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Class 10 History V.V.I Subjective Questions & Answer Chapter - 2 समाजवाद एवं साम्यवाद

Class 10 History V.V.I Subjective Questions & Answer Chapter – 2 समाजवाद एवं साम्यवाद

                                          ( 2 – Marks Questions )

 

प्रश्न:1 रूस की क्रांति ने पूरे विश्व को प्रभावित किया । किन्हीं दो उदाहरणों द्वारा स्पष्ट करें ।

उत्तर-  ( i ) इस क्रांति ने विश्व को दो विचारधाराओं में बाँट दिया ।

            ( ii ) इस क्रांति ने आर्थिक नियोजन का नया प्रारूप प्रस्तुत किया , जिसे पूर्ववर्ती देशों ने अपनाना शुरू किया ।

 

प्रश्न:2 सर्वहारा वर्ग किसे कहते हैं ?

उत्तर – समाज का वह लाचार वर्ग जिसमें गरीब किसान , कृषक मजदूर , सामान्य मजदूर , श्रमिक एवं आम गरीब लोग शामिल हो उसे सर्वहारा वर्ग कहते हैं । इस वर्ग के लोगों के पास बुनियादी चीजें भी उपलब्ध नहीं होती ।

 

प्रश्न:3  रूसी क्रांति के किन्हीं दो कारणों का वर्णन करें ।

उत्तर – रूसी क्रान्ति के दो महत्वपूर्ण कारण निम्नलिखित थे

( i ) जार की निरंकुशता एवं अयोग्य शासन- यद्यपि 19 वीं सदी के मध्य में राजतंत्र की शक्ति सीमित की जा चुकी थी । रूसी राजतंत्र अपना विशेषाधिकार छोड़ने को तैयार नहीं था । जार निकोलस द्वितीय राजा के दैवी अधिकारों में विश्वास रखता था । जार की अफसरशाही अस्थिर और नेतृत्व अकुशल थी । गलत सलाहकारों के कारण जार की स्वेच्छाचारिता बढ़ती गई और जनता की स्थिति बद से बदतर होती गई ।

( ii ) कृषक के रूप में मजदूरों की दयनीय स्थिति – रूस की बहुसंख्यक जनता कृषक थी जो अपने छोटे – छोटे खेत पर पुराने ढंग से खेती करती थी । दयनीय आर्थिक स्थिति में भी वे करों के बोझ से दबे हुए थे । मजदूरों को कम मजदूरी में अधिक काम करना होता था । अपनी मांगों के समर्थन में वे हड़ताल भी नहीं कर सकते थे । उन्हें कोई राजनैतिक अधिकार प्राप्त नहीं था । इस प्रकार रूसी जनता की बदहाली ही क्रान्ति का मुख्य कारण थी ।

 

प्रश्न:4  साम्यवाद एक नई आर्थिक एवं सामाजिक व्यवस्था थी , कैसे ?

उत्तर – रूस में बोल्शेविक क्रान्ति के बाद स्थापित साम्यवाद एक नई आर्थिक एवं सामाजिक व्यवस्था बनकर उभरी थी । इस व्यवस्था ने आर्थिक एवं सामाजिक क्षेत्रों में पूँजीपतियों तथा कुलीन वर्ग का प्रभुत्व समाप्त कर दिया । पहले भूमि बड़े भूमिपतियों , जमीन्दारों की निजी सम्पत्ति हुआ करती थी । ये प्रायः विशेषाधिकार प्राप्त कुलीन वर्ग के होते थे । इसी प्रकार उद्योग – धन्धे , फैक्ट्री – कारखाना आदि भी पूँजीपतियों के निजी सम्पत्ति थे । भूमि एवं उद्योग – धन्धों के निजी सम्पत्ति होने से इनकी आर्थिक स्थिति अच्छी , सामाजिक हैसियत ऊँची तथा व्यक्तिगत जीवन विलासपूर्ण था । नई व्यवस्था में कृषि भूमि को राजकीय सम्पत्ति घोषित कर किसानों में बाँट दी गई । किसानों को अतिरिक्त उत्पादन नियत दर पर राज्य को सौंपनी होती थी । उद्योग – धन्धों का भी राष्ट्रीयकरण हो गया । उत्पादन तथा उपभोग की सभी वस्तुओं पर तथा विदेशी व्यापार पर राजकीय एकाधिकार हो गया । उद्योग – धन्धे तथा व्यापार के संचालन हेतु राजकीय तंत्र स्थापित हुए । इस प्रकार , साम्यवाद ने बिल्कुल नई आर्थिक एवं सामाजिक व्यवस्था स्थापित की ।

                                           ( 5 – Marks Questions )

 

प्रश्न:1  यूटोपियन समाजवादियों के विचारों का वर्णन करें ।

उत्तर – ऐतिहासिक दृष्टि से आधुनिक समाजवाद का विभाजन दो चरणों में किया जाता है मार्क्स से पूर्व एवं मार्क्स के पश्चात् । मार्क्सवादी विचारकों ने इन्हें क्रमश : यूटोपियन समाजवाद तथा वैज्ञानिक समाजवाद का नाम दिया ।

प्रथम यूटोपियन समाजवादी एक फ्रांसीसी विचारक सेंट साइमन थे । उनका विचार था कि लोग परस्पर शोषण करने के बजाय मिलजुल कर प्रकृति का दोहन करें । समाज को निर्धन वर्ग के उत्थान हेतु कार्य करना चाहिए ।

एक अन्य विचारक चार्ल्स फौरियर का विचार था कि श्रमिकों को छोटे नगर अथवा कस्बों में काम करना चाहिए । लुई ब्लां का विचार था कि आर्थिक सुधारों को प्रभावकारी बनाने के लिए पहले राजनीतिक सुधार आवश्यक है । एक महत्वपूर्ण

यूटोपियन चिन्तक ब्रिटिश उद्योगपति रॉबर्ट ओवन था । उसकी न्यूलूनार्क ( स्कॉटलैंड ) में एक फैक्ट्री थी । इस फैक्ट्री में उसने श्रमिकों को अच्छी वैतनिक सुविधाएँ प्रदान की और उसने महसूस किया कि इससे लाभ और भी बढ़ गया था । उसका निष्कर्ष थ कि संतुष्ट श्रमिक ही वास्तविक श्रमिक हैं । यूटोपियन चिंतक आरंभिक चिंतक थे जिन्होंने पूँजी और श्रम के बीच संबंधों की समस्या का निराकरण करने का प्रयास किया । इनकी दृष्टि आदर्शवादी थी । ये प्रबुद्ध चिन्तकों की तरह मानव की मूलभूत अच्छाई एवं जगत की पूर्णता में विश्वास किया करते थे । इन्होंने वर्ग संघर्ष के बदले वर्ग समन्वय पर बल दिया ।

 

प्रश्न:2  रूसी क्रांति के प्रभाव की विवेचना करें ।

उत्तर –1917 ई . की रूसी क्रान्ति के कुछ कारण तो दशकों पुराने थे , तात्कालिक कारणों ने व्याप्त असंतोष का विस्फोट कर दिया । ये कारण निम्नलिखित थे

( i ) तात्कालिक कारण प्रथम विश्वयुद्ध में रूस की पराजय- क्रीमिया युद्ध में रूस की पराजय ने रूस में सुधारों का युग आरंभ किया । 1905 ई ० में रूस – जापान युद्ध में रूस की पराजय ने रूस में पहली क्रांति को जन्म दिया । इसी प्रकार प्रथम विश्वयुद्ध में रूस की पराजय 1917 ई . की क्रान्ति का तात्कालिक कारण बनी । युद्ध में कृषि तथा उद्योग से जुड़े लोग भी सैनिक कार्य हेतु भेजे गये जिसका प्रतिकूल असर अनाज एवं अन्य उत्पादों के उत्पादन पर पड़ा और दुर्भिक्ष की स्थिति उत्पन्न गई । मार्च , 1917 ई . तक स्थिति नियंत्रण से बाहर हो गयी । जनता ‘ रोटी दो ‘ के नारे लगाती सड़क पर उतर गई और क्रान्ति की शुरुआत हो गई ।

( ii ) जार की निरंकुशता एवं अयोग्य शासन – यद्यपि 19 वीं सदी के मध्य में राजतंत्र की शक्ति सीमित की जा चुकी थी , रूसी राजतंत्र अपना विशेषाधिकार छोड़ने को तैयार नहीं था । जार निकोलस – द्वितीय राजा के दैवी अधिकारों में विश्वास रखता था । जार की अफसरशाही अस्थिर , जड़ तथा अकुशल थी । गलत सलाहकारों के कारण जार की स्वेच्छाचारिता बढ़ती गई , जनता की स्थिति बद से बदतर होती गई ।

( iii ) कृषकों एवं मजदूरों की दयनीय स्थिति – रूस की बहुसंख्यक जनता कृषक मजदूर थी जो अपने छोटे – छोटे खेत पर पुराने ढंग से खेती करती थी । दयनीय आर्थिक स्थिति में भी वे करों के बोझ से दबे हुए थे । मजदूरों को कम मजदूरी में अधिक काम करना होता था । उन्हें कोई राजनैतिक अधिकार नहीं थे । अपनी माँगों के समर्थन में वे नहीं कर सकते थे ।

( iv ) औद्योगीकरण की समस्या – रूस में कुछ ही क्षेत्रों में उद्योग संकेन्द्रित था । राष्ट्रीय पूँजी के अभाव में विदेशी पूँजी पर निर्भरता बढ़ गई थी । विदेशी पूँजीपति आर्थिक शोषण करते थे ।

( v ) रूसीकरण की नीति – रूस की जनता में यहूदी , पोल , फिन , उजबेक , तातार , कजाक , आर्मीनियन , रूसी आदि जातियों के लोग थे । इनकी भाषा व रस्म – रिवाज भिन्न – भिन्न थे । जार द्वारा सभी पर रूसी भाषा , शिक्षा एवं संस्कृति लादने के प्रयासों से ये सभी असंतुष्ट थे । सामाजिक विज्ञान हड़ताल भी

( vi ) बौद्धिक क्रान्ति एवं मावसवाद- लियो टॉलस्टॉय , दोस्तोवस्की , तुर्गनेव जैसे चिंतक लोगों में राजनीतिक जागृति ला रहे थे । कार्ल मार्क्स का समाजवादी विचार मजदूरों तथा किसानों को प्रभावित कर रहा था । स्लेखानोव का साम्यवाद भी जारशाही के खिलाफ था ।

 

प्रश्न:3 कार्ल मार्क्स की जीवनी एवं सिद्धांतों का वर्णन करें ।

उत्तर – कार्ल मार्क्स का जन्म 5 मई , 1818 ई ० को जर्मनी में राइन प्रांत के ट्रियर नगर में एक यहूदी परिवार में हुआ था । उनके पिता हेनरिक मार्क्स एक प्रसिद्ध वकील थे । कार्ल मार्क्स ने बोन विश्वविद्यालय में विधि की शिक्षा ग्रहण की । 1836 ई ० में वे बर्लिन विश्वविद्यालय चले आये । 1843 ई ० में उन्होंने अपने बचपन की मित्र जेनी से विवाह किया । मार्क्स , हीगल के विचारों से प्रभावित थे । उनके राजनीतिक तथा सामाजिक जीवन पर मोंटेस्क्यू तथा रूसो के विचारों का गहन प्रभाव था । कार्ल मार्क्स की मुलाकात पेरिस में 1844 ई . में फ्रेडरिक एंजेल्स से हुई । एंजेल्स के विचारों एवं रचनाओं से प्रभावित होकर मार्क्स ने भी श्रमिक वर्ग के कष्टों एवं उनकी कार्य की दशाओं पर गहन चिंतन आरम्भ कर दिया । मार्क्स ने एंजेल्स के साथ मिलकर 1848 ई . में फ्रेडरिक एंजेल्स से हुई । एंजेल्स के विचारों एवं रचनाओं से प्रभावित होकर मार्क्स ने भी श्रमिक वर्ग के कष्टों एवं उनकी कार्य की दशाओं पर गहन चिंतजन आरम्भ कर दिया । मार्क्स ने एंजेल्स के साथ मिलकर 1848 ई . में एक साम्यवादी घोषणा पत्र प्रकाशित किया , जिसे आधुनिक समाजवाद का जनक कहा जाता है । समाजवादी आन्दोलन के इतिहास की यह एक अत्यन्त महत्वपूर्ण घटना थी -1864 ई ० में प्रथम अंतर्राष्ट्रीय संघ की स्थापना का श्रेय मार्क्स को ही है । इसके उद्घाटन भाषण में मार्क्स ने मजदूरों को कहा वे अपनी मुक्ति स्वयं ही और अपने प्रयत्नों द्वारा ही प्राप्त कर सकते हैं । मार्क्स विश्व के उन गिने – चुने चिंतकों में से एक हैं , जिन्होंने इतिहास की धारा को व्यापक रूप से प्रभावित किया । मार्क्स ने 1867 ई . में दास – कैपिटल नामक पुस्तककी रचना की जिसे ” समाजवादियों की बाइबिल ” कहा जाता है । कार्ल मार्क्स की मृत्यु 1883 ई ० में हुई ।

कार्ल मार्क्स ने कई सिद्धांत दिए जैसे –

( i ) द्वंद्वात्मक भौतिकवाद का सिद्धांत ,

( ii ) वर्ग – संघर्ष का सिद्धांत ,

( iii ) मूल्य एवं अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत ,

( iv ) राज्यहीन व वर्गहीन समाज की स्थापना ,

( v ) इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या । कार्ल मार्क्स के इन्हीं सिद्धांतों ने सत्ता को राजशाही तथा कुलीन वर्ग के हाथों से लेकर सर्वहारा वर्ग के हाथों में सौंपकर युगान्तकारी परिवर्तन किया ।

 

प्रश्न:4 रूस की क्रांति ने पूरे विश्व को कैसे प्रभावित किया ?

                             अथवा ,

रूसी क्रांति का विश्व पर क्या प्रभाव पड़ा ?

उत्तर – 20 वीं सदी के इतिहास में रूसी क्रांति का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि इसका प्रभाव संसार के सारे राष्ट्रों पर पड़ा जो निम्नलिखित

( i ) शासन पर कृषकों व श्रमिकों का अधिकार इस क्रांति के फलस्वरूप सर्वहारा वर्ग की सत्ता रूस में स्थापित हो गयी तथा पूँजीपतियों एवं कुलीन वर्ग का प्रभाव समाप्त हो गया । इसने अन्य देशों में भी आन्दोलन के लिए प्रोत्साहन प्रदान किया ।

( ii ) नवीन साम्यवादी विचारों का जन्म – रूसी क्रान्ति ने जो साम्यवादी ढाँचा उपस्थित किया उससे नई सभ्यता , संस्कृति तथा समाज का प्रसार हुआ । साथ ही विश्वभर नवीन साम्यवादी विचारों का विस्तार हुआ ।

( iii ) विश्व का दो खेमों विभाजन – रूसी क्रान्ति के बाद विचारधारा के स्तर पर विश्व दो खेमों में विभाजित हो गया साम्यवादी विश्व तथा पूँजीवादी विश्व । यूरोप भी दो भागों में विभाजित हो गया पूर्व यूरोप तथा पश्चिमी यूरोप ।

( iv ) अन्तर्राष्ट्रीय तनाव का सूत्रपात – विश्व साम्यवाद को पूँजीवादी एक खतरा मानते हुए इसके प्रसार को रोकना चाहते थे जबकि साम्यवादी इसे विश्व क्रान्ति के रूप में देखना चाहते थे । अत : दोनों खेमों के बीच तनाव का सूत्रपात हुआ । सामाजिक विज्ञान

( v ) औपनिवेशिक स्वतंत्रता को बढ़ाना रूसी क्रान्ति की सफलता ने एशिया और अफ्रीका में उपनिवेश मुक्ति तथा औपनिवेशिक स्वतंत्रता को भी प्रोत्साहन दिया । रूस की साम्यवादी सरकार ने एशियाई और अफ्रीकी देशों में होने वाली राष्ट्रीय आन्दोलन का वैचारिक समर्थन प्रदान किया ।

( vi ) नवीन आर्थिक मॉडल का उदय – रूसी क्रान्ति के उपरान्त रूस में आर्थिक आयोजन के रूप में एक नया आर्थिक मॉडल आया । पूँजीवादी देशों ने भी परिवर्तित रूप में इस मॉडल को अपनाया । इस प्रकार अपने व्यापक प्रभावों के कारण रूसी क्रान्ति एक युगान्तकारी घटना थी ।

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