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Class 10 Science Chapter - 13 विद्युत धारा का चुंबकीय प्रभाव Subjective Question In Hindi

Class 10 Science Chapter – 13 विद्युत धारा का चुंबकीय प्रभाव Subjective Question In Hindi

प्रश्न:1 चुंबकत्व की असली पहचान क्या है?

उत्तर:- चुम्बक में सजातीय ध्रुवों के बीच प्रतिकर्षण और विजातीय ध्रुवों के बीच आकर्षण उत्पन्न होता है। दो लोहे के टुकड़े लिए जाएं और इनके एक छोर दूसरे के दूसरे छोर से सटाने पर अगर प्रतिकर्षण होता है तो दोनों लोहे के टुकड़े चुम्बक होंगे।

 

प्रश्न:2 चुंबक किसे कहते हैं?

उत्तर:- वे पदार्थ चुंबक कहे जाते हैं जो चुंबकीय पदार्थ को अपनी ओर आकर्षित करता है। इसे स्वतंत्रतापूर्वक वायु में लटकाने पर उत्तर-दक्षिण दिशा को ईंगित करता है। इसमें उत्तर और दक्षिण दो ध्रुव होते हैं।

 

प्रश्न:3 दो चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ एक-दूसरे को परिच्छेद क्यों नहीं करती हैं?

उत्तर:- अगर चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ एक-दूसरे को परिच्छेद करती हैं तो क्षेत्र के किसी बिंदु विशेष पर दिक् सूची दो दिशाओं को इंगित करेगा जो असंभव है। यही कारण है कि दो चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ एक-दूसरे को परिच्छेद नहीं करती हैं।

 

प्रश्न:4 विद्युत चुम्बक और स्थायी चुम्बक में अंतर बतावें।

उत्तर:- नरम लोहे के क्रोड पर धारावाही कुंडली लपेट कर धारा प्रवाहित की जाये तो यह विद्युत चुम्बक बन जाता है। इसका चुम्बकत्त्व तभी तक रहता है जब तक कुंडली में विद्युत धारा प्रवाहित होती रहती है। कार्बन स्टील के छड़ को धारावाही कुंडली के गर्भ में रख दिया जाये तो कुछ देर बाद यह चुम्बक बन जाता है। अब धारा का बहना बंद कर दिया जाता है तब भी यह छड़ अपने चुम्बकत्त्व का त्याग नहीं करता है। यह स्थायी चुम्बक कहलाता है।

 

प्रश्न:5 विद्युत चुंबक की विशेषताओं को लिखें।

उत्तर:-

(i) विद्युत चुंबक का चुंबकत्व स्थायी नहीं होता है। जबतक धारा बहती है चुंबकत्व कायम रहता है और धारा के बंद होने पर चुंबकत्व समाप्त हो जाता है।

(ii) विद्युत चुंबक के एक छोर पर उत्तरी ध्रुव और दूसरे छोर पर दक्षिणी ध्रुव पैदा हो जाते हैं। धारा की दिशा उलटने पर ध्रुवों की स्थिति बदल जाती है।

(iii) विद्युत चुंबक के चुंबकत्व की तीव्रता परिनालिका में फेरों की संख्या, धारा के मान तथा क्रोड की प्रकृति पर निर्भर करता है।

 

प्रश्न:6 किसी छड़ चुंबक के चारों ओर चुंबकीय बल रेखा दिखावेंI

उत्तर:- 

चित्र में चुंबकीय बल रेखाओं को दिखाया गया है।

 

प्रश्न:7 चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं के गुणों की सूची बनाइए।

उत्तर:-

(i) ये बल रेखाएँ बंद वक्र होती हैं।

(ii) जहाँ पर क्षेत्र रेखाएँ एक-दूसरे के निकट रहती हैं वहाँ चुंबकीय क्षेत्र अधिक प्रबल होता है।

(iii) दो चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ एक-दूसरे को प्रतिच्छेद नहीं करती हैं।

 

प्रश्न:8 चुंबक के निकट लाने पर दिक् सूचक की सूई विक्षेपित क्यों हो जाती है?

उत्तर:-  दिक् सूचक सूई भी एक छोटा चुम्बक है जिसमें N ध्रुव और S ध्रुव मौजूद है। जब चुंबक के समीप इसे लाया जाता है तो इनके ध्रुवों के बीच आकर्षण अथवा प्रतिकर्षण के कारण चुंबकीय सूई विक्षेपित हो जाती है।

 

प्रश्न:9 पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र के संबंध में क्या जानते हैं?

उत्तर:-  पृथ्वी एक विशाल चुंबक की भाँति कार्य करता है। इसका उत्तरी ध्रुव भौगोलिक दक्षिण की ओर दक्षिण ध्रुव भौगोलिक उत्तर की ओर स्थित है। पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र का अक्ष और भौगोलिक अक्ष के बीच का कोण 19° होता है।

 

प्रश्न:10 चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ क्या होती हैं? किसी बिंदु पर चुंबकीय क्षेत्र की दिशा कैसे निर्धारित की जाती है? चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं के दो प्रमुख गुणधर्म लिखें।

उत्तर:-  चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ, चुंबकीय क्षेत्र में चुंबकीय क्षेत्र की दिशा और परिमाण को दर्शाता है। किसी बिंदु पर चुंबकीय क्षेत्र की दिशा एक चुंबक के उत्तरी ध्रुव को उस बिंदु पर रखने पर उसकी दिशा के समकक्ष होती है। चुंबकीय बल रेखाओं के निम्नांकित गुणधर्म हैं :

(i) चुंबकीय बल रेखाएँ एक दूसरे को नहीं काटती हैं।

(ii) बल रेखाओं की संख्या अधिक होने पर चुंबकीय क्षेत्र की शक्ति काफी बढ़ जाती है।

 

प्रश्न:11 चुंबकीय बल रेखाओं को देखकर क्या निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं?

उत्तर:-  चुंबकीय बल रेखाओं के देखने पर पता चलता है कि चुंबक के दोनों ध्रुवों के पास बल रेखाएँ काफी समीप (सघन) हैं अर्थात् ध्रुवों पर चुंबकीय बल अधिक है। बल रेखाओं के अन्य भागों पर बल रेखाएँ दूरस्थ हैं अतः इन क्षेत्रों में चुंबकीय बल अपेक्षाकृत कम है। बल रेखाएँ एक दूसरे को प्रतिच्छेद नहीं करती हैं। अगर दो क्षेत्र रेखाएँ एक-दूसरे को काटेंगी तो वहाँ क्षेत्र की दो दिशाएँ होंगी जो असंभव है।

 

प्रश्न:12 विद्युत चुम्बक के चुम्बकत्त्व की तीव्रता किन-किन बातों पर निर्भर करता है?

उत्तर:- विद्युत चुम्बक के चुम्बकत्त्व की तीव्रता निम्नलिखित बातों पर निर्भर करता है

(i) परिनालिका के फेरों की संख्या-फेरों की संख्या (N) बढ़ने से चुम्बकत्त्व की तीव्रता (B) समानुपाती ढंग से बढ़ती है। अर्थात् B∞N

(ii)धारा का मान-धारा का मान (I) बढ़ने पर चुम्बकत्व की तीव्रता (B) समानुपाती ढंग से बढ़ती है। अर्थात् B∞I

(iii) क्रोड की प्रकृति पर-परिनालिका के अंदर नरम लोहे का व्यवहार करने पर अधिक शक्तिशाली चुम्बक बनता है। लेकिन इस्पात के व्यवहार करने पर कम शक्तिशाली चुम्बक बनता है।

 

प्रश्न:13  परिनालिका की सहायता से स्थायी चुंबक कैसे बनता है?

उत्तर:- जब एक स्टील के छड़ को कुंडली के गर्भ में रख दी जाती है और विद्युत धारा प्रवाहित किया जाता है, तो स्टील का छड़ स्थायी चुंबक बन जाता है।इसे विद्युत चुंबक कहा जाता है।

 

प्रश्न:14 चुंबकीय क्षेत्र को उत्पन्न करने वाले तीन तरीकों की सूची बनाइए :

उत्तर:-

(i) प्राकृतिक एवं कृत्रिम चुंबक

(ii) विद्युत चुंबक

(iii) एक चालक, एक कुण्डली एवं एक परिनालिका जिससे विद्युत धारा प्रवाहित होती है।

 

प्रश्न:15 परिनालिका में विद्युत धारा प्रवाहित होने पर इसका कौन सिरा उत्तरी ध्रुव और कौन सिरा दक्षिणी ध्रुव जैसा बर्ताव करती है?समझावें।

उत्तर:- परिनालिका के जिस सिरे को देखने पर विद्युत धारा सूई के घूमने की दिशा में हो वह सिरा दक्षिणी ध्रुव और धारा वामावर्त हो तो वह सिरा उत्तरी ध्रुव जैसा व्यवहार करता है।

 

प्रश्न:16  किसी सीधे तार से बहने वाली धारा के कारण उत्पन्न चुंबकीय बल-रेखा की दिशा को बताने वाले नियम को लिखें।

उत्तर:-  दक्षिण हस्त अंगूष्ठ नियम–यदि किसी धारावाही तार को अपने हाथ में इस प्रकार पकड़ें कि अंगूठा धारा की दिशा में तना रहे, तो उँगलियाँ चालक के चारों ओर चुंबकीय क्षेत्र-रेखाओं की दिशा में लिपटी होगी। जैसा कि चित्र में दिया गया है-

 

प्रश्न:17 यदि ताम्बे के तार में प्रवाहित विद्युत धारा पूर्ववत् है, परन्तु दिक सूचक तांबे के तार से दूर चला जाता है तब दिक सूची के विक्षेप पर क्या प्रभाव पड़ता है?

उत्तर:- चुंबकीय बल दूरी के सीधा समानुपाती होता है। चालक तार से दिक् सूची की दूरी जैसे-जैसे बढ़ती है इसके सूई में विक्षेप वैसे-वैसे घटता जाता है। इसका अर्थ है कि दूर जाने पर विद्युत धारा के कारण उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र की प्रबलता घटती है। विद्युत धारावाही सीधे चालक तार दूर हटते जाते हैं तो उसके चारों ओर उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र को निरूपित करने वाले सकेंद्री वृत्तों का साइज भी बड़ा हो जाता है।

 

प्रश्न:18 किसी क्षैतिज शक्ति संचरण लाइन (पावर लाइन) में पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर विद्युत धारा प्रवाहित हो रही है। इसके ठीक नीचे के किसी बिंदु पर तथा इसके ठीक ऊपर के किसी बिंदु पर चुंबकीय क्षेत्र की दिशा क्या होगी?

उत्तर:- विद्युत धारा पूर्व से पश्चिम की ओर प्रवाहित हो रही है। दक्षिण हस्त अंगूष्ठ नियम को लागू करने पर हमें तार के नीचे किसी बिंदु पर चुंबकीय क्षेत्र की दिशा उत्तर से दक्षिण की ओर प्राप्त होती है। तार से ठीक ऊपर के किसी बिंदु पर चुंबकीय क्षेत्र की दिशा दक्षिण से उत्तर की ओर होगी।

 

प्रश्न:19 फ्लेमिंग के वामहस्त नियम को लिखें।

उत्तर:- फ्लेमिंग के वाम हस्त नियम-अपने बायें हाथ की तर्जनी, मध्यमा व अंगूठ को परस्पर लंबवत् फैलाइये। यदि तर्जनी चुंबकीय क्षेत्र की दिशा तथा मध्यमा धारा की दिशा प्रदर्शित करे, तो चालक की गति की दिशा अंगूठे की दिशा में होगी।

 

प्रश्न:20 औषध में चुंबकत्व का क्या महत्त्व है?

उत्तर:- हमारे शरीर के तंत्रिका कोशिकाओं के अनुदिश दुर्बल आयन धाराएँ चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करती हैं। जब हम किसी वस्तु को स्पर्श करते हैं तो तंत्रिकाएँ एक विद्युत आवेश को पेशी तक भेजती हैं। यह आवेश एक अस्थायी चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करता है। यह चुंबकीय क्षेत्र हृदय और मस्तिष्क में उत्पन्न हो जाते हैं और यह क्षेत्र शरीर के विभिन्न भागों के प्रतिबिंब प्राप्त करते हैं। यह तकनीक चुंबकीय अनुनाद प्रतिबिंब कहा जाता है। चिकित्सा निदान में इन प्रतिबिंबों का उपयोग किया जाता है। अतः चिकित्सा विज्ञान में चुंबकत्व के महत्त्वपूर्ण उपयोग हैं।

 

प्रश्न:21 बी०ओ०टी० क्या है? इसे जूल में परिवर्तित करें।

उत्तर:-  B.O.T. Board of Trade Unit (बोर्ड ऑफ ट्रेड यूनिट)

B.O.T. = 01 Kilo watt hr = 3.6×108 Joule  = 1000 Js-1×3600 s = 3.6 x 10⁶ Joule.

 

प्रश्न:22  विद्युत मोटर के कुछ उपयोगों को लिखें।

उत्तर:-  विद्युत मोटर के उपयोग निम्नांकित हैं—(i) विद्युत पंखों में, (ii) रेफ्रिजरेटरों में, (iii) विद्युत मिश्रकों में, (iv) वाशिंग मशीनों में (v) MP3 प्लेयरों में।

 

प्रश्न:23 विद्युत् मोटर का क्या सिद्धांत है?

उत्तर:-  विद्युत मोटर का सिद्धांत—विद्युत मोटर में विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में रूपान्तरित किया जाता है।

 

प्रश्न:24  दिष्ट धारा के कुछ स्रोतों के नाम लिखें।

उत्तर:-  बैटरी और विद्युत मोटर।

 

प्रश्न:25 विद्युत बल्ब में निष्क्रिय गैस क्यों भरी जाती है?

उत्तर:-  बल्ब के अंदर टंगस्टन का तार रहता है। इस तार का बना कुंडली बल्ब के अन्दर उत्पन्न ताप के कारण प्रकाश देता है। अगर बल्ब में ऑक्सीजन की उपस्थिति होगी तो कुण्डली आक्सीकृत होकर जल जायेगा और बल्ब फ्यूज कर जायेगा। यही कारण है कि बल्ब के अन्दर निष्क्रिय गैसें (N., Ar) आदि भरी जाती हैं ताकि बल्ब फ्यूज नहीं हो सके। विद्युत चुम्बकीय प्रेरण

 

प्रश्न:1262kW शक्ति अनुमतांक एक विद्युत तंदूर किसी घरेलू विद्युत परिपथ (220V) में प्रचालित किया जाता है जिसका विद्युत धारा अनुमतांक 5A है। इससे आप किस परिणाम की अपेक्षा करते हैं? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:-  P=2kW = 2000W, V=220V, I = P/v = 2000/220 = 9.09 A विद्युत

धारा का प्रवाह 5A से अधिक है अतः फ्यूज गल जायेगा और विद्युत तंदुर नष्ट होने से बच जायेगा।

 

प्रश्न:27 ताँबे के तार की कुंडली, धारामापी के साथ संबद्ध है। क्या होगा यदि दण्ड चुंबक को

(i) कुंडली के अंदर चुंबक के उत्तर ध्रुव को पहले प्रविष्ट किया जाय?

(ii) कुंडली से चुंबक को बाहर निकाला जाय?

(iii) कुंडली के अंदर चुंबक को स्थिर रखा जाय?

उत्तर:-  

(i) जब कुंडली के उत्तरी ध्रुव को तेजी से कुंडली के गर्भ में प्रवेश कराया जाता है, तो कुंडली से सम्बद्ध गैलवेनोमीटर की सूई में विचलन उत्पन्न होता है। कुंडली में धारा की दिशा, घड़ी की विपरीत दिशा में होती है।

(ii) जब चुंबक को कुंडली से बाहर तेजी से निकाला जाय तो गैलवेनोमीटर की सूई में विचलन विपरीत दिशा में होगी।

(iii) अगर चुंबक कुंडली के अन्दर स्थिर हो, तो गैलेवोनोमीटर की सूई में कोई विचलन उत्पन्न नहीं होता है। अर्थात् कुंडली से होकर कोई धारा नहीं बहती है।

 

प्रश्न:28 परिनालिका चुंबक की भाँति कैसे व्यवहार करती है? क्या आप किसी छड़ चुंबक की सहायता से किसी विद्युत धारावाही परिनालिका के उत्तर ध्रुव तथा दक्षिण ध्रुव का निर्धारण कर सकते हैं?

उत्तर:-  जब परिनालिका से विद्युत धारा प्रवाहित किया जाता है तो यह चुंबक की भाँति व्यवहार करता है। परिनालिका के ध्रुव का निर्धारण करने के लिए एक पीतल की हुक की सहायता से इसे स्वतंत्रपूर्वक लटकाया जाता है। एक छड़ चुंबक के उत्तरी ध्रुव को परिनालिका के एक सिरे के पास ले जाया जाता है। अगर आकर्षण होता है तो स्पष्टतः परिनालिका का यह सिरा दक्षिण ध्रुव है। अगर प्रतिकर्षण होता है तो यह सिरा उत्तर ध्रुव होगा।जब एक सिरे के ध्रुव की जानकारी हो जाती है, तो दूसरा ध्रुव आसानी से ज्ञात हो जायेगा।

 

 प्रश्न:29 भूसम्पर्क तार का क्या कार्य है? धातु के साधित्रों को भूसम्पर्कित करना क्यों आवश्यक है?

उत्तर:- विद्युत परिपथ में भूसम्पर्क तार हमें विद्युत के झटकों से बचाता है।भूसम्पर्क तार पर हरे रंग का विद्युत रोधन होता है जिसे घर के निकट जमीन के अन्दर बहुत नीचे स्थित धातु के प्लेट के साथ जोड़ दिया जाता है। भूसम्पर्क तार का उपयोग विद्युत इस्तिरी, टोस्टर, मेज का पंखा, रेफ्रीजरेटर आदि धातु की बॉडी वाला साधित्रों में सुरक्षा के रूप में किया जाता है। भूसम्पर्क तार विद्युत धारा के लिए अल्प प्रतिरोध चालन पथ प्रस्तुत करता है। इससे यह सुनिश्चित हो जाता है कि साधित्र की धात्विक बॉडी में धारा का कोई क्षरण होने पर उस साधित्र का विभव भूमि के विभव के बराबर रहे और उसे उपयोग करने वाले व्यक्ति को तीव्र विद्युत आघात न लगे।

 

प्रश्न:30 दो वृत्ताकार कुंडली A तथा B एक दूसरे के निकट स्थित है। यदि कुंडली A में विद्युत धारा में कोई परिवर्तन करे तो क्या कुंडली B में कोई विद्युत धारा प्रेरित होगी? कारण लिखिए।

उत्तर:-  जब कुंडली A में विद्युत धारा में परिवर्तन किया जाता है तो कुंडली B में विद्युत धारा प्रेरित हो जाती है। इसका कारण यह है कि चुंबकीय बल रेखाओं में परिवर्तन हो जाता है। कुंडली A के समीप कुंडली B के होने के कारण परस्पर प्रेरण की घटना होती है। इसी घटना के कारण B में विद्युत धारा प्रेरित होती है।

 

प्रश्न:31 विद्युत जनित्र के सिद्धांत क्या हैं?

उत्तर:-  विद्युत जनित्र में यांत्रिक ऊर्जा का उपयोग चुंबकीय क्षेत्र में रखे किसी चालक को घूर्णी गति प्रदान करने में किया जाता है। इसी कारण विद्युत धारा उत्पन्न होती है। अतः विद्युत जनित्र में यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है। घरेलू विद्युत परिपथ

 

प्रश्न:32 विद्युत फ्यूज क्या है, यह किस मिश्र धातु का बना होता है?

उत्तर:-  विद्युत परिपथों के लिए फ्यूज तार का उपयोग होता है। यह अतिभारण अथवा लघुपथन के कारण उत्पन्न उच्च विद्युत धारा के बहने पर यह गल जाता है तथा सुरक्षा प्रदान करता है। फ्यूज तार ताँबे तथा टिन के मिश्रधातु से बना होता है।

 

प्रश्न:33 लघुपथन से आप क्या समझते हैं?

उत्तर:-  किसी कारण से जब जीवित तार और उदासीन तार एक दूसरे से सट जाते हैं तो लघुपथन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इस परिस्थिति में प्रतिरोध शून्य हो जाता है और परिपथ में तीन धारा बहने लगती है। धारा के उच्च होने पर काफी ताप उत्पन्न होता है जिससे अग्नि की उत्पत्ति होने लगती है तथा परिपथ में आग लगने का भय रहता है

 

प्रश्न:34 स्थायी चुंबक और विद्युत चुंबक में अंतर बतावें।

उत्तर:-  स्थायी चुंबक और विद्युत चुंबक में निम्नांकित अंतर हैं :

 

प्रश्न:35 धारावाही चालक तार के इर्द-गिर्द चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है। उसे दिखाने के लिए ऑटेंड के प्रयोग का वर्णन करें।

उत्तर:-  एक मोटे तथा लंबे तार AB को एक क्षैतिज गत्ते के टुकड़े (card board) से होकर ऊर्ध्वाधरतः (vertically) चित्रानुसार व्यवस्थित किया जाता है। तार के सिरे A को एक बैटरी के धन ध्रुव से तथा सिरे B को स्विच S से होकर बैटरी के ऋण ध्रुव से जोड़ने पर तार में धारा प्रवाहित होने लगती है।

कंपास सूई को गत्ते पर रखने से उस स्थान पर चुंबकीय क्षेत्र की दिशा का पता लगता है। भिन्न-भिन्न स्थानों पर सूई को रखने पर एक संकेद्री वृत्तों (concentric circles) का प्रतिरूप या पैटर्न मिलता है।

 

अब चालक AB के सिरों से जुड़े बैटरी के ध्रुवों को पलट देते हैं। कंपास सूई को गत्ते पर भिन्न-भिन्न जगह पर रखने से चुंबकीय क्षेत्र का पैटर्न पहले ही जैसा मिलता है, परंतु इस बार सूई विपरीत दिशा में घूमती है धारा की दिशा एवं उससे संबद्ध चुंबकीय क्षेत्र की दिशा को मैक्सवेल के दक्षिण-हस्त नियम से ज्ञात किया जा सकता है।

 

प्रश्न:36 चंबकीय क्षेत्र रेखाएँ क्या होती हैं?

उत्तर:-  चुंबकीय क्षेत्र में वे रेखाएँ जिनके अनुदिश लौह चूर्ण स्वयं सरैखित होते हैं, चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं का निरूपण करती है। चुंबकीय क्षेत्र एक ऐसी राशि जिसमें परिमाण तथा दिशा दोनों होते हैं। किसी चुंबकीय क्षेत्र की दिशा वह मानी जाती है जिसके अनुदिश दिक् सूची का उत्तर ध्रुव उस क्षेत्र के भीतर गमन करताहै। चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ चुंबक के उत्तर ध्रुव से प्रकट होती हैं तथा दक्षिण ध्रुव परविलीन हो जाती है। चुंबक के भीतर चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं की दिशा उसके दक्षिण ध्रुव से उत्तर ध्रुव की ओर होती है। अतः चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ एक बंद वक्र होती है। दो क्षेत्र रेखाएँ एक दूसरे को प्रतिच्छेद नहीं करती हैं। दोनों ध्रुवों पर क्षेत्र रेखाएँ काफी सघन होती हैं।

 

प्रश्न:37  विद्युत परिपथ में काम करते समय कौन-सी सावधानियां बरती जाती है?

उत्तर:-  विद्युत परिपथ में काम करते समय निम्नांकित सावधानियां बरतनी चाहिए-

(i) विद्युत परिपथ में काम करते समय हाथ में दस्ताना, पैर में जूता और बदन ढका होना चाहिए।

(ii) वैसे युक्तिओं का इस्तेमाल करना चाहिए जिसमें अचालक पदार्थ का मूठ लगा हो।

(iii) अधिक शक्ति के उपकरणों जैसे हीटर, गीजर, इस्त्री, टोस्टर, रेफ्रीजरेटर आदि के धात्विक आवरण को भू-तार से संपर्कित कर लिया जाए ताकि इस धात्विक आवरण का विभव शून्य रहे और विद्युत झटका से बचाव हो।

(iv) उचित अनुमतांक का फ्यूज उपयोग करें।

(v) स्वीच, प्लग, सॉकेट तार के जोड़ों पर संबंधन अच्छे से कसे होना चाहिए। इससे आग लगने की संभावना नहीं रहेगी।

(vi) परिपथ जोड़ने में उचित मुटाई के तार ही जोड़ें ताकि तार न जले।

(vii) तारों के संबंधन की जगह विद्युतरोधी टेप का व्यवहार करना चाहिए।

(viii) अगर किसी व्यक्ति को विद्युत झटका लगा हो तो हाथों से उसे नहीं छूना चाहिए बल्कि अचालक पदार्थ (लकड़ी) आदि से झटका देकर छुड़ाना चाहिए।

(ix) विद्युत झटका लगे व्यक्ति को किसी सूखे बिछावन पर लेटाकर डॉक्टरकी सलाह लेनी चाहिए।

 

प्रश्न:38 मान लिया कि आप किसी चैम्बर में अपनी पीठ को किसी दीवार से लगाकर बैठे हैं। कोई इलेक्ट्रॉन पुंज आपके पीछे की दीवार के सामने वाली दीवार की ओर क्षैतिजतः गमन करते हुए किसी प्रबल चुंबकीय क्षेत्र द्वारा आपकी दायीं ओर विक्षेपित हो जाता है, चुंबकीय क्षेत्र की दिशा क्या है?

उत्तर:- चूँकि पूंज दायीं ओर विक्षेपित होती है। इसलिए पुंज पर लगा बल चित्रानुसार कार्य करेगा। फ्लेमिंग के वाम हस्त नियमानुसार हम पाते हैं कि चुंबकीय क्षेत्र (B) उदग्रतः नीचे की ओर कार्य करता है।

 

प्रश्न:39  निम्नलिखित की दिशा को निर्धारित करने वाला नियम लिखिए:

(1) किसी विद्युत धारावाही सीधे चालक के चारों ओर उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र,

(1) किसी चुंबकीय क्षेत्र में क्षेत्र के लम्बवत् स्थित विद्युत धारावाही सीधे चालक पर आरोपित बल,

(iii) किसी चुंबकीय क्षेत्र में किसी कुंडली के घूर्णन करने पर उस कुंडली में उत्पन्न प्रेरित विद्युत धारा।

उत्तर:- 

(i) दाहिने हाथ का अंगूष्ठ नियम या मैक्सवेल का कार्क स्क्रू

नियम :- यदि धारावाही तार को दाएँ हाथ से इस प्रकार पकड़ें कि अंगूठा धारा की दिशा की ओर ईंगित करे तथा अन्य लिपटी हुई अंगुलियाँ चुंबकीय क्षेत्र की बल रेखाओं की दिशा को व्यक्त करती हैं।

(ii) फ्लेमिंग के बाम हस्त नियम :-अपनी बाएँ हाथ की तर्जनी, मध्यमा तथा अंगूठे को इस प्रकार फैलाइए कि ये तीनों दूसरे के परस्पर लम्ब हों, यदि तर्जनी चुंबकीय क्षेत्र की दिशा तथा मध्यमा चालक में प्रवाहित विद्युत धारा की दिशा की ओर संकेत करती है तो अंगूठा चालक की गति की दिशा अथवा चालक पर आरोपित बल की दिशा की ओर संकेत करेगा।

(iii) फ्लेमिंग के दक्षिण हस्त नियम :- अपने दाहिने हाथ के तीन उँगलियों तर्जनी, मध्यमा और अंगूठे इस प्रकार फैलाकर रखें कि तीनों एक दूसरे पर लम्ब हों, अगर तर्जनी चुंबकीय क्षेत्र की दिशा और अंगूठा चालक के गति की दिशा को इंगित करे तो प्रेरित धारा की दिशा मध्यमा द्वारा इंगित होगा।

 

प्रश्न:40 विद्युत मोटर का नामांकित आरेख खींचें। इसका सिद्धान्त तथा कार्यविधि स्पष्ट करें। विद्युत मोटर में विभक्त वलय का क्या महत्त्व है?

उत्तर:- सिद्धांत विद्युत मोटर के इस सिद्धांत पर कार्य करती है, कि चुम्बकीय क्षेत्र में धारावाही चालक रखने पर एक बल आरोपित होता है, जो चालक को किसी अक्ष पर घूमा सकता है। इसमें विद्युत ऊर्जा यांत्रिक ऊर्जा में बदलता है।

कार्यविधि :— चुम्बक के दो ध्रुवों के बीच एक धारावाही कुण्डली है। जब धारा को प्रवाहित करना शुरू किया गया, तो कुण्डली क्षैतिज अवस्था में है आर्मेचर की कुण्डली में प्रवाहित धारा की दिशा ABCD है। कुण्डली पर आरोपित बल की दिशा फ्लेमिंग के बायें हाथ के नियम से ज्ञात कर सकते हैं। नियम का प्रयोग करके हम ज्ञात करते हैं कि कुण्डली के भाग AB पर बल ऊपर की ओर आरोपित होता है। इस प्रकार यह दो बराबर, विपरीत तथा समांतर बलों का युग्म बन जाता है, जो कुण्डली को घड़ी की सूइयों की दिशा में घूमता है

ABCD —धारावाही कुण्डली

NS —नाल चुंबक

XY— विभक्त बलय

PQ— ब्रुश

यह प्रक्रिया बार-बार दुहरायी जाती है और कुण्डली तब तक घुर्णन करता है जब तक धारा प्रवाहित होती रहती है। विभक्त अर्द्धवलय के कारण कुण्डली में धारा की दिशा बदलती रहती है।

 

प्रश्न:41 विद्युत चुंबकीय प्रेरण की परिघटना को समझायें।

उत्तर:-  चित्र में AB एक कुंडली दिखाया गया है। B सिरे से एक चुंबक के N ध्रुव को तेजी से कुंडली में घुसाया जाता है तो गैलवेनोमीटर के सूई में विक्षेप उत्पन्न होता है। अगर चुम्बक को झटके से कुंडली के गर्भ से बाहर निकाला जाता है तो सूई में विक्षेप विपरीत दिशा में होती है। चुंबक या कुंडली के गति में रहने पर क्षणिक विद्युत विभव उत्पन्न होता है, और कुंडली में क्षणिक विद्युत धारा बहती है। चुंबक कुंडली के गर्भ में स्थिर छोड़ दिया जाए तो कोई विक्षेप उत्पन्न नहीं होता है। यह चुंबकीय प्रेरण की परिघटना को दर्शाता है।

 

प्रश्न:42 विद्युत चुंबकीय प्रेरण की घटना का प्रदर्शन दो कुंडलियों की सहायता से कैसे की जाती है?

उत्तर:- लकड़ी के बेलनाकार बेलन पर दो कुंडलियों को अलग-अलग रखा गया है। प्राथमिक कुंडली को बैटरी से संयोजित किया गया है। द्वितीयक कुंडली को गैलवेनोमीटर से संयोजित कर चित्र की भाँति सजा दिया जाता है।

जब पहली कुंडली में विद्युत धारा बहती है, तो दूसरी कुंडली के गैलवेनोमीटर में क्षणिक विचलन उत्पन्न होता है। जब विद्युत धारा का बहना बन्द कर दिया जाता है, तो गैलवेनोमीटर की सूई में विपरीत दिशा में विचलन उत्पन्न होता है और सूई शून्य पर चली आती है। यह प्रयोग बतलाता है कि प्राथमिक कुंडली में धारा के परिवर्तन के कारण द्वितीयक कुंडली में विद्युत धारा प्रेरित होती है।

 

प्रश्न:43 विद्युत धारावाही वृत्ताकार पाश के कारण चुंबकीय क्षेत्र का रेखा-चित्र खींचें।

उत्तर:- विद्युत धारावाही तार के प्रत्येक बिंदु से उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ पाश के केंद्र पर सरल रेखा जैसी प्रतीत होने लगती हैं। तार का प्रत्येक भाग चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं में योगदान देता है तथा पाश के भीतर चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ एक ही दिशा में होती हैं। पाश के फेरों की संख्या बढ़ा दी जाए तो चुंबकीय क्षेत्र की प्रबलता बढ़ जायेगी।

 

प्रश्न:44 चुंबक की गति के कारण परिवर्ती चुंबकीय फ्लक्स द्वारा परिपथ में प्रेरित धारा की दिशा को निर्धारित करने वाला नियम बतावें।

उत्तर:- फ्लेमिंग के दायाँ हस्त नियम चालक (परिपथ) में प्रेरित धारा की दिशा को दर्शाता है। जब दाहिने हाथ की तर्जनी अंगुली मध्यमिका (मध्यमा) अंगुली और अंगूठा इस प्रकार फैलाकर रखा जाता है कि तीनों उँगलियाँ एक दूसरे के साथ लम्बवत् हों। तर्जनी उँगली चुंबकीय बल की दिशा को और अंगूठा चुंबक की गति की दिशा को ईंगित करे, तो मध्यमिका (मध्यमा) उँगली प्रेरित धारा की दिशा को इंगित करेगा।

 

प्रश्न:45 डायनेमो क्या है? इसके क्रिया सिद्धांत और कार्यविधि का सचित्र

उत्तर:- डायनेमो ऐसी युक्ति है जिसके द्वारा यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत-ऊर्जा बदला जाता है। इसकी क्रिया विद्युत-चुंबकीय-प्रेरण के सिद्धांत पर आधारित है। में के बीच क्षैतिज अक्ष पर चुंबकीय क्षेत्र में घूर्णन करती है। चित्र में घूर्णन की दिशा दक्षिणावर्ती दिखलायी गयी है। गतिशील चालक के प्रेरित धारा चालक गति की दिशाएवं चुंबकीय क्षेत्र की दिशा के बीच के कोण को ज्या (sine) के समानुपाती होती है। घूर्णन के क्रम में कुण्डली जब चुम्बकीय क्षेत्र के लंबवत् रहती है, जिस कारण इसमें प्रेरित धारा शून्य होती है। किन्तु घूर्णन के क्रम में कुण्डली जब चुंबकीय क्षेत्र के समान्तर हो जाती है, तब इसकी AB भुजा को गति को दिशा चुंबकीय क्षेत्र दिशा के लंबवत् होती है, जिस कारण इसमें महत्तम धारा प्रेरित होती है। एक पूर्ण घूर्णन के क्रम में कुण्डली दो बार चुंबकीय क्षेत्र की दिशा के लंबवत् और दो बार समान्तर होती है, जिससे एक पूर्ण घूर्णन में AB भुजा में प्रेरित धारा दो बार शून्य होती है और दो बार महत्तम होती है।

ABCD — कुंडली

NS — नाल चुंबक

R1R2 — विभक्त बलय

B1B2 — कार्बन ब्रश

इस तरह प्राप्त हुई धारा परिपथ में एक ही दिशा में प्रवाहित होती है। यही कारण है कि इस विद्युत जनित्र में दिष्ट धारा जनित्र या डायनेमो के नाम से जाना जाता है।

 

प्रश्न:46 प्रत्यावर्ती धारा और दिष्ट धारा में क्या अन्तर है?

उत्तर:- प्रत्यावर्ती धारा और दिष्ट धारा में अन्तर इस प्रकार है-

 

प्रश्न:47  प्रत्यावर्ती धारा से कौन-कौन से लाभ है?

उत्तर:- प्रत्यावर्ती धारा से निम्नलिखित लाभ हैं-

(i) ट्रॉन्सफार्मर की सहायता से इसका विद्युत वाहक बल बढ़ाया या घटाया जा सकता है। इस क्रिया में विद्युत ऊर्जा का क्षय नगण्य है। यही कारण है कि बड़े-बड़े कल कारखानों में प्रत्यावर्ती धारा का उपयोग होता है। डी० सी० धारा में ऐसी सुविधा प्राप्त नहीं है।

(ii) इसका विद्युत वाहक बल बढ़ाकर दूर-दूर तक भेजा जा सकता है।

(iii) इस धारा के विद्युत वाहक बल को कम करके 6 V की बत्ती को भी जलाया जा सकता है।

(iv) प्रत्यावर्ती धारा को चोक कुंडली द्वारा अत्यल्प ऊर्जा हानि पर नियंत्रित किया जा सकता है।

 

प्रश्न:48 विद्युत फ्यूज का कार्य स्पष्ट करने के लिए एक प्रयोग का वर्णन कीजिए।

उत्तर:- विद्युत परिपथों के लिए फ्यूज सबसे महत्त्वपूर्ण सुरक्षायुक्ति है। फ्यूज ऐसे पदार्थ का टुकड़ा होता है जिसका गलनांक बहुत कम हो। जब लघुपथन अथवा अतिभारण के कारण परिपथ में उच्च धारा प्रवाहित होती है, तो फ्यूज तार गर्म होकर पिघल जाता है; फलस्वरूप परिपथ टूट जाता है और धारा प्रवाह रूक जाता है। फ्यूज के महत्त्व को समझने के लिए एक क्रियाकलाप कर सकते हैं। ऐल्युमिनियम की लगभग 5 सेमी लंबी पतली पत्ती लीजिए। उसके दो सिरों को मेज पर ऊर्ध्वाधर स्थिति में रखी लोहे की दो कीलों की नोकों के साथ जोड़ दीजिए। इन कीलों को प्लग कुंजी और छोटे बल्व से होते हुए बैट्री के साथ जोडिए। प्लगbबंद कर परिपथ चालू करिए, आप पायेंगे कि पट्टी जल गई है और परिपथ भंग हो गया है। विभिन्न क्षमता के फ्यूज तार हमें उपलब्ध हैं। कोई तार जितना मोटा होता है उसकी विद्युत धारा वहन करने की क्षमता उतनी ही अधिक होती है। उत्तम फ्यूज तार शुद्ध वंग (टिन) अथवा तांबे और टिन की मिश्रधातु का बना होता है। लाइन तार में ऐसे फ्यूज तार का उपयोग करना चाहिए जिसकी क्षमता तार में प्रवाहित हो सकने वाली अधिकतम धारा से कुछ अधिक हो। सामान्य तथा विद्युत बल्वों और पंखों की लाइन में 5A क्षमता का फ्यूज लगाया जाता है तथा विद्युत स्टोव, गीजर अथवा निमज्नन तापक जैसे साधित्रों की लाइन जिसमें 1000 वाट अथवा अधिक शक्ति की आवश्यकता होती है जिसमें 15A क्षमता का फ्यूज लगाया जाता है।

 

प्रश्न:49 घरेलू विद्युत परिपथों में से एक परिपथ का व्यवस्था आरेख खींचें।

उत्तर:- घरेलू वायरिंग में तीन तार-जीवित तार (लाल रंग का), उदासीन तार (काले रंग का) तथा भूसंपर्क तार (हरे रंग का) लगे होते हैं। प्रत्यावर्ती धारा जीवित तार से प्रवाहित होती हुई उदासीन तार से लौटती हुई मानी जाती है। भूसंपर्क तार जमीन के अंदर लगभग 5 मीटर गड़ी होती है जिसे धातु के एक प्लेट में बाँध कर गाड़ दिया जाता है। परिपथ 15A और 5A के बनाए जाते हैं। 15 A के परिपथ में हीटर, रेफ्रीजरेटर, विद्युत इस्तिरी चलाये जाते हैं और 5A के परिपथ में बल्ब, पंखा आदि जोड़े जाते हैं। 15A के लाइन को पावर लाइन और 5A के लाइन को घरेलू लाइन कहा जाता है। नीचे एक घरेलू परिपथ का नमूना दिया गया ह

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