( 2 – Marks Questions )
प्रश्न:1 घरेलू और कुटीर उद्योग को परिभाषित करें ।
उत्तर – घरेलू उद्योग घरेलू माहौल में अत्यन्त कम पूँजी लगाकर शुरू किये जाने वाले उद्योग घरेलू कहलाते हैं । गुड़ बनाना , अचार बनाना आदि घरेलू उद्योग के उदाहरण हैं । कुटीर उद्योग कम पूँजी , छोटे संसाधन एवं कम व्यक्तियों के सहयोग से शुरू किए जानेवाले उद्योग कुटीर उद्योग कहलाते हैं । पापड़ निर्माण , अगरबत्ती निर्माण , गेहूँ पीसना , चावल कूटना आदि कुटीर उद्योग हैं ।
प्रश्न:2 औद्योगिक आयोग की नियुक्ति कब हुई ? इसके क्या उद्देश्य थे ?
उत्तर – औद्योगिक आयोग की नियुक्ति 1916 ई ० में हुई । इसकी नियुक्ति का उद्देश्य था उद्योग तथा व्यापार के भारतीय वित्त से संबंधित प्रयत्नों के लिए उन क्षेत्रों का पता लगाना , जिसमें सरकार द्वारा सहायता की जा सके ।
प्रश्न:3 कोयला एवं लौह उद्योग ने औद्योगीकरण को गति प्रदान की । कैसे ?
उत्तर – औद्योगीकरण में या मशीनों के निर्माण हेतु लोहा आवश्यक था । लोहे को पिघलाकर विभिन्न तरह की मशीनों का निर्माण किया जाता था । लोहे को पिघलाने में कोयले की महत्वपूर्ण भूमिका थी । मशीनों को चलाने के लिए वाष्प का प्रयोग होता था । जिसके निर्माण में लीहा के पात्र तथा ईंधन स्वरूप कोयला का उपयोग होता था । इस प्रकार मशीनों के निर्माण से लेकर उनके परिचालन तक में लोहे और कोयले का प्रयोग आवश्यक था । अतः यह कहा जा सकता है कि कोयला और लौह उद्योग ने औद्योगीकरण को गति प्रदान की ।
प्रश्न:4 औद्योगीकरण से आप क्या समझते है ?
उत्तर – औद्योगीकरण भारी संख्या में नये – नये मशीनों के प्रयोग को कहते हैं । वस्तुओं के उत्पादन में मानव श्रम की अपेक्षा मशीनों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है । इसमें उत्पादन वृहत् पैमाने पर होता है जिसकी खपत के लिए बड़े बाजार की आवश्यकता होती है । इसके प्रेरक तत्व के रूप में मशीनों के अलावा पूँजी निवेश , विस्तृत बाजार , परिवहन तंत्र एवं श्रम का भी महत्वपूर्ण स्थान है
प्रश्न:5 न्यूनतम मजदूरी कानून कब पारित हुओ और इसके क्या उद्देश्य थे ?
उत्तर- कारखाना – मालिकों द्वारा अधिकाधिक लाभ के उद्देश्य से मजदूरों से अधिक – से – अधिक काम लिया जाता और मजदूरी कम – से – कम दी जाती थी । अत : मजदूरों के लिए सन् 1948 ई ० में न्यूनतम मजदूरी कानून पारित किया गया । इसके द्वारा कुछ उद्योगों में मजदूरी की दरें निश्चित की गईं । इसी आधार पर द्वितीय पंचवर्षीय योजना में यह विचार रखा गया की मजदूरों की न्यूनतम मजदूरी उनके केवल गुजारा कर लेने भर न होकर इससे कुछ अधिक हो ताकि वह अपनी कुशलता को भी बनाये रख सकें । न्यूनतम मजदूरी कानून के पारित होने से मजदूरों की दशा में सुधार की शुरुआत हुई
प्रश्न:6 स्लम से आप क्या समझते हैं ? इसकी शुरूआत क्यों और कैसे हुई ?
उत्तर – छोटे , गंदे और अस्वास्थ्यकर स्थानों में जहाँ फैक्ट्री मजदूर निवास करते थे वैसे आवासीय स्थलों को ‘ स्लम ‘ कहा जाता है । औद्योगीकरण के फलस्वरूप बड़े – बड़े कारखाने स्थापित हुए जिसमें काम करने के लिए बड़ी संख्या में गाँवों से मजदूर पहुँचने लगे । वहाँ रहने के कोई व्यवस्था नहीं थी । मजदूर कारखाने के निकट रहें , इसलिए कारखानों के मालिकों ने उनके लिए छोटे – छोटे तंग मकान बनवाए जिनमें सुविधाएँ उपलब्ध नहीं थीं । इन मकानों में हवा , पानी तथा रोशनी तथा साफ – सफाई की व्यवस्था भी नहीं थी । इस प्रकार औद्योगीकरण के फलस्वरूप स्लम पद्धति की शुरू आत हुई ।
( 5 – Marks Questions )
प्रश्न:1 उपनिवेशवाद से आप क्या समझते हैं ? औद्योगीकरण ने उपनिवेशवाद को जन्म दिया , कैसे ?
उत्तर – देश से बाहर किसी दूसरे देश में आर्थिक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु राज्य स्थापित करने की नीति को उपनिवेशवाद कहते हैं । उपनिवेशवाद में प्राय : तकनीक रूप से कमजोर देश पर आर्थिक नियंत्रण स्थापित की जाती है । औद्योगीकरण की शुरुआत सर्वप्रथम ब्रिटेन में सूती वस्त्र उद्योग से हुई । तत्पश्चात क्रमशः अन्य औद्योगीकरण हुआ । विभिन्न प्रकार के मशीनों का आविष्कार तथा फैक्ट्रियों की स्थापना के परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर उत्पादन होना शुरू हुआ । मशीनों की क्षता का अधिकतम उपयोग कर अधिकतम लाभ लिया जा सके । इसके लिए अधिक मात्रा में कच्चे माल की आवश्यकता थी । साथ ही बड़े पैमाने पर उत्पादित होने वाले उत्पादों की खपत हेतु बड़े बाजार की भी आवश्यकता थी । उपनिवेश स्थापित करने से इन दोनों आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाती है । तकनीक रूप से कमजोर देश अपने प्राकृतिक संसाधनों या कच्चे माल का अधिक उपयोग नहीं कर पाते हैं । फलत : वहाँ से कच्चा माल आसानी से प्राप्त हो सकता है । साथ ही ऐसे देशों के मशीनीकरण नहीं होने से सस्ते उत्पाद का अभाव होता है । अत : मशीनों से बने सस्ते उत्पादों के लिए यहाँ अच्छा बाजार मिल सकता है । इसी समझ के आधार पर उपनिवेश स्थापित करने की नीति को बढ़ावा मिला । ब्रिटेन और उसके बाद अन्य यूरोपीय देशों में जैसे – जैसे औद्योगीकरण होता गया वैसे – वैसे ये देश की उपनिवेशों की स्थापना में लग गए । इस प्रकार औद्योगीकरण होड़ ने साम्राज्यवाद का रूप ले लिया ।
प्रश्न:2 भारत में औद्योगीकरण के परिणामस्वरूप होने वाले परिवर्तनों पर प्रकाश डालें ।
उत्तर- ब्रिटेन में औद्योगीकरण के जिस नये युग का सूत्रपात हुआ , भारत में भी औद्योगीकरण की शुरुआत शीघ्र हो गई । भारत में औद्योगीकरण के निम्नलिखित परिवर्तन दृष्टिगोचर हुए
( i ) नगरों का विकास – औद्योगीकरण के फलस्वरूप भारत में वस्त्र , लोहा , सीमेंट , कोयला जैसे कई उद्योगों का विकास हुआ । जमशेदपुर , सिंदरी , धनबाद , डालमियानगर , रानीगंज , मुम्बई , अहमदाबाद आदि का औद्योगिक नगरों के रूप में विकास हुआ ।
( ii ) साम्राज्य – राष्ट्रवाद का विकास –औद्योगीकरण के कारण भारी मात्रा में कच्चे माल तथा उत्पादों की खपत हेतु बड़े बाजार की आवश्यकता थी । उपनिवेशों में ये दोनों ही उपलब्ध थे । उपनिवेशों की होड़ ने साम्राज्यवाद को जन्म दिया । साम्राज्यवाद के शोषण से शोषितों में राष्ट्रवाद की भावना जगी । भारत में भी अंग्रेजों ने पहले उपनिवेश स्थापित किया फिर साम्राज्य स्थापित किया । अंग्रेजों के शोषण से भारतीयों में राष्ट्रवाद का भाव जागा । फलतः उन्होंने स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया ।
( iii ) समाज में वर्ग विभाजन – औद्योगीकरण के बाद समाज में तीन वर्गों का उदय हुआ पूँजीपति , बुर्जुआ तथा मजदूर वर्ग । उद्योग में पूँजी लगाने वाले उद्योगपति हो गए । बुर्जुआ वर्ग मध्यम वर्ग था । यद्यपि भारत में कृषक मजदूर तथा चाय , कॉफी एवं रबर के बागानों में बागान मजदूर पहले से थे किन्तु औद्योगीकरण के बाद फैक्ट्री मजदूर वर्ग का उदय हुआ ।
( iv ) स्लम पद्धति की शुरुआत – औद्योगीकरण के फलस्वरूप नवोदित फैक्ट्री मजदूर वर्ग शहरों में छोटे – छोटे घरों में रहने लगे । इस प्रकार स्लम पद्धति की शुरुआत हुई । इस प्रकार औद्योगीकरण के फलस्वरूप व्यापक आर्थिक , सामाजिक तथा राजनीतिक परिवर्तन हुए ।