो था । वहाँ इस कला का प्रयोग ताश एवं धार्मिक चित्र छापने के लिए किया गया , किन्तु रोमन लिपि में अक्षरों की संख्या कम थी । अत : लकड़ी तथा धातु के बने घुमावदार ( moveable ) टाइपों का प्रसार तेजी से हुआ । छापाखाना से पुस्तकें ज्यादा मात्रा में जल्दी छपने लगीं । फलस्वरूप ज्ञान का वितरण संपूर्ण विश्व में तेजी से फैल गया ।
प्रश्न:5 स्वतंत्रभारत में प्रेस की भूमिका पर प्रकाश डालें ।
उत्तर – भारत में प्रेस पत्रकारिता , साहित्य , मनोरंजन , ज्ञान – विज्ञान , प्रशासन , राजनीति आदि को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित कर रहा है । यह ज्ञान की हर गतिविधियों को प्रभावित कर रहा है । आज प्रेस देश की जनता को नेता की कारगुजारियों , घोटालों एवं सरकारी नीतियों की खामियों से अवगत करा रहा है ।
( 5 – Marks Questions )
प्रश्न:1 19 वीं सदी में भारत में प्रेस के विकास को रेखांकित करें । अथवा , आज के परिवर्तनकारी युग में प्रेस की भूमिका पर आलोचनात्मक टिप्पणी करें । उत्तर – यद्यपि भारत में आधुनिक प्रेस का प्रारम्भ 18 वीं सदी के उत्तरार्द्ध में हो चुका था 18 वीं सदी के अन्त तक कई समाचार पत्र प्रकाशित होने लगे थे । किन्तु , इसका क्षेत्र कम्पनी तथा मिशनरियों तक ही सीमित था । प्रथम भारतीय समाचार पत्र 1816 ई ० में प्रकाशित गंगाधर भट्टाचार्य का साप्ताहिक ‘ बंगाल गजट ‘ था । 1818 ई ० में जेम्स सिल्क बधिम ने ‘ कलकत्ता जर्नल ‘ का सम्पादन किया । उसके सम्पादन ने लॉर्ड हेस्टिंग्स तथा जॉन एडम्स को परेशानी में डाल दिया । उसने अपने पत्रकारिता के माध्यम से प्रेस को जनता का प्रतिबिम्ब बनाया । उसने प्रेस को आलोचनात्मक दृष्टिकोण अपनाने , जाँच – परख कर समाचार देने तथा नेतृत्व प्रदान करने की ओर प्रवृत्त किया । 1821 ई . में ‘ संवाद कौमदी ‘ ( बंगला ) तथा 1822 ई ० में ‘ मिरातुल अखबार ‘ ( फारसी ) के प्रकाशन से प्रगतिशील राष्ट्रीय प्रवृत्ति के समाचार – पत्रों का प्रारम्भ हुआ । इनके संस्थापक राजा राममोहन राय ने इन्हें सामाजिक – धार्मिक सुधार आन्दोलन का हथियार भी बनाया । उन्होंने ‘ ब्राझिनिकल ‘ मैगजीन भी अंग्रेजी में निकाली । 1822 ई . में बमबई से गुजराती में दैनिक समाचार निकलने लगे । द्वारकानाथ टैगोर , प्रसन्न कुमार टैगोर तथा राममोहन राय के प्रयासों से 1930 ई . में ” बंगदत ” की स्थापना हुई । 1831 ई ० में जामे जमशेद तथा 1851 ई . में ‘ गोफ्तार ‘ तथा ‘ अखबारे सौदागर ‘ का प्रकाशन आरम्भ किया । अंग्रेजी प्रशासन ने भारतीय समाचार पत्रों तथा तत्कालीन सामाजिक , धार्मिक तथा राजनीतिक समस्याओं पर विचार – विमर्श का स्वागत नहीं किया और प्रेस को प्रतिबंधित करने का कुत्सित प्रयास किया ।
प्रश्न:2 भारतीयप्रेस की विशेषताओं को लिखें । अथवा , स्वतंत्र भारत में प्रेस की भूमिका पर प्रकाश डालें ।
उत्तर – भारतीय प्रेस की तीन विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
( i ) 19 वीं सदी के पूर्वार्द्ध में जन जागरूकता के अभाव में समाचार – पत्रों का प्रसार कम था । पत्रकारिता घाटे का व्यापार था । फिर भी समाचार – पत्रों द्वारा न्यायिक निर्णयों में पक्षपात , धार्मिक हस्तक्षेप और प्रजातीय भेदभाव की आलोचना करने से धार्मिक एवं सामाजिक सुधार आन्दोलन को बल मिला तथा भारतीय जनमत जागृत हुआ ।
( ii ) 1857 ई . के विद्रोह के बाद प्रेस की प्रकृति का विभाजन प्रजातीय आधार पर हुआ । इसके दो प्रकार थे एंग्लो इण्डियन प्रेस तथा भारतीय प्रेस । एंग्लो इण्डियन प्रेस की प्रगति तथा आकार विदेशी था । यह भारतीयों में ‘ फूट डालो और शासन करो ‘ की नीति पर चलता था । इसके द्वारा भारतीय नेताओं पर सरकार के प्रति गैर वफादार होने का आरोप लगाया जाता । एंग्लो इण्डियन प्रेस का सरकार के साथ घनिष्ठ संबंध था । सरकारी खबरें और विज्ञापन इसी को दिए जाते थे ।
( iii ) भारतीय प्रेस अंग्रेजी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में प्रकाशित होते थे । जहाँ ‘ एंग्लो इण्डियन ‘ प्रेस को विशेषाधिकार प्रापत था । वहीं भारतीय प्रेस पर प्रायः प्रतिबंध लगा होता था । इसके बावजूद 19 वीं तथा 20 वीं सदी में राजा राममोहन राय , सुरेन्द्र नाथ बनर्जी बालगंगाधर तिलक , दादा भाई नौरोजी , महात्मा गाँधी , जवाहर लाल नेहरू , मुहम्मद अल मौलाना आजाद आदि ने भारतीय प्रेस को शक्तिशाली तथा प्रभावकारी बनाया ।
प्रश्न:3 राष्ट्रीयआन्दोलन को भारतीय प्रेस ने कैसे प्रभावित किया ? अथवा , जनमानस ( Public opinlon ) तैयार करने में प्रेस की भूमिका क्या होती है ? किस प्रकार प्रेस ने राष्ट्रीय आंदोलन को प्रभावित किया ? कुछ प्रमुख कारकों सहित व्याख्या करें ।
उत्तर –भारतीय प्रेस ने राष्ट्रीय आन्दोलन के हर पक्ष राजनीतिक , सामाजिक , आर्थिक , सांस्कृतिक सभी को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित किया । भारतीय प्रेस प्रायः राष्ट्रीय नेताओं अथवा समाज सुधारकों द्वारा संपादित या संचालित हो रहे थे । अत : प्रेस के माध्यम से जन जागरण फैलाने का कार्य किया गया । प्रेस ने अंग्रेजी राज की शोषणकारी नीतियों का पर्दाफाश किया । अंग्रेजों द्वारा भारत का जो आर्थिक शोषण हो रहा था , प्रेस ने उसे भी जनता के समक्ष प्रकट कर भारत से हो रहे धन निष्कासन को रोकने का आह्वान किया । भारतीय समाजसुधारकों ने प्रेस के माध्यम से सामाजिक रूढ़ियों , अंधविश्वासों को दूर करने का प्रयास किया । साथ ही अंग्रेजी सभ्यता के कुप्रभावों को दिखाकर उनके खिलाफ जनमत तैयार करने का काम किया । भारतीय प्रेस ने भारतीय नरेशों के प्रति सदैव सकारात्मक रुख अपनाया । अंग्रेजी सत्ता द्वारा उनके अधिकारों के अतिक्रमण का प्रेस खूब आलोचना करते थे । प्रेस नरेशों के नैतिक उत्थान तथा प्रजा के प्रति उनके कर्तव्य के बारे में उन्हें जागरूक करता था । हिन्दू – मुस्लिम दोनों प्रेसों ने ईसाइयों के विरुद्ध हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच एकता लाने का प्रयास किया । भारतीय भाषाओं के समाचार पत्रों ने आम जनता से भावनात्मक संबंध स्थापित कर राष्ट्रीय आन्दोलन के पक्ष में उन्हें तैयार किया । इसने सम्पूर्ण भारत को एकता के सूत्र में बाँधने , विभिन्न समुदाय के बीच की दूरी समाप्त करने एवं शोषण के विरुद्ध जनमत तैयार करने का कार्य कर राष्ट्रीय आन्दोलन एवं राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया को तीव्र किया ।