( भूकम्प एवं सुनामी )
प्रश्न:1 भूकम्प के केन्द्र एवं अधिकेन्द्र के बीच अंतर स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर:- भूकम्प का वह भाग जहाँ चट्टान टूटने की प्रक्रिया आरंभ होती है , भूकम्प का केन्द्र ( focus ) कहलाता है । भूकम्प केन्द्र ही भूकम्प का उत्पत्ति स्थान ( Point of origine ) है । भूकम्प केन्द्र से धरती पर अनुलम्ब , भूकम्प अधिकेन्द्र ( epicentre ) कहलाता है । भूकम्पीय तरंगों का पहला झटका अधिकेन्द्र पर ही लगता है । अधिकेन्द्र से जैसे – जैसे दूरी बढ़ती जाती है वैसे – वैसे भूकम्प का प्रभाव घटता जाता है ।
प्रश्न:2 भूकम्पीय तरंगों से आप क्या समझते हैं ? प्रमुख भूकम्पीय तरंगों के नाम लिखिए ।
उत्तर:- पृथ्वी के गर्भ में संचित अपार ऊर्जा के मुक्त होने से लहरें उत्पन्न होती हैं , जो भूकम्पीय तरंगें कहलाती हैं । अर्थात् भूकम्प आने के पूर्व तथा भूकम्प के बाद कम गहनता के अनेक कंपन होते हैं ।
भूकम्प के समय उठनेवाले कंपन यानी तरंगों को निम्नलिखित तरंगों में बाँटा जा सकता है-
( i ) प्राथमिक तरंग ( P – wave ) ,
( ii ) द्वितीयक तरंग ( S – wave ) तथा
( iii ) सतही या दीर्घ तरंग ( L – wave )
प्रश्न:3 भूकम्प एवं सुनामी के विनाशकारी प्रभाव से बचने के किन्हीं चार उपायों का वर्णन कीजिए ।
उत्तर:- भूकम्प एवं सुनामी प्राकृतिक आपदा हैं जिनसे बचाव के लिए बहुआयामी प्रयास आवश्यक है । वस्तुतः ये प्रयास व्यापक और दूरदृष्टि वाले हों
कुछ प्रमुख प्रयास निम्नांकित हैं _
( i ) भूकम्प एवं सुनामी का पूर्वानुमान- पूर्वी तरंग और अनुकंपन तरंगों को यदि भूकम्पलेखी यंत्र पर ठीक से मापा जाय तो तरंगों की प्रकृति के आधार पर संभावित बड़े भूकम्प या सुनामी का पूर्वानुमान किया जा सकता है
( ii ) भवन – निर्माण – भूकम्प या सुनामी के विनाश को ध्यान में रखते हुए भवन निर्माण की स्वीकृति देने के पहले इन तथ्यों की जाँच होनी चाहिए कि क्या वे भूकम्पनिरोधी या सुनामीनिरोधी कारणों पर आधारित हैं ।
( iii ) जान – माल की सुरक्षा किसी भी भूकम्प या सुनामी का सीधा प्रभाव जान – माल पर पड़ता है । अतः जान – माल के बचाव के लिए विशेष सुरक्षा – व्यवस्था कर ।
( iv ) गैर सरकारी संगठनों का सहयोग – भूकम्प या सुनामी किसी भी प्रकार की आपदा प्रबंधन में स्वयंसेवी संस्थाएँ , विद्यालय और आम लोग बड़ी भूमिका निभा सकते हैं ।
प्रश्न:4 भारत को प्रमुख भूकम्प क्षेत्रों में विभाजित करते हुए सभी क्षेत्रों का संक्षिप्त विवरण दीजिए । अथवा , भारत की भूकम्पीय पेटी का सोदाहरण वर्णन करें ।
उत्तर:- भारत के प्रायः सभी भागों में भूकम्प के झटके आते हैं । गहनता और बारंबारता में अंतर के आधार पर भारत को 5 भूकम्पीय क्षेत्र ( Zone ) में बाँटा गया है , जो अग्रलिखित हैं
( i ) क्षेत्र 1 :- इस क्षेत्र में भारत के दक्षिणी पठारी क्षेत्र आते हैं , जहाँ भूकंप का खतरा नहीं के बराबर है ।
( ii ) क्षेत्र 2 :- इसके अन्तर्गत प्रायद्वीपीय भारत के तटीय मैदानी क्षेत्र आते हैं । यहाँ भूकंप की संभावना तो होती है लेकिन तीव्रता कम होने के कारण सीमित खतरे होते हैं ।
( iii ) क्षेत्र 3 :- इसमें मुख्यत : गंगा – सिन्धु का मैदान , राजस्थान तथा उत्तरी गुजरात के कुछ क्षेत्र आते हैं । यहाँ भूकंप का प्रभाव देखने को मिलता है लेकिन वे कभी – कभी ही विनाशकारी होते हैं ।
( iv ) क्षेत्र 4 :- यहाँ अधिक खतरे की संभावना होती है । इसमें भारत के मुख्यत : शिवालिक हिमालय का क्षेत्र , पश्चिम बंगाल का उत्तरी भाग , असम घाटी तथा पूर्वोत्तर भारत का क्षेत्र आता है । इसी क्षेत्र में अंडमान – निकोबार द्वीप – समूह भी आता है ।
( v ) क्षेत्र 5 :- यह सर्वाधिक खतरे का क्षेत्र है । इसके अंतर्गत गुजरात का कच्छ , जम्मू कश्मीर , हिमाचल प्रदेश , उत्तराखण्ड का कुमाऊँ पर्वतीय क्षेत्र , सिक्किम तथा दार्जिलिंग के पहाड़ी क्षेत्र आते हैं ।
प्रश्न:5 सुनामी से आप क्या समझते हैं ? सुनामी से बचाव के उपायों का उल्लेख कीजिए । अथवा , सुनामी आपदा प्रबंधन पर एक लेख लिखें ।
उत्तर:- सुनामी ( Tsunami ) :- एक प्राकृतिक परिघटना है । यह एक जापानी शब्द है जो दो शब्दों सू ( Tsu ) और नामी ( nami ) से बना है । ‘ सू ‘ का अर्थ बन्दरगाह एवं ‘ नामी ‘ का अर्थ लहरें हैं । इसमें लहरों की एक श्रृंखला निर्मित होती है जिसके परिणामस्वरूप समुद्र या सागर से जल व्यापक मात्रा में बहुत तीव्र गति से तट की ओर विस्थापित होता है । सुनामी लहर समुद्र तल पर आने वाले भूकम्प एवं ज्वालामुखीय विस्फोट के कारण उत्पन्न होता है । पृथ्वी की सतह में उत्पन्न कुछ विशेष प्रकार की हलचल ( जैसे भूकम्प , ज्वालामुखी विस्फोट , भूस्खलन आदि ) के कारण समुद्र में अत्यधिक ऊँची – ऊँची विशाल लहरें उत्पन्न होती हैं जो सुनामी लहरें कहलाती हैं ।
नीचे कुछ सुझाए गए उपायों पर अमल कर सुनामी से उत्पन्न क्षति को कम किया जा सकता है
( i ) 26 देश के नेटवर्क प्रणाली से भारत को जोड़कर ।
( ii ) भूकम्पीय तरंगों के समान ही सुनामी के पूर्व कंपन और अनुकंपन आते हैं । उनका पूर्वानुमान किया एवं आपदा संसूचक प्रणाली ( disaster sensitive system ) द्वारा समुद्री जल की सतह के नीचे की क्षैतिज हलचलों का अध्ययन कर ।
( iii )तटवर्ती क्षेत्रों में पेड़ लगाकर तटवर्ती आश्रय पट्टी( Coasts shelter belt ) निर्मित कर सुनामी लहरों की तीव्रता को कम किया जा सकता है ।
( iv ) तटवर्ती क्षेत्रों में भवन निर्माण के सभी नियमों का कठोरतापूर्वक पालन कर ।
( v ) राज्य सरकार तथा गैर – सरकारी संस्थाओं द्वारा तटीय प्रदेश में रहने वाले लोगों को सुनामी से बचाव का प्रशिक्षण देने की व्यवस्था कर ।
प्रश्न:6 सुनामी से बचाव के कोई तीन उपाय बताइए ।
उत्तर:- सुनामी से बचाव के अग्रलिखित उपाय हैं-
( i ) भूकम्पीय तरंगों के समान सुनामी में पूर्व कंपन और अनुकंपन आते हैं ।
( ii ) सुनामी के विनाशकारी प्रभाव को कम करने के लिए कंक्रीट तटबंध बनाने की जरू रत है ।
( iii ) सुनामी के विनाशकारी प्रभाव को कम करने के लिए तटबंध के किनारे मैंग्रोव जैसी वनस्पति को सघन रूप में लगाना चाहिए ।
( आपदा और सह – अस्तित्व )
प्रश्न:1 सुखाड़ में मिट्टी की नमी को बनाए रखने के लिए आप क्या करें ?
उत्तर:- सुखाड़ में नमी को बनाए रखने के लिए भूमि पर घास का आवरण रहने देंगे । मिट्टी में नमी के अभाव में ही कृषि सुखाड़ होता है । नदियों के जलग्रहण क्षेत्र में वृक्षारोपण से भी बादल आकर्षित होते हैं और मौसम को कुछ हद तक नियमित किया जा सकता है । वृक्षारोपण कर हरित पट्टी का विकास एवं उसकी सुरक्षा की व्यवस्था करनी चाहिए ।
प्रश्न:2 सुखाड़ का हमारे दैनिक जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर:- सुखाड़ का हमारे दैनिक जीवन पर प्रभाव-
( i ) जीवन संकटापन्न हो जाता है ।
( ii ) आर्थिक स्थिति जर्जर हो जाती है ।
( iii ) भुखमरी की स्थिति उत्पन्न हो जाती है ।
( iv ) महामारी का प्रकोप बढ़ता जाता है ।
( आपदा में वैकल्पिक संचार व्यवस्था )
प्रश्न:1 प्राकृतिक आपदा में उपयोग होने वाले किसी एक वैकल्पिक संचार माध्यम की चर्चा कीजिए ।
उत्तर:- रेडियो संचार :- आपदा ग्रसित क्षेत्रों में जहाँ सामान्य टेलिफोन तथा मोबाइल फोन नेटवर्क कार्य विहीन हो जाते हैं , हमें एक जगह से दूर दूसरी जगहों तक संदेश भेजने के लिए एक भरोसेमंद संचार साधन चाहिए । एक सुस्थापित बेतार रेडियो संचार प्रणाली जो अपने क्षेत्र तक सीमित है , यह एकमात्र प्रभावी सेवा है । कोई भी बेतार संचार संपर्क रेडियो तरंगों पर निर्भर करता है , भले ही वह क्षेत्रीय अथवा उपग्रही तंत्रों का प्रयोग करता हो । रेडियो तरंग इलेक्ट्रोमैग्नेटिक होती है , जिसे एंटिना द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान तक प्रेषित किया जाता है । रेडियो तरंगें निम्न , उच्च और अत्यधिक उच्च फ्रीक्वेंसी ( Low , High and Extremely High Frequency ) की हो सकती हैं । रेडियो रिसीवर को किसी खास फ्रीक्वेंसी पर रखकर हम खास संकेत प्राप्त कर सकते हैं ।
प्रश्न:2 प्राकृतिक आपदा में वैकल्पिक संचार माध्यमों का विवरण करें । अथवा , हैम रेडियो एवं उपग्रह संचार पर नोट लिखें ।
उत्तर:- प्राकृतिक आपदा के समय निम्नलिखित वैकल्पिक संचार माध्यमों का उपयोग किया जाता है ।
( i ) रेडियो संचार :- रेडियो संचार में विद्युत चुम्बकीय तरंगों को एक एन्टीना द्वारा संचालित किया जाता है जो बेतार सम्पर्क में सहायक सिद्ध होती हैं । ये तरंगें आयन मंडल ( lon sphere ) से सरल रेखाओं में परिवर्तन होती हैं ।
( ii ) एमेच्योर अथवा हैम रेडियो ( Ham Radio ) :- एमेच्योर रेडियो को हैम रेडियो भी कहा जाता है । इस प्रणाली में रेडियो संचार व्यवस्था का प्रयोग अवाणिज्यिक क्रियाकलापों के लिए किया जाता है । यह एक सामान्य रेडियो प्रणाली है जिसके कुछ निश्चित नियम हैं और जो अन्तर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ द्वारा आवंटित निश्चित आवृत्तियों पर अपने प्रसारण करता है और इसके प्रसारणों को भारत सरकार के बेतार आयोजन और समन्वय स्कंध ( डब्ल्यू पी.सी. विंग ) द्वारा विनियमित किया जाता है । यह प्रणाली अत्यधिक उपयोगी है । क्योंकि यह किसी भू – अवसंरचना ( Ground Infrastructure ) का प्रयोग नहीं करती है और विद्युत संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति बैटरियों और जेनरेटरों से की जाती है । भारत सरकार ने अव्यवसायी रेडियो स्टेशन ( Amateur Radio stations ) स्थापित करके और रुचि रखने वाले प्रचालकों को प्रशिक्षण प्रदान करके अव्वसायी रेडियो प्रणाली को लोकप्रिय बनाने की दिशा में काम किया है ।
( iii) उपग्रह संचार प्रणाली ( Statelitecommunication system ) :- अंतरिक्ष में प्रस्थापित उपग्रह कई प्रकार के होते हैं जिन्हें विभिन्न उद्देश्यों के लिए प्रक्षेपित किया जाता हैं । इनमें संचार उपग्रह और सुदूर संवेदी उपग्रह प्रमुख हैं । उपग्रह संचार प्रणाली संदेश और चेतावनी प्रसारित करने के लिए एक विश्वसनीय और महत्वपूर्ण संचार प्रणाली है । आपदा प्रबंधन में भू – तुल्यकालिक उपग्रह ( Geo – Synchronous satellite ) की सेवाओं का प्रयोग करके उपग्रह फोनों का व्यापक उपयोग किया जाता है जिसमें उपग्रह टेलीफोन एक्सचेंजों की भाँति काम करता है । ये फोन ध्वनि और आँकड़ा संचार ( Voice and data communication ) के लिए विश्वसनीय माध्यम उपलब्ध कराते हैं और ये सुवाह्य भी होते हैं ।