प्रश्न:1 प्राकृतिक संसाधनों को किस तरह सुरक्षित रखा जा सकता है?
उत्तर:- प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग कम से कम करके या उसके बदले किसी अन्य स्रोत पर निर्भर करके प्राकृतिक संसाधनों को बचाया जा सकता है। कृत्रिम संसाधनों को बढ़ावा देकर भी हम संसाधनों की सुरक्षा कर सकते हैं।
प्रश्न:2 संसाधनों के दोहन के लिए लंबी अवधि को ध्यान में रखकर बनाई गई परियोजनाओं के लाभ क्या-क्या हो सकते हैं?
उत्तर:- संसाधनों के दोहन के लिए लंबी अवधि को ध्यान में रखकर बनाई गई परियोजनाओं से निम्नलिखित लाभ हो सकते हैं-
(i) यह दीर्घकालीन उद्देश्यों को ध्यान में रखकर बनायी जाती है।
(ii) इनकी लागत अधिक होती है पर यह लाभ भी अधिक देते हैं।
(iii) इन परियोजनाओं के प्रभाव व्यापक क्षेत्र पर पड़ते हैं।
प्रश्न:3 अपने प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण हेतु पाँच कार्यों का उल्लेख करें।
उत्तर:-
(i) मितव्ययितापूर्वक उपयोग करके,
(ii) वृक्षारोपण द्वारा,
(iii) वैकल्पिक स्रोत द्वारा,
(iv) समुचित रख-रखाव,
(v) नियंत्रित एवं दूरगामी प्रयोग हेतु जागरूक कर।
प्रश्न:4 प्राकृतिक संसाधनों को उदाहरण सहित परिभाषित कीजिए।
उत्तर:- प्रकृति में पाए जाने वाले मनुष्य के लिए उपयोगी पदार्थों को प्राकृतिक संसाधन कहते हैं। उदाहरण वायु, जल, मिट्टी, खनिज, कोयला, पेट्रोलियम आदि प्राकृतिक संसाधन हैं।
प्रश्न:5 राष्ट्रीय पुरस्कार ‘अमृता देवी विश्नोई पुरस्कार’ किनकी स्मृति में दिया जाता है?
उत्तर:- राष्ट्रीय पुरस्कार ‘अमृता देवी विश्नोई पुरस्कार अमृता देवी विश्नोई की स्मृति में दिया जाता है जिन्होंने 1731 में जोधपुर के पास खेजराल गाँव में ‘खेजरी वृक्षों को बचाने हेतु 363 लोगों के साथ अपने आपको बलिदान कर दिया था।
प्रश्न:6 कैसे कहा जा सकता है कि वन ‘जैव विविधता के विशिष्ट(Hotspots) स्थल’ हैं?
उत्तर:- वन ‘जैव विविधता के विशिष्ट (hotspots) स्थल हैं’। जैव विविधता का एक आधार उस क्षेत्र में पायी जानेवाली विभिन्न स्पीशीज़ की संख्या है। परंतु जीवों के विभिन्न स्वरूप ( जीवाणु, कवक, फर्न, पुष्पी पादप, सूत्रकृमि, कीट, पक्षी, सरीसृप इत्यादि ) भी महत्त्वपूर्ण हैं। वंशागत जैव विविधता को संरक्षित करने का प्रयास प्राकृतिक संरक्षण के मुख्य उद्देश्यों में से एक है। विभिन्न प्रकार के अध्ययन महमें पता चलता है कि विविधता के नष्ट होने से पारिस्थितिक स्थायित्व के भी नष्ट होने की संभावना रहती है।
प्रश्न:7 किन्हीं दो वन उत्पादों का पता लगाइये जो किसी उद्योग के आधार हैं ?
उत्तर:- तेंदु पत्ती का उपयोग बीड़ी बनाने में व यूक्लिप्टस-बाँस के पेड़ों का कागज मिल में ये दो वन उत्पाद हैं जो कि इनके उद्योग के आधार हैं।
प्रश्न:8 जीवमंडल से क्या समझते हो?
उत्तर:- जीवमंडल जैव-व्यवस्था का सबसे बड़ा स्तर [Level] है। संसार के विभिन्न पारिस्थितिक तंत्र या पारितंत्र एक साथ मिलकर जीवमंडल का निर्माण करते हैं।
प्रश्न:9 घुमंतु चरवाहों को विशाल हिमालय राष्ट्रीय उद्यान में रोकने का क्या नतीजा हुआ?
उत्तर:- घुमंतु चरवाहों को विशाल हिमालय राष्ट्रीय उद्यान में रोकने से वहाँ घास पहले बहुत लंबी हो जाती है, फिर लंबाई के कारण जमीन पर गिर जाती है जिससे नयी घास की वृद्धि रुक जाती है।
प्रश्न:10 बाघ संरक्षण योजना क्या है? इसे कब लागू किया गया था?
उत्तर:- जंगल के लगातार कटने के कारण बाघ की संख्या घटती जा रही है, इसे बचाने के लिए बाघ संरक्षण योजना तैयार किया गया है। जिसके अंतर्गत 28 टाइगर रिजर्व भारत में खोला गया है। यह योजना भारत सरकार के साथ WWF (World Wild life Fund) का भी है। इसे भारत में 1995 में लागू किया गया था।
प्रश्न:11 गंगा का प्रदूषण’ पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर:- गंगा हिमालय में स्थित अपने उद्गम गंगोत्री से बंगाल की खाड़ी में गंगा सागर तक 2500 km तक की यात्रा करती है। इसके किनारे स्थित नगरों ने इसमें उत्सर्जित कचरा एवं मल प्रवाहित कर इसे एक नाले में परिवर्तित कर दिया है। मानव के अन्य क्रियाकलाप जैसे—नहाना, कपड़े धोना, मृत व्यक्तियों की राख एवं शवों को बहाना, उद्योगों द्वारा उत्पादित रासायनिक उत्सर्जन ने गंगा का प्रदूषण बढ़ाकर इसमें कोलिफार्म जीवाणु उपस्थिति द्वारा जल को संदूषित कर दिया है। जल में इन सबके विषैले प्रभाव के कारण जल में मछलियाँ मरने लगी हैं।
प्रश्न:12 मानव के किन क्रियाकलापों ने गंगा को प्रदूषित किया है? उद्योगों
उत्तर:- नहाना, कपड़े धोना, मृत व्यक्तियों की राख व शवों को बहाना, द्वारा उत्पन्न रासायनिक उत्सर्जन आदि मानव के क्रिया-कलाप हैं जिनसे गंगा प्रदूषित हो गयी है।
प्रश्न:13 जल-संग्रहण की पारंपरिक व्यवस्था खादिन पद्धति का रेखांकित चित्र बनाएँ।
उत्तर:-
प्रश्न:14 बड़े बाँध के विरोध में मुख्यतः किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है?
उत्तर:- बड़े बाँध के विरोध में मुख्यतः तीन समस्याओं का सामना करना पड़ता है-
(i) सामाजिक समस्याएँ :— इससे बड़ी संख्या में किसान और आदिवासी विस्थापित होते हैं, और इन्हें मुआवजा भी नहीं मिलता।
(ii) आर्थिक समस्याएँ :— इनमें जनता का बहुत अधिक धन लगता है और उस अनुपात में लाभ अपेक्षित नहीं है।
(iii) पर्यावरणीय समस्याएँ :— इससे बड़े स्तर पर वनों का विनाश होता है तथा जैव विविधता की क्षति होती है।
प्रश्न:15 जीवाश्म ईंधन जैसे संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग की आवश्यकता क्यों है?
उत्तर:- जीवाश्म ईंधन जैसे संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग की आवश्यकता है क्योंकि इनकी मात्रा सीमित है और इनके दहन से पर्यावरण प्रदूषित होता है।
प्रश्न:16 जीवाश्म ईंधन किसे कहते हैं? दो जीवाश्म ईंधन के नाम लिखें।
उत्तर:- लाखों वर्ष पूर्व जैव मात्रा के अपघटन से प्राप्त होने वाले ईंधन को जीवाश्म ईंधन कहते हैं। जैसे कोयला और पेट्रोलियम।
प्रश्न:17 हम यह कैसे जान पाते हैं कि जीवाश्म कितने पुराने हैं?
उत्तर:- जीवाश्म की प्राचीनता ज्ञात करने के दो सामान्य तरीके हैं। अगर हम जीवाश्म प्राप्त करने हेतु पृथ्वी की चट्टानों की खुदाई करें तो जो जीवाश्म हमें सतह से कम गहराई पर स्थित मिलेंगे, वे निश्चित तौर पर अधिक गहराई प्राप्त जीवाश्म से, नूतन होंगे। एक जीवाश्म की आयु (age of fossil) ज्ञात करने का वैज्ञानिक तरीका रेडियो कार्बन काल-निर्धारण (radiocarbon dating) है। समस्थानिक अनुपात (isotopes ratio) के अध्ययन द्वारा भी जीवाश्म की आयु की गणना की जा सकती है।
प्रश्न:18 जीवाश्म क्या है? जैव विकास प्रक्रम के विषय में ये क्या बतलाता है?
उत्तर:- किसी जीव की मृत्यु के बाद उसके शरीर का अपघटन हो जाता है तथा वह समाप्त हो जाता है। परंतु कभी-कभी जीव अथवा उसके कुछ भाग ऐसे वातावरण में चले जाते हैं जिसके कारण इनका अपघटन पूरी तरह से नहीं हो पाता। जीव के इस प्रकार के परिरक्षित अवशेष जीवाश्म कहलाते हैं। जीवाश्मों के अध्ययन से जैव विकास के प्रमाण मिलते हैं। आर्कियोप्टेरिक्स (Archaeopteryx) एक ऐसा ही जीवाश्म है जिसमें रेप्टीलिया तथा एवीज (पक्षी) दोनों के गुण पाये जाते हैं। आर्कियोप्टेरिक्स में रेप्टीलिया की तरह जबड़ों में दाँत तथा अंगुलियों में नख थे। पक्षियों की तरह इसमें डैने (wings) तथा पर या पंख (feathers) थे। इसके अध्ययन से इस बात की पुष्टि होती है कि रेप्टीलिया तथा एवीज का विकास एक ही पूर्वज से हुआ है। इसी तरह जीवाश्म जैव प्रक्रम में धीरे-धीरे होनेवाला जीवों के विकास के अध्ययन में मदद करता है।
प्रश्न:19 आप अपनी जीवन शैली में क्या परिवर्तन लाना चाहेंगे जिससे हमारे संसाधनों के संपोषण को प्रोत्साहन मिल सके?
उत्तर:- हम अपनी जीवन शैली में ऐसे अनेक परिवर्तन लाना चाहेंगे जिससे हमारे संसाधनों के संपोषण को प्रोत्साहन मिल सके– हम ‘कम उपयोग’, ‘पुनः उपयोग’ तथा ‘पुनः चक्रण’ की नीति अपनाएँगे, जीवाश्म ईंधन-कोयला एवं पेट्रोलियम का निम्नतम उपयोग करेंगे, जल की अतिव्ययता को रोकेंगे, बिजली का कम उपयोग करके, वन-संपदा को बचाने हेतुbउठाये गये कदम में सहयोग करके, लिफ्ट का प्रयोग न कर सीढ़ियों का प्रयोग करेंगे, जल संरक्षण में सहयोग देंगे इत्यादि।
प्रश्न:20 “ग्रीन हाउस प्रभाव” से हमारे ऊपर क्या असर पड़ेगा?
उत्तर:-
(i) अत्यधिक ग्रीनहाउस प्रभाव होने से पृथ्वी की सतह तथा उसके वायुमंडल का ताप बहुत अधिक बढ़ जाएगा। वायुमंडल का ताप अत्यधिक बढ़ जाने से मानव तथा जंतुओं का जीवन कष्टदायक हो जाएगा तथा पेड़-पौधों के स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ेगा।
(ii) कार्बन डाइऑक्साइड के अणु अवरक्त विकिरणों का शोषण कर सकते हैं। वायुमंडल में CO2 की परत अवरक्त मिश्रण का अवशोषण कर लेती है तथा उन्हें पृथ्वी के पर्यावरण से नहीं जाने देती। फलस्वरूप वायुमंडल का ताप बढ़ जाता है।
(iii) वायुमंडल का ताप अत्यधिक बढ़ने से पर्वतों, ग्लेशियरों, ध्रुवीय हिम की बर्फ शीघ्रता से पिघल जाएगी, जिससे नदियों में बाढ़ आ सकती है अथवा समुद्र का जल स्तर बढ़ सकता है जिससे बहुत भू-भाग समुद्र में डूब जाएँगे।
प्रश्न:21 पर्यावरण को बचाने का मुख्य उपाय क्या है?
उत्तर:- पर्यावरण को बचाने का मुख्य उपाय है :– वृक्षारोपण, C.N.G., धुआँरहित चिमनी इत्यादि। इससे प्रदूषित हवा, पानी एवं मिट्टी को नियंत्रित किया जा सकता है।
प्रश्न:22 रेडियोधर्मिता किसे कहते हैं?
उत्तर:- ऐसी परिघटना है जिसमें कुछ तत्त्वों के परमाणु नाभिकों के विघटन के परिणामस्वरूप इलेक्ट्रॉन ( बीटा कण ) तथा गामा किरणों ( वैद्युत चुंबकीय विकिरण ) का स्वत: उत्सर्जन होता है।
प्रश्न:23 पर्यावरण को बचाने के लिए तीन प्रकार के ‘R’ का क्या उपयोग है?
उत्तर:- पर्यावरण को बचाने के लिए तीन प्रकार के ‘R’ का उपयोग हम करते हैं ‘कम उपयोग’ (reduce), पुनः चक्रण (recycle) व पुन: उपयोग (reuse)।
प्रश्न:24 नाभिकीय ऊर्जा किसे कहते हैं?
उत्तर:- यूरेनियम (भारी द्रव्यमान) पर निम्न ऊर्जा न्यूट्रॉन से बमबारी की जाती है और यह हल्के नाभिकों में टूट जाता है तथा विशाल मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न होता है। इस ऊर्जा को नाभिकीय ऊर्जा कहते हैं।
प्रश्न:25 जैविक आवर्द्धन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:- फसलों की उत्पादकता बढ़ाने एवं विभिन्न रोगों से बचाने के लिए कई रासायनिक पदार्थों जैसे कीटनाशक, ऊर्वरक आदि का उपयोग करते हैं। ये कीटनाशक फसलों में संचित हो जाते हैं तथा आहार श्रृंखला द्वारा ये विभिन्न पोषी स्तरों से होते हुए अंतत: मानव शरीर में प्रविष्ट हो जाते हैं। इसे जैव आवर्धन कहा जाता है।
प्रश्न:26 अपने विद्यालय को पर्यानुकूलित बनाने के लिए दो सुझाव दें।
उत्तर:- हम अपने विद्यालय में निम्नलिखित परिवर्तन सुझा सकते हैं जिनसे इसे पर्यावरणानुकूलित बनाया जा सके।
(i) हमें विद्यालय के आस-पास का क्षेत्र हरा-भरा रखना चाहिए अर्थात् ज्यादा से ज्यादा पेड़-पौधे लगाने चाहिए।
(ii) बच्चों को शिक्षा देनी चाहिए कि वे फूल-पत्तियों का नुकसान न करें।
प्रश्न:27 पर्यावरण-मित्र बनने के लिए आप अपनी आदतों में कौन-कौन से परिवर्तन ला सकते हैं?
उत्तर:-
(i) धुआँ रहित वाहनों का प्रयोग करके
(ii) पॉलीथीन का उपयोग न करके
(iii) जल संरक्षण को बढ़ावा देकर
(iv) वनों की कटाई पर रोक लगाकर
(v) वृक्षारोपण करके
(vi) तेल से चालित वाहनों का कम-से-कम उपयोग करके। उपरोक्त विभिन्न विधियों को अपनाकर हम पर्यावरण-संरक्षण में योगदान कर सकते हैं।
प्रश्न:28 हमें वन एवं वन्य जीवन का संरक्षण क्यों करना चाहिए?
उत्तर:- हमें वन एवं वन्य जीवन का संरक्षण इसलिए करना चाहिए क्योंकि वन ‘जैव विविधता के विशिष्ट (Hotspots) स्थल’ हैं। जैव विविधता का एक आधार उस क्षेत्र में पाई जानेवाली विभिन्न स्पशीज की संख्या है। परंतु जीवों के विभिन्न स्वरूप (जीवाणु, कवक, फर्न, पुष्पी पादप, सूक्ष्मकृमि, कीट, पक्षी, सरीसृप इत्यादि) भी महत्त्वपूर्ण हैं। वंशागत जैव विविधता को संरक्षित करने का प्रयास प्राकृतिक संरक्षण के मुख्य उद्देश्यों में से एक है। प्रयोगों एवं वस्तु स्थिति के अध्ययन से हमें पता चलता है कि विविधता के नष्ट होने से पारिस्थितिक स्थायित्व भी नष्ट हो सकता है। विभिन्न व्यक्ति फल, नट्स तथा औषधि एकत्र करने के साथ-साथ अपने पशुओं को वन में चराते हैं अथवा उनका चारा वनों में एकत्र करते हैं।
प्रश्न:29 प्लास्टिक का पुन: चक्रण किस प्रकार होता है? क्या प्लास्टिक के पुनः चक्रण का पर्यावरण पर कोई समाघात होता है?
उत्तर:- प्लास्टिक के डिस्पोजेबुल कप एवं गिलास की जगह मिट्टी के कुल्हड़ या पेपर के डिस्पोजेबुल कप एवं गिलास का प्रयोग करना ज्यादा सही है। प्लास्टिक का पुनः चक्रण आसान नहीं है। इसे बार-बार उपयोग करना इसका जमाव पर्यावरण में अपेक्षाकृत कम हो जाता है। इससे पर्यावरण से प्लास्टिक समाप्त तो नहीं हो जाएगा, पर इसका जमाव कम हो सकता है।
प्रश्न:30 यदि हमारे द्वारा उत्पादित सारे कचरे जैव निम्नीकरणीय हो तो क्या इनका हमारे पर्यावरण पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा?
उत्तर:- यदि हमारे द्वारा उत्पादित सारे कचरे जैव निम्नीकरण हो तो, अपशिष्ट पदार्थ जमा नहीं होंगे। सारे पदार्थ को पुनः पर्यावरण में वापस भेज देते हैं। इसके कारण हमारा पर्यावरण हमेशा स्वच्छ रहेगा।
प्रश्न:31 संसाधनों के दोहन के लिए कम अवधि के उद्देश्य के परियोजना से क्या लाभ हो सकते हैं?
उत्तर:- संसाधनों के दोहन के लिए कम अवधि के उद्देश्य के परियोजना से निम्नलिखित लाभ हो सकते हैं-
(i) संसाधनों पर कम दबाव तथा पर्यावरण की न्यूनतम क्षति।
(ii) संसाधनों के पुनः पूरण के लिए पर्याप्त समय।
(iii) प्रभावों को कम करने एवं पर्यावरण को सुधारने में सुविधा।
प्रश्न:32 प्राकृतिक संसाधनों के ह्रास में जनसंख्या वृद्धि का कितना हाथ है?
उत्तर:- जनसंख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। जनसंख्या वृद्धि के साथ-साथ अनेक आवश्यकताएँ भी उभर कर सामने आ रही हैं। इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्राकृतिक संपदाओं की कमी हो रही है। प्राकृतिक संपदाएँ अधिक मात्रा में होते हुए भी सीमित हैं जबकि जनसंख्या चरम सीमा पर पहुँच गई है। बढ़ती हुई जनसंख्या की आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए भी प्राप्त संसाधन सीमित दायरे में हैं। यदि जनसंख्या वृद्धि का यह भूचाल अधिक बढ़ता ही गया तो प्राकृतिक संसाधनों से प्राप्त संपदाएँ अपना संतुलन बनाए रखने में समर्थ नहीं होंगी।
प्रश्न:33 क्या आपके विचार से संसाधनों का समान वितरण होना चाहिए? संसाधनों के समान वितरण के विरुद्ध कौन-कौन-सी ताकतें कार्य कर सकती हैं?
उत्तर:- संसाधनों का समान वितरण होना चाहिए-हमारे विचार से संसाधनों के प्रबंधन में दीर्घकालिक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए तथा यह सुनिश्चित करना चाहिए संसाधनों का वितरण सभी वर्गों में समान हो। संसाधनों के समतामूलक वितरण को आज मानव के कल्याण का अनिवार्य अंग माना जाता है। संसाधनों के न्यायपूर्ण वितरण के अंतर्राष्ट्रीय, राष्ट्रीय और स्थानीय पहलू पर ध्यान देना होगा। संसाधन
जैसे- वन संसाधन के समान वितरण के विरुद्ध निम्नलिखित ताकतें काम कर सकती हैं-
(i) वनवासी या स्थानीय लोग
(ii) वन विभाग
(iii) उद्योगपति
(iv) वन्य जीवन एवं प्रकृति प्रेमी।
प्रश्न:34 वन एवं वन्य जीवन के संरक्षण के लिए कुछ उपाय सुझाइए।
उत्तर:- वन एक प्राकृतिक एवं राष्ट्रीय संपदा है। वन एवं वन्य जीवन का संरक्षण पर्यावरण की दृष्टि से प्रकृति में संतुलन बनाए रखने के लिए तथा स्वयं मानव के अस्तित्व की रक्षा के लिए अति आवश्यक है। वन एवं वन्य जीवन के संरक्षण के लिए उपाय निम्नलिखित हैं-
(i) स्वस्थाने संरक्षण (In Situ Conservation) :-
इस विधि में किसी विशेष क्षेत्र में पाई जाने वाली प्रजातियों का उनके प्राकृतिक एवं स्वाभाविक आवास में संरक्षण (Conservation) एवं परिरक्षण (Protection) किया जाता है। उदाहरण- वन्यजीव अभयारण्य, राष्ट्रीय उद्यान, जीवमंडल रिजर्व आदि।
(ii) बाह्यस्थाने संरक्षण (Ex. Situ Conservation) :- इस विधि में प्रजाति को उनके प्राकृतिक आवास से बाहर ले जाकर संरक्षण, परिरक्षण एवं संवर्धन कराया जाता है उदाहरण-वनस्पति उद्यानों एवं चिड़ियाघरों में दुर्लभ वन्य-जीवों को लाकर उनका संरक्षण।
(iii) अधिक-से-अधिक वृक्षारोपण।
(iv) वनोपज में वृद्धि।
(v) उचित वन प्रबंधन।
प्रश्न:35 ‘चिपको आंदोलन’ क्या है?
उत्तर:- चिपको आंदोलन’ हिमालय की ऊँची पर्वत श्रृंखला में गढ़वाल के रेनी’ नामक गाँव में एक घटना से 1970 के प्रारंभिक दशक में हुआ था। यह विवाद लकड़ी के ठेकेदार एवं स्थानीय लोगों के बीच प्रारंभ हुआ क्योंकि गाँव के समीप के वृक्ष काटने का अधिकार उसे दे दिया गया था। एक निश्चित दिन ठेकेदार के आदमी वृक्ष काटने के लिए आए जबकि वहाँ के निवासी पुरुष वहाँ नहीं थे। बिना किसी डर के वहाँ की महिलाएँ फौरन वहाँ पहुँच गईं तथा उन्होंने पेड़ों को अपनी बाँहों में भरकर (चिपक कर) ठेकेदार के आदमियों को वृक्ष काटने से रोका। अंततः ठेकेदार को अपना काम बंद करना पड़ा।
प्रश्न:36 जब हम वन एवं वन्य जंतुओं की बात करते हैं तो चार मुख्य दावेदार सामने आते हैं। इनमें से किसे वन उत्पाद प्रबंधन हेतु निर्णय लेने के अधिकार दिये जा सकते हैं? आप ऐसा क्यों सोचते हैं?
उत्तर:- जब हम वन एवं वन्य जंतुओं की बात करते हैं तो चार मुख्य दावेदार सामने आते हैं। वे हैं-
(i) वन के अंदर एवं इसके निकट रहने वाले लोग अपनी अनेक आवश्यकताओं के लिए वन पर निर्भर रहते हैं।
(ii) सरकार का वन विभाग जिनके पास वनों का स्वामित्व है तथा वे वनों से प्राप्त संसाधनों का नियंत्रण करते हैं।
(iii) उद्योगपति जो तेंदु पत्ती का उपयोग बीड़ी बनाने से लेकर कागज मिल तक विभिन्न वन उत्पादों का उपयोग करते हैं, परंतु वे वनों के किसी भी एक क्षेत्र पर निर्भर नहीं करते।
(iv) वन्य जीवन एवं प्रकृति प्रेमी जो प्रकृति का संरक्षण इसकी आद्य अवस्था में करना चाहते हैं। हमारे विचार से इनमें से वन उत्पाद प्रबंधन हेतु निर्णय लेने का अधिकार स्थानीय निवासियों को मिलना चाहिए। यह विकेंद्रीकरण की एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें आर्थिक विकास एवं पारिस्थितिक संरक्षण दोनों साथ-साथ चल सकते हैं।
प्रश्न:37 जल संग्रहण पर प्रकाश डालें।
उत्तर:- जल संभर प्रबंधन में मिट्टी एवं जल संरक्षण पर जोर दिया जाता है जिससे कि ‘जैव-मात्रा’ उत्पादन में वृद्धि हो सके। इसका प्रमुख उद्देश्य भूमि एवं जल के प्राथमिक स्रोतों का विकास, द्वितीयक संसाधन पौधों एवं जंतुओं का उत्पादन इस प्रकार करना जिससे पारिस्थितिक असंतुलन पैदा न हो। जल संभर प्रबंधन न केवल जल संभर समुदाय का उत्पादन एवं आय बढ़ाता है वरन् सूखे एवं बाढ़ को भी शांत करता है तथा निचले बाँध एवं जलाशयों का सेवा काल भी बढ़ाता है। यथा छोटे-छोटे गड्ढे खोदना, झीलों का निर्माण, साधारण जल संभर व्यवस्था की स्थापना, मिट्टी के छोटे बाँध बनाना, रेत तथा चूने के पत्थर के संग्रहक बनाना तथा घर की छतों से जल एकत्र करना। इससे भूजल स्तर के संग्रहक बनाना तथा नदी भी पुनः जीवित हो जाती है। जल संग्रहण (water harvesting) भारत में बहुत पुरानी संकल्पना है। राजस्थान में खादिन, बड़े पात्र एवं नाड़ी, महाराष्ट्र के बंधारस एवं ताल, मध्य प्रदेश एवं उत्तरप्रदेश में बंधिस, बिहार में आहर तथा पाइन, हिमाचल प्रदेश में कुल्ह, जम्मू के काँदी क्षेत्र में तालाब तथा तमिलनाडु में एरिस (Tank), केरल में सुरंगम, कर्नाटक में कट्टा इत्यादि प्राचीन जल संग्रहण तथा जल परिवहन संरचनाएँ आज भी उपयोग में हैं।
प्रश्न:38 बड़े समतल भू-भाग में जल-संग्रहण स्थल की परंपरागत पद्धति क्या है?
उत्तर:- बड़े समतल भू-भाग में जल-संग्रहण स्थल मुख्यतः अर्द्धचंद्राकार मिट्टी के गड्ढे अथवा निचले स्थान, वर्षा ऋतु में पूरी तरह भर जाने वाली नालियाँ/प्राकृतिक जल मार्ग पर बनाए गये ‘चेक डैम’ हैं जो कंक्रीट अथवा छोटे कंकड़ पत्थरों द्वारा बनाए जाते हैं। इन छोटे बाँधों के अवरोध के कारण इनके पीछे मानसून का जल तालाबों में भर जाता है। केवल बड़े जलाशयों में जल पूरे वर्ष रहता है। परंतु छोटे जलाशयों में यह जल 6 महीने या उससे भी कम समय तक रहता है, उसके बाद यह सूख जाते हैं। इनका मुख्य उद्देश्य जल-भौम स्तर में सुधार करना है। भौम जल वाष्प बनकर उड़ता नहीं बल्कि आस-पास में फैल जाता है, बड़े क्षेत्र में वनस्पति को नमी प्रदान करता है। इससे मच्छरों के जनन की समस्या भी नहीं होती।
प्रश्न:39 हिमाचल प्रदेश में ‘कुल्ह’ पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर:- लगभग 400 वर्ष पूर्व हिमाचल प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में नहर सिंचाई की स्थानीय प्रणाली (व्यवस्था) का विकास हुआ। इन्हें ‘कुल्ह’ कहा जाता है। झरनों से बहने वाले जल को मानव-निर्मित छोटी-छोटी नालियों से पहाड़ी पर स्थित निचले गाँवों तक ले जाया जाता है। इस कुल्ह से प्राप्त जल का प्रबंधन क्षेत्र के सभी गाँवों की सहमति से किया जाता था। कृषि के मौसम में जल सर्वप्रथम दूरस्थ गाँव को दिया जाता था फिर उत्तरोत्तर ऊँचाई पर स्थित गाँव उस जल का उपयोग करते थे। कुल्ह की देख-रेख एवं प्रबंधन के लिए दो अथवा तीन लोग रखे जाते थे जिन्हें गाँव वाले वेतन देते थे। सिंचाई के अतिरिक्त इन कुल्ह से जल का भूमि में अंत:स्रवण भी होता रहता था जो विभिन्न स्थानों पर झरने को भी जल प्रदान करता था।
प्रश्न:40 गंगाजल में कोलिफॉर्म का संपूर्ण गणना स्तर ( 1993-1994 ) को ग्राफ द्वारा दर्शाएँ।
उत्तर:-
प्रश्न:41 कुछ ऐसे सरल विकल्पों को लिखें जिनसे ऊर्जा की खपत में अंतर पड़ सकता है?
उत्तर:- कुछ ऐसे सरल विकल्प जिनसे ऊर्जा की खपत में अंतर पड़ सकता है, निम्नलिखित हैं-
(i) बस तथा अन्य पेट्रोल-डीजल से चलने वाले वाहनों का प्रयोग कम कर पैदल/साइकिल से चलना चाहिए।
(ii) अपने घरों में बल्ब की अपेक्षा फ्लोरोसेंट ट्यूब का प्रयोग करना।
(iii) लिफ्ट का प्रयोग न कर सीढ़ियों का प्रयोग करना।
(iv) सर्दी में अतिरिक्त स्वेटर पहनना, न कि हीटर अथवा सिगड़ी का प्रयोग करना।
प्रश्न:42 अपने प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण हेतु पाँच कार्यों का उल्लेख करें।
उत्तर:- अकेले व्यक्ति के रूप में हम निम्न के प्रबंधन में योगदान दे सकते हैं।
(i) वन एवं वन्य जंतु-वन संरक्षण एवं वन्य जंतुओं के संरक्षण के प्रति लोगों में जागरूकता जगा सकते हैं व अपने क्षेत्र के उन क्रियाकलापों में भाग ले सकते हैं जो इनसे संबंधित हों। इन मसलों पर कार्य कर कमीटियों की सहायता कर भी हम इनके प्रबंधन में योगदान दे सकते हैं।
(ii) जल संसाधन-अपने घर तथा कार्य स्थल पर जल का अपव्यय रोककर तथा वर्षा के जल को अपने घर में संग्रहित करके।
(ii) कोयला एवं पेट्रोलियम-विद्युत को रोककर व कम-से-कम बिजली का उपयोग करके हम इनके प्रबंधन में योगदान दे सकते हैं।
(iv) मिट्टी-मिट्टी के कटाव पर रोक लगना चाहिए।
(v) पहाड़- अनियमित रूप में पहाड़ कटाव कम होना चाहिए।
प्रश्न:43 संपोषित विकास हेतु प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन किस प्रकार होना चाहिए?
उत्तर:- अकसर ही पर्यावरणीय समस्याओं से हम रू-बरू होते हैं। यह अधिकतर वैश्विक समस्याएँ हैं। इनके समाधान में हम अपने-आपको असहाय पाते हैं। इनके लिए अनेक अंतर्राष्ट्रीय कानून एवं विनियम हैं तथा हमारे देश में भी पर्यावरण संरक्षण हेतु अनेक कानून हैं। अनेक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय संगठन भी पर्यावरण संरक्षण हेतु कार्य कर रहे हैं। संसाधनों के अविवेकपूर्ण दोहन से (निःशेषण से) उत्पन्न समस्याओं के विषय में जागरूकता हमारे समाज में अपेक्षाकृत एक नया आयाम है। इसी का उदाहरण है ‘गंगा सफाई योजना’ जो करीब 1985 में प्रारंभ की गई क्योंकि गंगा के जल की गुणवत्ता बहुत कम हो गयी थी। प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन दीर्घकालिक दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए करना होगा जिससे कि ये अगली कई पीढ़ियों तक उपलब्ध हो सके। इस प्रबंधन में इस बात का भी सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि इनका वितरण सभी वर्गों में समान रूप से हो। सबसे मुख्य बात है कि संपोषित प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन में अपशिष्टों के सुरक्षित निपटाने की भी व्यवस्था होनी चाहिए।
प्रश्न:44 निम्न से संबंधित ऐसे पाँच कार्य लिखिए जो आपने पिछले सप्ताह में किये हैं-
(a) अपने प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण।
(b) अपने प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव को और बढ़ाया है।
उत्तर:-
(a) हमने पिछले सप्ताह अपने प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण किया है
(i) विद्युत उपकरणों का व्यर्थ उपयोग नहीं किया है।
(ii) रोशनी के लिए CFL’s का प्रयोग किया है।
(iii) आने-जाने में पैदल या साइकिल से यात्रा की है।
(iv) कागजों का दुरुपयोग कम किया है।
(v) एयर कंडीशनर व फ्रिज का उपयोग कम किया है।
(b) अपने प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव को और बढ़ाया है-
(i) कंप्यूटर पर प्रिंटिंग के लिए अधिक कागजों का प्रयोग करके।
(ii) पंखे का उपयोग ज्यादा किया।
(iii) आहार को व्यर्थ करके।
(iv) गर्मी में बार-बार नहाकर।
(v) टी०वी० का प्रयोग छुट्टियों में अत्यधिक किया।
प्रश्न:45 अकेले व्यक्ति के रूप में आप विभिन्न उत्पादों की खपत कम करने के लिए क्या कर सकते हैं?
उत्तर:- अकेले व्यक्ति के रूप में विभिन्न उत्पादों की खपत कम करने के लिए हम निम्नलिखित कार्य कर सकते हैं-
(i) विद्युत के अपव्यय को रोककर व इसका निम्नतम उपयोग कर।
(ii) रोशनी के लिए CFL’s का प्रयोग करके।