प्रश्न:1 पर्यावरण किसे कहते हैं?
उत्तर:- किसी जीव के चारों ओर फैली हुई भौतिक या अजैव और जैव कारकों से निर्मित दुनिया जिसमें वह निवास करता है तथा जिससे वह प्रभावित होता है, उसे उसका पर्यावरण या वातावरण कहा जाता है। उदाहरण के तौर पर पौधे, जानवर एवं अन्य मानव किसी मनुष्य के पर्यावरण का जैविक हिस्सा हैं। जिस धरती पर वह रहता है एवं फसल उपजाता है, जल जो वह पीता है एवं सिंचाई के लिए उपयोग में लाता है, हवा जो उसकी प्राण वायु है, ये उसके भौतिक वातावरण का भाग है इसके अलावा वायुमंडलीय कारक जैसे सूर्य की रोशनी, वर्षा, तापक्रम एवं नमी आदि भी भौतिक वातावरण के ही भाग हैं।
प्रश्न:2 उत्पादक से आप क्या समझते हैं
उत्तर:- वैसे जीव जो अपना भोजन स्वयं बनाने की क्षमता रखते हैं, उत्पादक कहलाते हैं। ऐसे जीव सूर्य के प्रकाश ऊर्जा को विकिरण ऊर्जा के रूप में ग्रहण कर क्लोरोफिल की उपस्थिति में रासायनिक स्थितिज ऊर्जा में परिवर्तित कर देते हैं जो कार्बनिक यौगिक के रूप में हरे पौधों की उत्तकों में संचित रहता है।
जैसे-
हरे पौधे। ये मिट्टी से प्रमुख तत्वों को अवशोषित करने में समर्थ हैं तथा साथ ही वायुमंडल में ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड के बीच संतुलन बनाए रखते हैं।
प्रश्न:3 पारिस्थितिक तंत्र में उत्पादकों के क्या कार्य हैं?
उत्तर:- पारिस्थितिक तंत्र में पौधे उत्पादक का कार्य करते हैं। इसके द्वारा निम्नलिखित कार्य होते हैं
(i) किसी भी पारितंत्र में रहने वाले जीव की प्रकृति का निर्धारण हरे पौधों या उत्पादक के द्वारा होता है।
(ii) वायुमंडल में ऑक्सीजन एवं कार्बन डाइऑक्साइड के बीच का संतुलन हरे पौधों द्वारा ही होता है।
(iii) केवल हरे पौधे ही पारितंत्र के मूल ऊर्जा स्रोत सौर ऊर्जा का प्रग्रहण कर सकते हैं।
प्रश्न:4 पारिस्थितिक तंत्र क्या है? पारिस्थितिक तंत्र के किन्हीं दो जैव घटकों के नाम लिखें।
उत्तर:- जीवमंडल के विभिन्न घटक तथा उसके बीच ऊर्जा और पदार्थ का आदान-प्रदान, सभी एकसाथ मिलकर पारिस्थितिक तंत्र का निर्माण करते हैं।
पारिस्थितिक तंत्र के दो जैव घटकों के नाम हैं—
(i) पौधे और (ii) जंतु
प्रश्न:5 पारिस्थितिकी दक्षता को परिभाषित करें।
उत्तर:- किसी भी पारितंत्र में ऊर्जा का प्रवाह की दक्षता उसके भोज्य पदार्थ के सेवन तथा उसे जैव मात्रा में परिवर्तित करने की क्षमता पर निर्भर करता है, पारिस्थितिकी दक्षता कहलाता है।
प्रश्न:6 मैदानी पारिस्थितिक में उत्पादक एवं उच्चतम श्रेणी के उपभोक्ता का नाम बताएँ।
उत्तर:- मैदानी ‘पारिस्थितिक में उत्पादक हरे घास’ होते हैं, तथा बाज ‘उच्चतम श्रेणी’ के उपभोक्ता।
प्रश्न:7 कृत्रिम पारिस्थितिक तंत्र का कोई दो उदाहरण दें।
उत्तर:- कृत्रिम पारिस्थितिक तंत्र के दो उदाहरण हैं-
(i) फुलवारी और
(ii) जलजीवशाला या एक्वैरियम।
प्रश्न:8 पोषी स्तर क्या है? एक आहार श्रृंखला का उदाहरण दीजिए।
उत्तर:- पारितंत्र के आहार श्रृंखला में क्रमबद्ध तरीके से कई जीव एक दूसरे से जुड़े रहते हैं। पारितंत्र के आहार श्रृंखला का प्रत्येक चरण एक पोषीस्तर को निरुपित करता है। पारिस्थितिक तंत्र में चार, पाँच या उससे भी अधिक पोषी स्तर की संभावनाएँ हो सकती हैं। इसे निम्न आहार श्रृंखला द्वारा समझा जा सकता है।
पेड़ → हिरण → बाघ → यहाँ पेड़-पौधा प्रथम पोषी स्तर है, हिरण द्वितीय पोषी स्तर हैं तथा बाघ तृतीय एवं उच्चतम श्रेणी के पोषी स्तर हैं।
प्रश्न:9 संख्या का पिरामिड किसे कहते हैं ?
उत्तर:- अगर विभिन्न पोषी स्तर के जीवों की संख्या का अवलोकन किया जाय तो एक पिरामिड के सदृश आकृति बनती है जिसे संख्या का पिरामिड (pyramid of numbers) कहा जाता है। सामान्यतः उच्च पोषी स्तर के जीवों को अपनी आवश्यकताओं की आपूर्ति के लिए ज्यादा मात्रा में खाद्य पदार्थों की जरूरत होती है, अत: निचले पोषी स्तर पर जीवों की संख्या अधिक होती है।
प्रश्न:10 पारिस्थितिक तंत्र एवं जीवोम या बायोम में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:- पारिस्थिति तंत्र एवं जीवोम या बायोम में अंतर इस प्रकार है-
प्रश्न:11 आहार श्रृंखला को परिभाषित करें।
उत्तर:- पारिस्थितिक तंत्र के सभी जैव घटक शृंखलाबद्ध तरीके से एक-दूसरे से जुड़े होते हैं तथा अन्योन्याश्रय संबंध रखते हैं। यह शृंखला आहार श्रृंखला कहलाती है।
प्रश्न:12 उपभोक्ता से क्या समझते हैं? प्राथमिक तथा द्वितीयक उपभोक्ता का उदाहरण दें।
उत्तर:- ऐसे जीव जो अपने पोषण के लिए पूर्णरूप से उत्पादकों पर निर्भर रहते हैं, उपभोक्ता कहलाते हैं। सभी जंतु उपभोक्ता की श्रेणी में आते हैं। गाय, भैंस प्राथमिक उपभोक्ता एवं शेर, बाघ द्वितीयक उपभोक्ता के उदाहरण हैं।
प्रश्न:13 पारितंत्र में अपघटकों की भूमिका बताइए।
उत्तर:- पारितंत्र में कुछ सूक्ष्म जीव जैसे बैक्टीरिया, कवक (Fungi) एवं प्रोटोजोआ पाये जाते हैं। ये सूक्ष्म जीव पौधों एवं जंतुओं के मृत शरीर एवं वर्त्य पदार्थों (excretory substance) का अपघटन करते हैं। अतः ये अपघटक कहलाते हैं। ऐसे जीव पौधों एवं जंतुओं के मृत शरीर एवं वर्ण्य पदार्थों में उपस्थित जटिल कार्बनिक पदार्थों को अकार्बनिक तत्त्वों में विघटित कर देते हैं। इस अकार्बनिक पदार्थ को पौधे पुनः मिट्टी से ग्रहण करते हैं और वृद्धि करते हैं। अतः पारितंत्र में अपघटक की बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
प्रश्न:14 निचले पोषी स्तर पर सामान्यतः ऊपरी पोषी स्तर की तुलना में जीवों की संख्या अधिक क्यों रहती है?
उत्तर:- सामान्यत: उच्च पोषी स्तर के जीवों को अपनी आवश्यकताओं की आपूर्ति के लिए ज्यादा मात्रा में खाद्य-पदार्थों की जरूरत होती है, अत: निचले पोषी स्तर पर जीवों की संख्या अधिक होती है। अगर विभिन्न पोषी स्तर के जीवों की संख्या का अवलोकन किया जाए तो एक पिरामिड के सदृश आकृति बनती है।
प्रश्न:15 किसी भी पारितंत्र में जैव घटके कौन-कौन से हैं? उत्पादक एवं उपभोक्ता में उदाहरण सहित विभेद करें।
उत्तर:- किसी भी पारितंत्र में निम्न जैव घटक हैं- पेड़-पौधे, जंतु, सूक्ष्मजीव आदि। किसी भी पारितंत्र में हरे पौधे तथा प्रकाश-संश्लेषी बैक्टीरिया जो अपना भोजन प्रकाश-संश्लेषण के द्वारा बनाते हैं, उत्पादक कहलाते हैं। इन्हें स्वपोषी भी कहते हैं। किसी भी पारितंत्र में वैसे जीव जो अपने भोजन का संश्लेषण स्वयं नहीं कर पाते, अपितु प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उत्पादकों पर निर्भर करते हैं, उपभोक्ता कहलाते हैं।
प्रश्न:16 आहार-जाल से क्या समझते हैं?
उत्तर:- पारिस्थितिक तंत्र में सामान्यतः एक साथ कई आहार श्रृंखलाएँ हमेशा सीधी न होकर एक-दूसरे से आड़े-तिरछे जुड़कर एक जाल जैसी संरचना बनाती हैं। किसी भी पारितंत्र में आहार श्रृंखला का यह जाल आहार-जाल कहलाता है। मानव एवं पर्यावरण क्रियाकलाप के प्रभाव
प्रश्न:17 वायु-प्रदूषण के कारक कौन-कौन से है?
उत्तर:- वायु-प्रदूषण का मुख्य कारक है—कार्बन डाइऑक्साइड गैस, डाइऑक्साइड गैस एवं कार्बन मोनोऑक्साइड गैस।
प्रश्न:18 ओजोन स्तर का क्या महत्त्व है?
उत्तर:- ओजोन स्तर सूर्य के प्रकाश में स्थित हानिकारक पराबैंगनी किरणों (ultraviolet rays) का अवशोषण कर लेता है जो मनुष्य में त्वचा-कैंसर, मोतियाबिंद तथा अनेक प्रकार के उत्परिवर्तन (mutation) को जन्म देती है।
प्रश्न:19 जैव अनिम्नीकरण अपशिष्टों से पर्यावरण को क्या हानि पहुँचती है?
उत्तर:- प्रदूषण के ऐसे कारक जिनका जैविक अपघटन नहीं हो पाता है तथा जो अपने स्वरूप को हमेशा बनाए रखते हैं, अर्थात् प्राकृतिक विधियों द्वारा नष्ट नहीं होते हैं, जैव अनिम्नीकरणीय अपशिष्ट कहलाते हैं। विभिन्न प्रकार के रसायनों, जैसे कीटनाशक एवं पीड़कनाशक DDT, शीशा, आर्सेनिक, ऐलुमिनियम, प्लास्टिक, रेडियोधर्मी पदार्थ जैसे प्रदूषण के कारक पर्यावरण को अत्यधिक हानि पहुंचाते हैं। यह लंबे समय तक पर्यावरण में बने रहते हैं कि यह अपघटित नहीं होते।
प्रश्न:20 ओजोन क्या है तथा यह किसी पारितंत्र को किस प्रकार प्रभावित करती है?
उत्तर:- ओजोन (O3) के अणु ऑक्सीजन के तीन परमाणुओं से बनते हैं । यह वायुमंडल के ऊपरी सतह में पाया जाता है। यह सूर्य से आने वाली पराबैंगनी विकिरण से पृथ्वी को सुरक्षा प्रदान करती है। यही पराबैंगनी विकिरण जीवों के लिए अत्यंत हानिकारक है जिससे मानव में त्वचा का कैंसर हो जाता है। यह वायुमंडल में 15 km से लेकर 50 km ऊँचाई तक पाया जाता है। अत: यह हमारे पारितंत्र के लिए काफी लाभदायक है।
प्रश्न:21 ऐरोसॉल रसायन के हानिकारक प्रभाव क्या हैं?
उत्तर:- कुछ सुगंध (perfumes), झागदार शेविंग क्रीम, कीटनाशी, गंधहारक (deodrant) आदि डिब्बों में आते हैं और फुहारा या झाग के रूप में निकलते हैं । इन्हें ऐरोसॉल कहते हैं। इनके उपयोग से वाष्पशील CFC (क्लोरोफ्लोरो कार्बन) वायुमंडल में पहुँचकर ओजोन स्तर को नष्ट करते हैं । CFC का उपयोग व्यापक तौर पर एयरकंडीशनरों, रेफ्रीजरेटरों, शीतलकों (coolants), जेट इंजनों, अग्निशामक उपकरणों आदि में होता है।
प्रश्न:22 यदि पीड़कनाशी अपघटित न हो तो आहार श्रृंखला के विभिन्न पोषी स्तर पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:- यदि पीड़कनाशी अपघटित न हो तो, यह फसलों में संचित होना शुरू होगा। फसल के द्वारा यह आहार-शृंखला के विभिन्न पोषी स्तर तक पहुँचने लगेगा जहाँ इसकी मात्रा बढ़ती चली जाएगी। अंतत: सबसे अधिक मात्रा सर्वोच्च उपभोक्ता ग्रहण करेंगे। इसके कारण कई खतरनाक बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है। इसमें मनुष्य की मृत्यु भी हो सकती है। अतः पीड़कनाशी का अपघटित न होना विभिन्न पोषी स्तर पर प्रतिकूल असर डालता है।
प्रश्न:23 ऐसे दो तरीके बताइये जिनसे अजैव निम्नीकरणीय पदार्थ पर्यावरण को प्रभावित करते हैं।
उत्तर:-
(i) अजैव निम्नीकरणीय पदार्थों का अपघटन नहीं हो पाता है। यह पदार्थ सामान्यतः ‘अक्रिय’ (inert) हैं तथा पर्यावरण में लंबे समय तक बने रहते हैं अथवा पर्यावरण के अन्य सदस्यों को हानि पहुँचाते हैं।
(ii) वे खाद्य श्रृंखला में मिलकर जैव आवर्धन करते हैं और मानवों को कई प्रकार से हानि पहुँचाते हैं। यही उपरोक्त दो तरीके हैं जिनसे अजैव निम्नीकरणीय पदार्थ पर्यावरण को प्रभावित करते हैं।
प्रश्न:24 अजैव निम्नीकरणीय पदार्थों का वातावरण में बढ़ने का मुख्य
उत्तर:- कल-कारखानों एवं उद्योगों के कारण अजैव निम्नीकरणीय पदार्थ वातावरण में काफी बढ़ गए हैं। कारण क्या है?
प्रश्न:25 आहार-जाल का निर्माण कैसे होता है?
उत्तर:- पारिस्थितिक तंत्र में एक साथ कई आहार श्रृंखलाएँ पायी जाती हैं। ये आहार श्रृंखलाएँ हमेशा सीधी न होकर एक-दूसरे से आड़े-तिरछे जुड़कर एक जाल-सा बनाते हैं। आहार श्रृंखलाओं के इस जाल को आहार-जाल (food web) कहते हैं। ऐसा इसलिए कि पारिस्थितिक तंत्र का एक उपभोक्ता एक से अधिक भोजन स्रोत का उपयोग करता है।
प्रश्न:26 किसी पारिस्थितिक तंत्र के विभिन्न प्रकार के उपभोक्ता के बारे में समझाएँ।
उत्तर:- ऐसे जीव जो अपने पोषण के लिए पूर्ण रूप से उत्पादकों पर निर्भर रहते हैं, उपभोक्ता कहलाते हैं । सभी जंतु उपभोक्ता की श्रेणी में आते हैं क्योंकि क्लोरोफिल की अनुपस्थिति के कारण ये स्वयं भोजन का संश्लेषण नहीं कर पाते। उपभोक्ताओं को तीन श्रेणियों में बाँटा जा सकता है— (i) प्राथमिक उपभोक्ता-(Primary consumers) ऐसे उपभोक्ता जो पोषण के लिए प्रत्यक्ष रूप से उत्पादक, अर्थात् हरे पौधों को खाते हैं, प्राथमिक उपभोक्ता कहलाते हैं। उदाहरण—गाय, भैंस, बकरी इत्यादि। (ii) द्वितीयक उपभोक्ता—(Secondary consumers) कुछ जंतु मांसाहारी (carnivorous) होते हैं तथा वे शाकाहारी प्राथमिक उपभोक्ताओं को खाते हैं, द्वितीयक उपभोक्ता कहलाते हैं। उदाहरण—शेर, बाघ, कुछ पक्षी, सर्प, मेढक इत्यादि। (ii) तृतीयक उपभोक्ता—(Tertiary consumers) सर्प जब मेढक (द्वितीयक उपभोक्ता) को खाता है तब वह तृतीय श्रेणी का उपभोक्ता कहलाता है। तृतीयक उपभोक्ता सामान्यतः उच्चतम श्रेणी के उपभोक्ता हैं, जो दूसरे जंतुओं द्वारा मारे और खाए नहीं जाते हैं, जैसे—शेर, चीता, गिद्ध आदि।
प्रश्न:27 किसी भी पारिस्थितिक तंत्र में अपघटक का क्या कार्य है? यदि किसी पारितंत्र से अपघटक विलग हो जाए तो पारितंत्र पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:- किसी भी पारितंत्र में अपघटक मृत उत्पादक एवं उपभोक्ता का अपघटन करते हैं तथा उनसे उत्पन्न मौलिक कार्बनिक एवं अकार्बनिक पदार्थों को वातावरण में पुनः छोड़ देते हैं। यदि किसी पारितंत्र से अपघटक को हटा दिया जाए, तो मृत पदार्थों की मात्रा बढ़ती चली जाएगी, वायुमंडल में विभिन्न गैसों का चक्रीय परिवर्तन नहीं हो पाएगा, जिसके कारण गैसों की प्रतिशत मात्रा घट जाएगी। जिससे उस पारितंत्र में रहनेवाले जीवों को कठिनाइयाँ होंगी।
प्रश्न:28 जैविक आवर्धन क्या है? क्या पारितंत्र के विभिन्न स्तरों पर जैविक आवर्धन का प्रभाव भी भिन्न होता है? क्यों
उत्तर:- हमारी आहार श्रृंखला में कुछ रासायनिक पदार्थ जो कि अजैव निम्नीकृत होते हैं, मिट्टी के माध्यम से पौधों में प्रवेश कर जाते हैं और हर उस जीव में प्रवेश कर जाते हैं जो इन पौधों पर आश्रित है। क्योंकि ये पदार्थ अजैव निम्नीकृत है, यह प्रत्येक पोषी स्तर पर उत्तरोत्तर संग्रहित होते जाते हैं और यह ही जैविक आवर्धन कहलाता है। जैविक आवर्धन का प्रभाव आहार श्रृंखला के ऊपरी भाग में भयावह होता है क्योंकि सबसे अधिक संग्रहित रासायनिक पदार्थ वहीं पहुँचता है क्योंकि मनुष्य आहार श्रृंखला में शीर्षस्थ है। अतः हमारे शरीर में यह रसायन सर्वाधिक मात्रा में संचित होता है।
प्रश्न:29 पारिस्थितिक तंत्र में ऊर्जा का प्रवाह किस प्रकार होता है?
उत्तर:- पारिस्थितिक तंत्र में ऊर्जा का मुख्य स्रोत सौर-ऊर्जा है, जिसका प्रवाह सदा एक दिशा में उत्पादकों से विभिन्न पोषी स्तरों तक उत्तरोतर ह्रासित होता हुआ प्रवाहित होता है। पृथ्वी तक पहुंचने वाली सौर ऊर्जा का एक छोटा भाग उत्पादक प्रकाश-संश्लेषण द्वारा रासायनिक ऊर्जा के रूप में संचित रखते हैं। इस संश्लेषित ऊर्जा में से कुछ का उपयोग स्वयं मेटाबोलिक क्रियाओं के संपदान में तथा कुछ श्वसन क्रिया में ऊष्मा ऊर्जा में परिवर्तित होकर वातावरण में मुक्त हो जाता है। शेष संचित रासायनिक ऊर्जा हरे पौधों में ऊतकों में होती है, जो विभिन्न स्तर के उत्पादकों में चला जाता है और उनमें भी इस ऊर्जा का एक अंश मेटाबोलिक क्रियाओं में तथा एक अंश ऊष्मा ऊर्जा के रूप में मुक्त होकर वातावरण में चला जाता है। इस प्रकार अधिकतम ऊर्जा उत्पादक स्तर पर संचित है तथा इस ऊर्जा में हर पोषी स्तर पर लिंडमान के नियमानुसार उत्तरोत्तर कमी आती जाती है।
प्रश्न:30 पारितंत्र की उत्पादकता से क्या समझते हैं? यह किन कारकों पर निर्भर करती है?
उत्तर:- किसी भी पारितंत्र में प्रकाशसंश्लेषण के द्वारा कार्बनिक पदार्थ के उत्पादन की दर पारितंत्र की उत्पादकता कहलाती है। इसे किलो कैलोरी मी वर्ष के रूप में व्यक्त करते हैं। कुल उत्पादकता में से कुछ ऊर्जा हरे पौधों के उपापचयी क्रियाओं में खर्च हो जाता है तथा कुछ ऊर्जा वातावरण में ऊष्मा के रूप में विमुक्त हो जाती है पारितंत्र की उत्पादकता निम्न कारकों पर निर्भर करती है सूर्य की रोशनी, तापक्रम, वर्षा, पोषक पदार्थ की उपलब्धता आदि। ये कार्बनिक पदार्थ जैव संहति या जैव मात्रा कहलाती है।
प्रश्न:31 आहार श्रृंखला से आप क्या समझते हैं? उदाहरणसहित एक आहार श्रृंखला के विभिन्न पोषी स्तर का वर्णन करें। आहार-जाल आहार-श्रृंखला से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर:- किसी भी पारितंत्र में जीवों की यह श्रृंखला जिसमें भोजन के माध्यम से ऊर्जा का प्रवाह होता है, आहार-शृंखला कहलाता है। यह निम्न प्रकार का होता है—वन पारिस्थितिक तंत्र, घासस्थलीय पारिस्थितिक तंत्र इत्यादि। एक वन पारिस्थिति तंत्र में घास का भक्षण हिरण करते हैं। जिन्हें पुनः बाघ या शेर खाते हैं। यहाँ हिरण है। प्राथमिक उपभोक्ता एवं बाघ या शेर सर्वोच्च उपभोक्ता है
जब एक से ज्यादा आहार श्रृंखला एक दूसरे से आड़ी-तिरछी जुड़ती है तो जाल जैसी संरचना बनाती है, जिसे आहार जाल कहते हैं।
प्रश्न:32 जैव संहति का पिरामिड को समझाएँ।
उत्तर:- किसी पारितंत्र के आहार श्रृंखला के पोषी स्तर पर निश्चित समय में पाये गए सभी सदस्यों की जैव मात्रा जैव संहति का पिरामिड बनाती है। जैव संहति के पिरामिड में भी आधार से शीर्ष की ओर प्रत्येक पोषी स्तर की जैव मात्रा घटती जाती है। यह पिरामिड एक उर्ध्वाधर पिरामिड है।
प्रश्न:33 क्या किसी पोषी स्तर के सभी सदस्यों को हटाने का प्रभाव भिन्न-भिन्न पोषी स्तरों के लिए अलग-अलग होगा? क्या किसी पोषी स्तर के जीवों को पारितंत्र को प्रभावित किए बिना हटाना संभव है?
उत्तर:- किसी पोषी स्तर के सभी सदस्यों को हटाने का प्रभाव भिन्न-भिन्न पोषी स्तर के लिए अलग-अलग होगा-
(i) उत्पादकों को हटाने का प्रभाव यदि उत्पादकों को पूर्ण रूप से नष्ट कर दिया तो सारा पारितंत्र ही नष्ट हो जायेगा। तब किसी प्रकार के जीव या जीव ही गायब हो जायेगा।
(ii) शाकाहारियों को हटाने का प्रभावया प्राथमिक उपभोक्ता को हटाने का प्रभाव शाकाहारियों को हटाने से उत्पादकों (पेड़-पौधों-वनस्पतियों) के जनन और वृद्धि पर रोक टोक समाप्त हो जाएगी और मांसाहारी भोजन के अभाव में मृत्यु को प्राप्त होंगे।
(iii) मांसाहारियों को हटाने का प्रभाव मांसाहारियों को हटा देने से शाकाहारियों की इतनी ज्यादा संख्या बढ़ जायेगी कि क्षेत्र की संपूर्ण वनस्पतियाँ समाप्त हो जायेंगी।
(iv) अपघटकों का हटाने का प्रभाव अपघटकों को हटा देने से मृतकों (जीव-जंतु) की अधिकता हो जायेगी। उनसे तरह-तरह के जीवाणुओं के उत्पन्न होने से कई बीमारियाँ फैलेंगी। मिट्टी भी पोषक तत्त्वों से विहीन हो जायेगी एवं उत्पादक भी धीरे-धीरे समाप्त हो जायेंगे। किसी पोषी स्तर के जीवों को पारितंत्र को प्रभावित किए बिना हटाना संभव नहीं है। अगर हम उत्पादकों को हटायेंगे तो शाकाहारी उनके अभाव में नष्ट ह जायेंगे व शाकाहारी के न रहने से मांसाहारी भी जीवित नहीं रहेंगे। अपघटकों को हटा देने से उत्पादकों को अपनी वृद्धि के लिए पोषक तत्त्व नहीं प्राप्त होंगे। मानव एवं पर्यावरण क्रियाकलाप के प्रभाव
प्रश्न:34 ओजोन परत की क्षति हमारे लिए चिंता का विषय क्यों हैं?
उत्तर:- ओजोन एक घातक विष है। परंतु वायुमंडल के ऊपरी सतह में ओजोन एक आवश्यक प्रकार्य संपादित करती है। यह सूर्य से आने वाली पराबैंगनी विकिरण से पृथ्वी को सुरक्षा प्रदान करती है। यही पराबैंगनी विकिरण जीवों के लिये अत्यंत हानिकारक है जिसमें से मानव में त्वचा का कैंसर एक अच्छा उदाहरण है। यह ओजोन (O3) का एक स्तर वायुमंडल में 15 km से लेकर लगभग 50 km ऊँचाईवाले क्षेत्र में पाया जाता है।वायुमंडल के उच्चतर स्तर पर पराबैंगनी (uv) विकिरण के प्रभाव से ऑक्सीजन (02) अणुओं से ओजोन बनती हैं। उच्च ऊर्जा वाले पराबैंगनी विकिरण ऑक्सीजन अणुओं को विघटित कर स्वतंत्र ऑक्सीजन (O) परमाणु बनाते हैं। ऑक्सीजन के ये स्वतंत्र परमाणु संयुक्त होकर ओजोन बनाते हैं जैसा कि समीकरण में दर्शाया गया है 1987 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण में सर्वानुमति बनी कि CFC के उत्पादन को 1986 के स्तर पर ही सीमित रखा जाए। इससे ओजेन परत की क्षति को रोक लगना संभव है।
प्रश्न:35 ओजोन क्या है? ओजोन छिद्र कैसे उत्पन्न होता है?
उत्तर:- ओजोन ‘o,’ के अणु ऑक्सीजन के तीन परमाणुओं से बनते हैं। सामान्य ऑक्सीजन के अणु में दो परमाणु होते हैं। जहाँ ऑक्सीजन सभी प्रकार वायविक जीवों के लिए आवश्यक है, वहीं ओजोन एक घातक विष है। वायुमंडल में ऑक्सीजन गैस के रूप में रहता है जो सभी जीवों के लिए आवश्यक है। सूर्य के प्रकाश में पाया जानेवाला पराबैंगनी विकिरण ऑक्सीजन को विघटित कर स्वतंत्र ऑक्सीजन परमाणु बनाता है, जो ऑक्सीजन अणुओं से संयुक्त होकर ओजोन बनाता है। कुछ रसायन; जैसे फ्लोरोकार्बन (FC) एवं क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFC), ओजोन (O3) से अभिक्रिया कर, आण्विक (02) तथा परमाण्विक (O) ऑक्सीजन में विखण्डित कर ओजोन स्तर को अवक्षय(deplection) कर रहे हैं। कुछ सुगंध (सेंट), झागदार शेविंग क्रीम, कीटनाशी, गंधहारक (deodorant) आदि डिब्बों में आते हैं और फुहारा या झाग के रूप में निकलते हैं। इन्हें ऐरोसॉल कहते हैं। इनके उपयोग से वाष्पशील CFC वायुमंडल में पहुँचकर ओजोन स्तर को नष्ट करते हैं। CFC का व्यापक उपयोग एयरकंडीशनरों, रेफ्रीजरेटरों, शीतलकों, जेट इंजनों, अग्निशामक उपकरणों आदि में होता है। वैज्ञानिकों के अध्ययन से पता चला कि 1980 के बाद ओजोन स्तर में तीव्रता से गिरावट आई है। अंटार्कटिका के ऊपर ओजोन स्तर में इतनी कमी आई है कि इसे ओजोन छिद्र (ozone hole) की संज्ञा दी जाती है।
प्रश्न:36 कचरा प्रबंधन कैसे किया जा सकता है?
उत्तर:- कचरे को एक जगह एकत्र कर उसका वैज्ञानिक तरीके से समुचित निपटारा करने को कचरा प्रबंधन कहते हैं। भीड़-भाड़ वाले स्थानों पर कचरे को माँ एकत्र करने के लिए बड़ी-बड़ी धानियाँ होनी चाहिए। ऐसे अपशिष्ट जिनका पुनः चक्रण संभव है, को अलग कर अन्य अपशिष्टों को इन धानियों में एकत्र करना कों चाहिए। पुनः चक्रण वाले कचरे को वैसे लोगों को दे देनी चाहिए जो इनका उपयोग ने करते हैं। कचरे को एकत्रित कर उसे शहर के बाहर जला देना चाहिए या गड्ढों को भरने के उपयोग में किया जाना चाहिए। ठोस कचरे के अलावा उद्योगों से निष्कासित तरल अपशिष्टों एवं विभिन्न प्रकार के मलजल (sewage) को भी पाइपों के द्वारा एक जगह एकत्रित कर समुचित हो निपटारा किया जाना चाहिए। इसके लिए जीवाणुओं का भी प्रयोग होता है। इस प्रकार को से कचरा प्रबंधन किया जा सकता है।
प्रश्न:37 हमारे द्वारा उत्पादित अजैव निम्नीकरणीय कचरे से कौन-सी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं?
उत्तर:- हमारे द्वारा उत्पादित कचरे को हम दो वर्गों में वर्गीकृत करते हैं-
(i) जैव निम्नीकृत
(ii) अजैव निम्नीकृत ।
अजैव निम्नीकरणीय कचरे से हमें अति गंभीर समस्याओं का सामना करना यह अजैव निम्नीकरणीय कचरा वायु, जल तथा मृदा को प्रदूषित करते हैं। इस परिणामस्वरूप अनगिनत मक्खियाँ, मच्छर, जीवाणु तथा अन्य अनेको सूक्ष्मजीवों के पंत आवास बन जाते हैं जिससे इन जीवों की संख्या में वृद्धि हो जाती है । इनसे मानव तथा अन्य जंतुओं में विभिन्न प्रकार के रोग फैल जाते हैं। ले जल स्रोतों के प्रदूषित होने से जलीय प्राणियों एवं वनस्पतियों के शरीरों में जल उपस्थित रसायनों का जमाव हो जाता है । जब मानव इन जलीय पादपों एवं जंतुओं से का भक्षण करता है तो मानव में अनेक रोगों का जन्म होता है। कुछ ऐसे भी रसायन हैं जो मृदा में मिश्रित होकर उसे विषाक्त कर देते हैं, हैं। जो पौधों द्वारा अवशोषित कर लिये जाते हैं । यह रसायन पादपों के शरीर में एकत्र हो जाते हैं और जब मनुष्य इन पादपों का प्रयोग अपने खाने में करता है तो यह सभी रसायन मानव के शरीर में पहुँच जाते हैं।
प्रश्न:38 यदि हमारे द्वारा सारा कचरा जैव निम्नीकरणीय हो तो क्या इनका हमारे पर्यावरण पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा?
उत्तर:- यदि हमारे द्वारा सारा कचरा जैव निम्नीकरण हो तो इनका हमारे पर्यावरण पर गलत प्रभाव पड़ेगा। को जैव निम्नीकरणीय पदार्थ जीवाणुओं, कवक तथा अनेक अन्य सूक्ष्मजीवों द्वारा ना निम्नीकृत किये जाते हैं। यह सभी जीव इस प्रकार के कचरे को अपने भोजन के रूप में प्रयोग करके अपनी संख्या में वृद्धि करेंगे। कचरे के विश्लेषण से विभिन्न प्रकार की गैसें उत्पन्न होती हैं जो वायुमंडल में मिलकर उसे प्रदूषित करती हैं।
अतः यह कचरा भी किसी न किसी प्रकार पर्यावरण को प्रदूषित करने का कारण होता है।
प्रश्न:39 पराबैंगनी विकिरणों से मुनष्य में कौन-सी बीमारी होती है?
उत्तर:- पराबैंगनी विकिरणों के दुष्प्रभाव से मनुष्य में त्वचा कैंसर, मोतियाबिन्द तथा अनेक प्रकार के हानिकारक उत्परिवर्तनों के कारण भयावह बीमारियाँ होती है।
प्रश्न:40 पारिस्थितिक तंत्र के विभिन्न घटकों को एक चित्र से दर्शाएँ।
उत्तर:-
प्रश्न:41 पारिस्थितिक तंत्र एवं जीवोम या बायोम में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:- पारिस्थिति तंत्र एवं जीवोम या बायोम में अंतर इस प्रकार है-
प्रश्न:42 आहार श्रृंखला को परिभाषित करें।
उत्तर:- पारिस्थितिक तंत्र के सभी जैव घटक शृंखलाबद्ध तरीके से एक-दूसरे से जुड़े होते हैं तथा अन्योन्याश्रय संबंध रखते हैं। यह शृंखला आहार श्रृंखला कहलाती है।
प्रश्न:43 जैव अनिम्नीकरणीय एवं जैव निम्नीकरणीय अपशिष्टों में क्या अंतर है? उदाहरणसहित समझाएँ।
उत्तर:- अंतर निम्न है-
प्रश्न:44 मैदानी पारिस्थितिक तंत्र की एक आहार श्रृंखला का रेखांकित चित्रबनायें।
उत्तर:-