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Class 10 Science NCERT Solutions in Hindi Chapter – 6 जैव-प्रक्रम

Class 10 Science NCERT Solutions in Hindi Chapter – 6 जैव-प्रक्रम

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Class 10 Science NCERT Solutions in Hindi Chapter – 6 जैव-प्रक्रम

पृष्ठ-105

प्रश्न 1. हमारे जैसे बहुकोशिकीय जीवों में ऑक्सीजन की आवश्यकता पूरी करने मेंविसरण क्यों अपरयाप्त है?

उत्तर :- बहुकोशी जीवों में उनकी केवल बाहरी त्वचा की कोशिकाएं और रंध्र ही आस- पास के वातावरण से सीधे संबंधित होते हैं। उनकी सभी कोशिकाएं तथा भीतरी अंग सीधे अपने आस-पास के वातावरण से संबंधित नहीं रह सकते । वे ऑक्सीजन की अपनी आवश्यकता पूरी करने के लिए विसरण पर आश्रित नहीं रह सकते। श्वसन, गैसों के आदान-प्रदान तथा अन्य कार्यों के लिए विसरण बहुकोशी जीवों की आवश्यकता के लिए बहुत कम और धीमा है। यदि हमारे शरीर में विसरण के दूवारा ऑक्सीजन गति करती तो हमारे फुफ्फुस से ऑक्सीजन के एक अणु को पैर के अंगूठे तक पहुँचने में लगभग 3 वर्ष का समय लगता। हम स्वयं ही सोच सकते हैं कि उस अवस्था में क्या हमारा जीवन संभव होता ? हमारे शरीर में विद्यमान रक्त में हीमोग्लोबिन ही तेज़ी से हमें ऑक्सीजन कराता है।

 

प्रश्न 2. कोई वस्तु सजीव है, इसका निर्धारण करने के लिए हम किस मापदंड का उपयोग करेंगे?

उत्तर :- सभी जीवित वस्तुएं सजीव कहलाती हैं। वे रूप-आकार, रंग आदि की दृष्टि से समान भी होते हैं तथा भिन्न भी। पशु गति करते हैं, बोलते हैं, साँस लेते हैं, खाते हैं, वंश वृद्धि करते हैं और उत्सर्जन करते हैं। पेड़-पौधे बोलते नहीं हैं, भागते- दौड़ते नहीं हैं पर फिर भी वे सजीव हैं। अति सूक्ष्म स्केल पर होने वाली उनकी गतियाँ दिखाई नहीं देतीं। अणुओं की गतियाँ न होने की अवस्था में वस्तु को निर्जीव माना जाता है। यदि वस्तु में अणुओं में गति हो तो वस्तु सजीव मानी जाती है। सामान्यत: सजीवों में निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं-

1. सजीवों की संरचना सुसंगठित होती है।

2. उनमें कोशिकाएँ और ऊतक होते हैं।

3. उनकी संगठित और सुव्यवस्थित संरचना समय के साथ पर्यावरण के प्रभाव से बिघटित होने लगती है।

4. सजीवों की निश्चित रूप से मृत्यु होती है।

5. सजीव अपने शरीर की मरम्मत और अनुरक्षण करते हैं। उनकी संरचना अणुओं से हुई है और उन्हें अणुओं को लगातार गतिशील बनाए रखना चाहिए।

6. सजीवों में विशेष सीमा में वृद्धि होती है।

7. उनके शरीर में रासायनिक क्रियाओं की श्रृंखला चलती है। उनमें उपचय- अपचय अभिक्रियाएँ होती हैं।

 

प्रश्न 3. किसी जीव दवारा किन कच्ची सामग्रियों का उपयोग किया जाता है?

उत्तर :- किसी जीव के दूवारा जिन कच्ची सामग्रियों का उपयोग किया जाता है, वे हैं—

1. ऊर्जा प्राप्ति के लिए उचित पोषण।

2. श्वसन के लिए पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन।

 

प्रश्न 4. जीवन के अनुरक्षण के लिए आप किन प्रक़म को आवश्यक मानेंगे?

उत्तर :- जीवन के अनुरक्षण के लिए जो प्रक्रम आवश्यक माने जाने चाहिएं, वे हैं-पोषण, श्वसन, परिवहन और उत्सर्जन।

 

पृष्ठ-111

प्रश्न 1. स्वयंपोषी पोषण तथा विषमपोषी पोषण में क्या अंतर हैं?

उत्तर :- स्वयंपोषी पोषण और विधमपोषी (परपोषी) पोषण में अंतर—

स्वयंपोषी पोषण

विषमपोषी पोषण

वे जीव जो प्रकाश संश्लेषण की क्रिया

दूवारा सरल अकार्बनिक से जटिल

कार्बनिक पदार्थों का निर्माण करके

अपना स्वयं पोषण करते हैं, स्वयंपोषी

जीव (Auto trophs) कहलाते हैं।

उदाहरण–सभी हरे पौधे, युग्लीना।

वे जीव जो कार्ननिक पदार्थ और ऊर्जा

को अपने भोज्य पदार्थ के रूप में अन्य

जीवित या मृत पौधों या जंतुओं से

ग्रहण करते हैं, विषमपोषी जीव

(Hetero trophs) कहलाते हैं।

उदाहरण–युग्लीना को छोड़कर सभी

जंतु । अमरबेल, जीवाणु, कवक आदि ।

 

प्रश्न 2. प्रकाश संश्लेघषण के लिए आवश्यक कच्ची सामग्री पौधा कहाँ से प्राप्त करता है?

उत्तर :- प्रकाश संश्लेषण के लिए आवश्यक कच्ची सामग्री कार्बन-डाइऑक्साइड ऊर्जा, खनिज लवण तथा जल है। पौधे कार्बन डाइऑक्साइड वातावरण से प्राप्त करते है और जल भूमि से।

 

प्रश्न 3. हमारे अमाशय में अम्ल की भूमिका क्या है?

उत्तर :- अमाशय की भित्ति में उपस्थित जठर ग्रंथियों से हाइड्रोक्लोरिक अम्ल उत्पन्न होता है। यह अम्लीय माध्यम तैयार करता है जो पेप्सिन एंजाइम की क्रिया में सहायक होता है। यह भोजन को सड़ने से रोकता है। यह भोजन के साथ आए जीवाणुओं को नष्ट कर देता है। भोजन में उपस्थित Ca को कोमल बनाता है। यह पाइलोरिफ छिद्र के खुलने और बंद होने पर नियंत्रण रखता है। यह निष्क्रिय एंजाइमों (enzymes) को सक्रिय अवस्था में लाता है।

 

प्रश्न 4. पाचक एंजाइमों का क्या कार्य है?

उत्तर :- एंजाइम वे जैव उत््रेरक होते हैं जो जटिल पदार्थों को सरल पदार्थों में खंडित करने में सहायता प्रदान करते हैं । ये पाचन क्रिया में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और वसा के पाचन में सहायक बनते हैं । उदर में लाइपेज नामक एंजाइम वसा को वसीय अम्ल और ग्लिसरॉल में बदलता है। रेनिन नामक एंजाइम क्रिया कर पेप्सिन की सहायता करता है और इसमें दूध-प्रोटीन पर पेप्सिन की क्रिया अवधि बढ़ जाती है। पित्त रस भोजन के माध्यम को क्षारीय बनाकर वसा को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ देता है और उनका इमल्सीकरण करता है। अग्न्याशय रस इमल्शन बने वसीय को वसा अम्ल और ग्लिसरॉल में बदल देता है। एमाइलेज भोजन के कार्बोहाइड्रेट को माल्टोज़ में बदल देता है। छोटी आंत की आंतरिक दीवारों से पैप्टिडेन, आंत्र लाइपेज, सुक्रेज, माल्टोत्त और लेक्टोज़ निकलकर भोजन को पचने में सहायक बनते हैं । ये एंजाइम प्रोटीन को अमीनों अम्ल, जटिल कार्बोहाइड्रेट को ग्लूकोज़ में तथा वसा को वसा अम्ल तथा ग्लिसरॉल में बदल देते है।

 

प्रश्न 5. पचे हुए भोजन को अवशोधित करने के लिए क्षुद्रांत्र को कैसे अभिकल्पित किया गया है?

उत्तर– पचे हुए भोजन को आंत्र की भित्ति अवशोषित कर लेती है। क्षु्रांत्र के आंतरिक आस्तर पर अँगुली जैसे अनेक प्रवर्ध होते हैं, जिन्हें दीर्घ रोम कहते हैं । ये अवशोषण के सतही क्षेत्रफल को बढ़ा देते हैं। इनमें रुधिर वाहिकाओं की अधिकता होती है जो भोजन को अवशोषित करके शरीर की प्रत्येक कोशिका तक पहुँचाने का कार्य करते हैं । यहाँ इसका उपयोग ऊर्जा प्राप्त करने, नए ऊतकों का निर्माण करने तथा पुराने ऊतकों की मरम्मत के लिए किया जाता है।

 

पृष्ठ-116

प्रश्न 1. श्वसन के लिए ऑक्सीजन प्राप्त करने की दिशा में एक जलीय जीव की अपेक्षा स्थलीय जीव किस प्रकार लाभप्रद हैं ?

उत्तर– जलीय जीव जल में घुली हुई ऑक्सीजन का श्वसन के लिए उपयोग करते हैं। जल में घुली हुई ऑक्सीजन की मात्रा वायु में उपस्थित ऑक्सीजन की मात्रा की तुलना में बहुत कम है। इसलिए जलीय जीवों के श्वसन की दर स्थलीय जीवों की अपेक्षा अधिक तेज़ होती है। मछलियाँ अपने मुँह के दूवारा जल लेती हैं और बल- पूर्वक इसे क्लोम तक पहुँचाती हैं । वहाँ जल में घुली हुई ऑक्सीजन को रुधिर प्राप्त कर लेता है।

 

प्रश्न 2. ग्लूकोज़ के ऑक्सीकरण से भिन्न जीवों में ऊर्जा प्राप्त करने के विभिन्‍न पथ क्या हैं?

उत्तर– श्वसन एक जटिल पर अति आवश्यक प्रक्रिया है। इसमें ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड का आदान-प्रदान होता है तथा ऊर्जा मुक्त करने के लिए खाद्य का ऑक्सीकरण होता है।

                             C6H12O6 + 6O2 6CO2 + 6H2O + ऊर्जा

श्वसन एक जैव रासायनिक प्रक्रिया है । श्वसन क्रिया दो प्रकार की होती है–

 

( क ) बवायवीय श्वसन ( ऑक्सी श्वसन )–इस प्रकार के श्वसन में अधिकांश प्राणी ऑक्सीजन का उपयोग करके श्वसन करते हैं । इस प्रक्रिया में ग्लूकोज़ पूरी तरह से कार्बन डाइऑक्साइड और जल में विखंडित हो जाता है। यह माइटोकॉड्रिया में होती हैं।




 


चूंकि यह  प्रक्रिया वायु की उपस्थिति में होती है इसलिए इसे वायवीय श्वसन कहते हैं।

 

( ख ) अवायवीय श्वसन ( अनाक्सी श्वसन )–यह श्वसन प्रक्रिया ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में होती है। जीवाणु और यीस्ट इस क्रिया से श्वसन करते हैं। इस प्रक्रिया में इधाइल एल्‍्कोहल, CO2 तथा ऊर्जा उत्पन्न होती है।


 


 


(ग) ऑक्सीजन की कमी हो जाने पर–कभी-कभी हमारी पेशी कोशिकाओं में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। पायरूवेट के विखंडन के लिए दूसरा रास्ता अपनाया जाता है। तब पायरूवेट एक अन्य तीन कार्बन वाले अणु लैक्टिक अम्ल में बदल जाता है। इसके कारण क्रैम्प हो जाता है।



प्रश्न 3. मनुष्यों में ऑक्सीजन तथा कार्बनडाइऑक्साइड का परिवहन कैसे होता है?

उत्तर :- जब हम श्वास अंदर लेते हैं तब हमारी पसलियाँ ऊपर उठती हैं और डायाफ्राम चपटा हो जाता है। इस कारण वक्षगुहिका बढ़ी हो जाती है और वायु फुफ्फुस के भीतर चली जाती है। वह विस्तृत कूपिकाओं को भर लेती है। रुघिर सारे शरीर से CO2 को कूपिकाओं में छोड़ने के लिए लाता है। कूपिका रुघिर वाहिका का रुघिर कूपिका वायु से ऑक्सीजन लेकर शरीर की सभी कोशिकाओं तक पहुँचाता है। श्वास चक्र के समय जब वायु अंदर और बाहर होती है तब फुफ्फुस वायु का अवशिष्ट आयतन रखते हैं । इससे ऑक्सीजन के अवशोषण और कार्बन डाइऑक्साइड के मोचन के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है।





प्रश्न 4. गैसों के विनिमय के लिए मानव-फुफ्फुस में अधिकतम शक्षेत्रफल को कैसे अधिकाल्पित किया है ?

उत्तर– जब हम श्वास अंदर लेते हैं तब हमारी पसलियां ऊपर उठती हैं । वे बाहर की ओर झुक जाती हैं । इसी समय डायाफ्राम की पेशियां संकुचित तथा उदर पेशियां शिथिल हो जाती हैं। इससे वक्षीय गुहा का क्षेत्रफल बढ़ता है और साथ ही फुफ्फुस का क्षेत्रफल भी बढ़ जाता है जिसके परिणामस्वरूप श्वसन पथ से वायु अंदर आकर

फेफड़े में भर जाती है।

 

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प्रश्न 1. मानव में वहन तंत्र के घटक कौन-से हैं ? इन घटकों के क्या कार्य हैं ?

उत्तर– मानव में वहन तंत्र के प्रमुख दो घटक हैं–रुधिर और लसीका।

(क ) रुधिर के कार्य—

(1) फेफड़ों से ऊतकों तक ऑक्सीजन का परिवहन करना।

(2) विभिन्‍न ऊतकों में कार्बन-डाइऑक्साइड को एकत्रित करके उसका फेफड़ों तक परिवहन करना।

(3) उपाचय में बने विषैले एवं हानिकारक पदार्थों को एकत्रित करके अहानिकारक बनाने के लिए यकृत में भेजना

(4) विभिन्‍न प्रकार के उत्सर्जी पदार्थों का उत्सर्जन हेतु वृक्कों तक पहुँचाना ।

(5) विभिन्‍न प्रकार के हॉर्मोनों का परिवहन करना।

(6) छोटी आँतों से परिजय भोज्य पदार्थों का अवशोषण भी रक्त प्लाज़्मा दूवारा होता है जिसे यकृत और विभिन्‍न ऊतकों में भेज दिया जाता है।

(7) शरीर के तापक्रम को उष्मा वितरण दूवारा नियंत्रित रखना।

(8) रुधिर के श्वेत रक्त कणिकाएं हानिकारक बैक्टीरियाओ, मृतकोशिकाओं तथा रोगाणुओं का भक्षण करके उन्हें नष्ट कर देता है।

(9) विभिन्‍न प्रकार के एंज़ाइमों का परिवहन करता है।

(10) पहिकाएं तथा फाइब्रिनोज्चिन नामक प्रोटीन रक्त में उपस्थित होती है जो रक्त का थकका जमने में सहायक होते हैं।

 

(ख ) लसीका के कार्य—

(1) लसिका ऊतकों तक भोज्य पदार्थों का संवहन करती है।

(2) ऊतकों से उत्सर्जी पदार्थों को एकत्रित करती है।

(3) हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करके शरीर की रक्षा करती है।

(4) शरीर के घाव भरने में सहायक होती है।

(5) पचे वसा का अवशोषण करके शरीर के विभिन्‍न भागों तक ले जाती है।

 

प्रश्न 2. स्तनधारी तथा पक्षियों में ऑक्सीजनित तथा विऑक्सीजनित रुधिर को अलग करना क्यों आवश्यक हैं ?

उत्तर– स्तनधारी तथा पक्षियों में उच्च तापमान को बनाए रखने के लिए अपेक्षाकृत अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है। ऑक्सीजनित और विऑव्सीजनित रुघिर को हदय के दायें और बायें भाग से आपस में मिलने से रोकना परम आवश्यक है। इस प्रकार का बंटवारा शरीर को उच्च दक्षतापूर्ण ऑक्सीजन की पूर्ति करता है।

 

प्रश्न 3. उच्च संगठित पादप में वहन तंत्र के घटक क्या हैं?

उत्तर– उच्च संगठित पादप में वहन तंत्र के दो घटक हैं- ज्ञाइलम और फ्लोयम। पादपों में जिस जल की रंध्र के द्वारा हानि होती है उसका प्रतिस्थापन पत्तियों में ज्ञाइलम वाहिकाओं द्वारा हो जाता है। कोशिका से जल के अणुओं का वाष्पण एक चूषण उत्पन्न करता है, जो जल को जड़ों में उपस्थित ज्ञाइलम कोशिकाओं दूवारा खींचता है । वाष्पोत्सर्जन, जल के अवशोषण और जड़ से पत्तों तक जल और उसमें घुले हुए लवणों के उपरिमुखी गति में सहायक है। यह ताप के नियमन में भी सहायक है। जल के वहन में मूल दाब रात्रि के समय विशेष रूप से प्रभावी है। दिन के समय जब रंध्र खुले होते हैं और वाष्पों का उत्सर्जन होता है तब ज़ाइलम ही उसका संतुलन रखता है।

 

प्रश्न 4. पादप में जल और खनिज लवण का वहन कैसे होता है?

उत्तर– पादप शरीर के निर्माण के लिए आवश्यक जल और खनिज लवणों को अपने निकट विद्यमान मिट्टी से प्राप्त करते हैं।

1. जल–हर प्राणी के लिए जल जीवन का आधार है। पौधों में जल ज़ाइलम ऊतकों के दूवारा अन्य भागों में जाता है। जड़ों में धागे जैसी बारीक रचनाओं की बहुत बड़ी संख्या होती है । इन्हें मूलरोम कहते हैं । ये मिट्टी में उपस्थित पानी से सीधे संबंधित होते हैं। मूलरोम में जीव द्रव्य की सांद्रता मिट्टी में जल के घोल की अपेक्षा अधिक होती है। परासरण के कारण पानी मूलरोमों में चला जाता है पर इससे मूलरोम के जीव द्रव्य की सांद्रता में कमी आ जाती है और वह अगली कोशिका में चला जाता है। यह क्रम निरंतर चलता रहता है जिस कारण

पानी ज्ञाइलम वाहिकाओं में पहुँच जाता है। कुछ पौधों में पानी 10 से 100 सेमी० प्रति मिनट की गति से ऊपर चढ़ जाता है।

 

2. खनिज–पेड़-पौधों को खनिजों की प्राप्ति अजैविक रूप में करनी होती है। नाइट्रेट, फॉस्फेट आदि पानी में घुल जाते हैं और जड़ों के माध्यम से पौधों में प्रविष्ट हो जाते हैं। वे पानी के माध्यम से सीधा जड़ों से संपर्क में रहते हैं। पानी और खनिज मिल कर ज़ाइलम ऊतक में पहुँच जाते हैं और वहाँ से शेष भागों में चले जाते हैं। जल तथा अन्य खनिज-लवण ज़ाइलम के दो प्रकार के अवयवों वाहिनिकाओं एवं वाहिकाओं से जड़ों से पत्तियों तक पहुँचाए. जाते हैं । ये दोनों मृत तथा स्थूल कोशिका भित्ति से युक्त होती हैं । वाहिनिकाएं लंबी, पतली, तुर्क सम कोशिकाएं हैं, जिनमें गर्त होते हैं। जल इन्हीं में से होकर एक वाहिनिका से दूसरी वाहिनिका में जाता है । पादपों के लिए वांछित खनिज, नाइट्रेट तथा फॉस्फेट अकार्बनिक लवणों के रूप में मूलरोम दूवारा घुलित अवस्था में अवशोषित कर जड़ में पहुँचाए जाते हैं । यही जड़ें ज्ञाइलम ऊतकों से उन्हें पत्तियों तक पहुंचाते हैं। जल तथा अन्य खनिज-लवण ज़ाइलम के दो प्रकार के अवयवों वाहिनिकाओं एवं वाहिकाओं से जड़ों से पत्तियों तक पहुँचाए जाते हैं। ये दोनों मृत तथा स्थूल कोशिका भित्ति से युक्त होती हैं । वाहिनिकाएं लंबी, पतली, तुर्क सम कोशिकाएं हैं, जिनमें गर्त होते हैं। जल इन्हीं में से होकर एक वाहिनिका से दूसरी वाहिनिका में जाता है। पादपों के लिए वांछित खनिज, नाइट्रेट तथा फॉस्फेट अकार्बनिक लवणों के रूप में मूलरोम द्वारा घुलित अवस्था में अवशोषित कर जड़ में पहुँचाए. जाते हैं। यही जड़ें ज्ाइलम ऊतकों से उन्हें पत्तियों तक पहुंचाते हैं।



 

प्रश्न 5. पादप में भोजन का स्थानांतरण कैसे होता है?

उत्तर :- पादपों की पत्तियाँ प्रकाश संश्लेषण क्रिया से अपना भोजन तैयार करती हैं और वह वहाँ से पादप के अन्य भागों में भेजा जाता है। प्रकाश संश्लेषण के विलेय उत्पादों का वहन स्थानांतरण कहलाता है। यह कार्य संवहन ऊतक के फ्लोएम नामक भाग के दूवारा किया जाता है। फ्लोएम इस कार्य के अतिरिक्त अमीनों अम्ल तथा अन्य पदार्थों का परिवहन भी करता है। ये पदार्थ विशेष रूप से जड़ के भंडारण अंगों, फलों, बीजों और वृद्धि वाले अंगों में ले जाए जाते हैं। भोजन तथा अन्य पदार्थों का स्थानांतरण संलग्न साथी कोशिका की सहायता से चालनी नलिका में उपरिमुखी तथा अधोमुखी दोनों दिशाओं में होता है। फ्लोएम से स्थानांतरण का कार्य ज़ाइलम के विपरीत होता है। यह ऊर्जा के उपयोग से पूरा होता है। सुक्रोज्त जैसे पदार्थ फ्लोएम ऊतक में ए टी पी से प्राप्त ऊर्जा से ही स्थानांतरित होते हैं। यह दाब पदार्थों को फ्लोएम से उस ऊतक तक ले जाता है जहां दाब कम होता है। यह पादप की आवश्यकतानुसार पदार्थों का स्थानांतरण कराता है। वसंत ऋतु में यही जड़ और तने के ऊतकों में भंडारित शर्करा का स्थानांतरण कलिकाओं में कराता है जिसे वृद्धि के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है।

 

पृष्ठ-124

प्रश्न 1. वृक्काणु ( नेफ्रॉन ) की रचना तथा क्रिया विधि का वर्णन कीजिए।

उत्तर :- वृक्क (गुर्दे) में आधारी निस्पंदन एकक बहुत बारीक भित्ति वाली रुधिर कोशिकाओं का गुच्छ होता है। वृवक में प्रत्येक कोशिका गुच्छ एक नलिका के कप के आकार के सिरे के अंदर होता है। यह नलिका छने हुए मूत्र को इकट्ठा करती है। हर वृक्क में ऐसे अनेक निस्पंदक एकक होते हैं जिन्हें वृक्काणु (नेफ्रॉन) कहते हैं। ये आपस

में निकटता से पैक रहते हैं। आरंभ में ग्लुकोस, अमीनों अम्ल, लवण, जल आदि कुछ पदार्थ निस्पंद में रह

जाते हैं पर जैसे-जैसे मूल इस में प्रवाहित होता है इन पदार्थों का चयनित छनन हो जाता है वृवकाणु के डायलिसियस का थैला भी कहते हैं क्योंकि इस की प्याले नुमा संरचना बाऊमैन संपुट में स्थिर कोशिका गुच्छ की दीवारों से छनता है। रक्त में उपस्थित प्रोटीन के अणु बड़े होने के कारण छन नहीं पाते हैं । ग्लूकोज और लवण के अणु छोटे होने के कारण छन जाते हैं।



 

 

 

 

 

 

 

 



प्रश्न 2. उत्सर्जी उत्पाद से छुटकारा पाने के लिए पादप किन विधियों का उपयोग करते हैं?

उत्तर– पादपों में उत्सर्जी उत्पाद हैं-कार्बन डाइऑक्साइड, ऑक्सीजन, जलवाष्यों की अधिकता, ‘तरह-तरह के लवण, रेज्न, टेनिन, लैखक्स आदि। पादपों में उत्सर्जन के लिए कोई विशेष अंग नहीं होते। उनमें अपशिष्ट पदार्थ रवों के रूप में इकट्ठे हो जाते हैं जो कि पादपों को कोई हानि नहीं पहुँचाते। पौधों के शरीर से छाल अलग होने पर तथा पत्तियों के गिरने से ये पदार्थ निकल जाते हैं। कार्बन डाइऑक्साइड श्वसन क्रिया का उत्सर्जी उत्पाद है जिस का प्रयोग प्रकाश संश्लेषण क्रिया में कर लिया जाता है। अतिरिक्त जलवाष्प वाष्पोत्सर्जन से बाहर निकाल दिया जाता है। ऑक्सीजन रंध्रों से वातावरण में छोड़ दी जाती है । अतिरिक्त लवण जल वाष्पों के माध्यम से उत्सर्जित कर दिए जाते हैं। कुछ उत्सर्जी पदार्थ फलों, फूलों और बीजों के द्वारा उत्सर्जित कर दिए जाते हैं । जलीय पादप उत्सर्जी पदार्थों को सीधा जल में ही उत्सर्जित कर देते हैं ।

 

प्रश्न 3. मूत्र बनने की मात्रा का नियमन किस प्रकार होता है?

उत्तर– मूत्र बनने की मात्रा इस प्रकार नियंत्रित की जाती है कि जल की मात्रा का शरीर में संतुलन बना रहे। जल की बाहर निकलने वाली मात्रा इस आधार पर निर्भर करती है कि उसे कितना विलेय वर्ज्य पदार्थ उत्सर्जित करना है। अतिरिक्त जल का वृक्क में पुनरावशोषण कर लिया जाता है और उसका पुन: उपयोग हो जाता है।

 

NCERT अभ्यास प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. मनुष्य में वृक्क एक तंत्र का भाग है जो संबंधित है–

(a) पोषण

(b) श्वसन

(c) उत्सर्जन

(d) परिवहन।

उत्तर :- (c)

 

प्रश्न 2.पादप में ज्ञाइलम उत्तरदायी है–

(a) जल का वहन

(b) भोजन का वहन

(c). अमीनों अम्ल का वहन

(d) ऑक्सीजन का वहन।

उत्तर :- (a)

 

प्रश्न 3.स्वपोषी पोषण के लिए आवश्यक है–

(a) कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल

(b) क्लोरोफिल

(c) सूर्य का प्रकाश

(d) उपरोक्त सभी।

उत्तर– (d)

 

प्रश्न 4.पायरुवेट के विखंडन से यह कार्बनडाइऑक्साइड, जल तथा ऊर्जा देता है और यह क्रिया होती है–

(a) कोशिका द्रव्य

(b) माइटोकॉड़िया

(c) हरित लबक

(d) केंद्रक

उत्तर– (b)

 

प्रश्न 5, हमारे शरीर में वसा का पाचन कैसे होता है ? यह प्रक्रम कहाँ होता है?

उत्तर– उदर से प्राप्त अम्लीय और अधपची वसा का पाचन क्षु्ांत् में होता है। यह भाग ं यकृत से पित्त रस प्राप्त करता है। इसे अग्नाशयी रस से लाइपेज़ प्राप्त हो जाता है। अग्नाशयिक एंजाइमों की क्रिया के लिए पित्त रस इसे क्षारीय बनाता है | क्षद्वंत्र में बसा बड़ी गोलिकाओं के रूप में होता है जिस कारण उस पर एंजाइम का कार्य ं कठिन हो जाता है। पित्त लवण उन्हें छोटो-छोटी गोलिकाओं में खंडित कर देता | है जिससे एंजाइम की क्रियाशीलता बढ़ जाती है। अग्नाशय से प्राप्त होने वाले ं अग्नाशयिक रस में इमल्सीकृत वसा का पाचन करने के लिए लाइपेज़ एंजाइम होता है। क्षुद्रा्र की भित्ति में ग्रंथि होती है जो आंत रस ख्रावित करती है जो वसा को वसा अम्ल तथा ग्लिसरॉल में बदल देती है।

 

प्रश्न 6. भोजन के पाचन में लार की कया भूमिका है?

उत्तर– भोजन के पाचन में लार की अति महत्त्वपूर्ण भूमिका है। लार एक रस है जो तीन जोड़ी लाल ग्रंथियों से मुँह में उत्पनन होता है। लार में एमिलेस नामक एक एंजाइम होता है जो मंड जटिल अणु को लार के साथ पूरी तरह मिला देता है। लार के प्रमुख कार्य हैं-

(i) यह मुख के खोल को साफ़ रखती है।

(ii) यह मुख खोल में चिकनाई पैदा करती है जिससे चबाते समय रगड़ कम होती है।

(iii) यह भोजन को चिकना एवं मुलायम बनाती है।

(iv) यह भोजन को पचाने में भी मदद करती है।

(v) यह भोजन के स्वाद को बढ़ाती है।

(vi) इसमें विद्यमान टायलिन नामक एंजाइम स्टार्च का पाचन कर उसे माल्टोज़ मेंबदलदेताहै



प्रश्न 7. स्वपोषी पोषण के लिए आवश्यक परिस्थितियाँ कौन-सी हैं और उनके उपोत्पाद क्या हैं?

उत्तर– स्वपोषी पोषण के लिए प्रकाश-संश्लेषण आवश्यक है। हरे पौधे सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में क्लोरोफिल नामक वर्णक से CO2 और जल के दूवारा कार्बोहाइड्रेट का निर्माण करते हैं। इस क्रिया में ऑक्सीजन गैस बाहर निकलती है।


स्वपोषी पोषण के आवश्यक परिस्थितियाँ हैं–सूर्य का प्रकाश, क्लोरोफिल, कार्बन डाइऑक्साइड और जल। इसके उपोत्पाद आणविक ऑक्सीजन है।

 

प्रश्न 8. वायवीय तथा अवायवीय श्वसन में क्‍या अंतर है? कुछ जीवों के नाम लिखिए जिनमें अवायवीय श्वसन होता है।

उत्तर– वायवीय (Aerobic Respiration) और अवायवीय (Anaerobic Respiration) में अंतर—

वायवीय

अवायवीय

(1) वायवीय क्रिया ऑक्सीजन की उपस्थिति में होती है।

 

(2) यह क्रिया कोशिका के जीव द्रव्य एवं माइटोकॉँड्िया दोनों में पूर्ण होती है।

 

(3) इस क्रिया में ग्लूकोज़ का पूर्ण ऑक्सीकरण होता है।

 

 

(4) इस क्रिया से CO2 एवं H2O बनता है।

 

 

(5) इस क्रिया में ग्लूकोज के एक अणु में 38 ATP अणु मुक्त होते हैं।

 

(6) ग्लूकोज के एक अणु के पूर्ण ऑक्सीकरण से 673 किलो कैलोरी ऊर्जा मुक्त होती है।

 

 

(7) इस क्रिया को निम्नलिखित समीकरण दूवारा दिखा सकते हैं-

C6H12O6  +  6O2⎯→ 6CO2+  6H2O  +  673 kcal

(1) अवायवीय क्रिया ऑक्सीजन की

अनुपस्थिति में होती है।

 

(2) यह क्रिया केवल जीव द्रव्य में ही पूर्ण होती है।

 

(3) इस क्रिया में ग्लूकोज़ का अपूर्ण ऑक्सीकरण होता है।

 

(4) इस क्रिया में एल्‍्कोहल एवं CO2 बनती है।

 

(5) इस क्रिया में ग्लूकोज़ के एक अणु में 2 ATP अणु मुक्त होते हैं।

 

(6) ग्लूकोज़ के अणु के अपूर्ण ऑक्सीकरण से 21 किलो कैलोरी ऊर्जा मुक्त होती है।

 

(7) इस क्रिया को निम्नलिखित समीकरण दूवारा दिखा सकते

हैं-

C6H12O6⎯→ 2C2H5OH  +2CO2  + 21kcaI

 

कुछ जीवों में अवायवीय श्वसन होता है, जैसे यीस्ट।

 

प्रश्न 9. गैसों के अधिकतम विनिमय के लिए कूपिकाएँ किस प्रकार अभिकल्पित हैं?

उत्तर :- श्वसन तंत्र में फुफ्फुस के अंदर अनेक छोटी-छोटी नलियों का विभाजित रूप होता है जो अंत में गुब्बारों जैसी रचना में अंतकृत हो जाता है, जिसे कूपिका कहते हैं । यह एक सतह उपलब्ध करती हैं जिस से गैसों का विनिमय हो सके । यदि कूपिकाओं Mकी सतह को फैला दिया जाए तो यह लगभग 80 वर्ग मीटर क्षेत्र को ढांप सकता है। कूपिकाओं की भित्ति में रुधिर वाहिकाओं का बहुत विस्तृत जाल होता है । जब हम साँस अंदर लेते हैं तो पसलियाँ ऊपर उठ जाती हैं और हमारा डायाफ्राम चपटा हो जाता है जिससे वक्षगुहिका बड़ी हो जाती है । इस कारण वायु फुपफुस के भीतर चूस ली जाती है। रक्त शरीर से लाई गई CO2 कूपिकाओं को दे देता है। कूपिका रक्त वाहिका का रक्त कूपिका वायु से ऑक्सीजन लेकर शरीर की सभी कोशिकाओं तक पहुँचा देती हैं।

 

प्रश्न 10. हमारे शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी के क्या परिणाम हो सकते हैं?

उत्तर– हमारे शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी से रक्‍्ताल्पता (anaemia) हो जाता है। हमें श्वसन के लिए आवश्यक ऑक्सीजन की प्राप्ति नहीं होगी जिस कारण हम शीघ्र थक जाएंगे। हमारा भार कम हो जाएगा। हमारा रंग पीला पड़ जाएगा। हम कमजोरी अनुभव करेंगे ।

 

प्रश्न 11. मनुष्य में दोहरा परिसंचरण की व्याख्या कीजिए। यह क्यों आवश्यक है ?

उत्तर– हृदय दो भागों में बंटा होता है। इस का दायाँ और बायाँ भाग ऑक्सीजनित और विऑक्सीजनित रुधिर को आपस में मिलने से रोकने में उपयोगी सिद्ध होता है। इस तरह का बंटवारा शरीर को उच्च दक्षतापूर्ण ऑक्सीजन की पूर्ति कराता है। जब एक ही चक्र में रुधिर दोबारा हदय में जाता है तो उसे दोहरा परिसंचरण कहते हैं । इसे इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है :–

ऑक्सीजन को प्राप्त कर रुधिर फुफ्फुस में आता है। इस रुधिर को प्राप्त करते  समय बायाँ अलिंद हदय में बायीं ओर स्थित कोष्ठ बायाँ अलिंद शिथिल रहता है। जब बायाँ निलय फैलता है, तब यह संकुचित होता है, जिससे रुघिर इसमें चला जाता है। अपनी बारी पर जब पेशीय बाँया निलय संकुचित होता है, तब रुधिर

शरीर में पंपित हो जाता है। जब दायाँ अलिंद फैलता है तो शरीर से विऑक्सीजनित रुधिर इसमें आ जाता है। जैसे ही दायाँ आलिंद संकुचित होता है, नीचे वाला दायाँ निलय फैल जाता है। यह रुघिर को दाएँ निलय में भेज देता है जो रुधिर को ऑक्सीजनीकरण के लिए फुफ्फुस में पंप कर देता है। आलिंद की अपेक्षा निलय की पेशीय भित्ति मोटी होती है क्योंकि निलय को पूरे शरीर में रुघिर भेजना होता है। जब आलिंद या निलय संकुचित होते हैं तो वाल्व उल्टी दिशा में रुघिर प्रवाह को रोकना सुनिश्चित करते हैं।

 

दोहरे परिसंचरण का संबंध रक्त परिवहन से है। परिवहन के समय रक्त दो बार हृदय से गुज्धरता है। अशुदूध रक्त दायें निलय से फेफड़ों में जाता है और शुद्ध हो कर बायें आलिंद के पास आता है।


इसे पत्मोनरी परिसंचरण कहते हैं ।

 

शुदूध होने के बाद रक्त दायें आलिंद से पूरे शरीर में चला जाता है और फिर अशुदूध होकर बायें निलय में प्रवेश कर जाता है । इसे सिस्टेमिक परिसंचरण कहते हैं।


दूविगुण परिसंचरण को निम्नलिखित चित्रों से स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।

 

दोहरे परिसंचरण के कारण शरीर को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन प्राप्त हो जाती है। उच्च ऊर्जा की प्राप्ति होती है जिससे शरीर का उचित तापमान बना रहता है। आवश्यकता का कारण–हमारे हृदय में चार कोष्ठक होते हैं। इसी से सारे अंगों को ऑक्सीजन युक्त रक्त की प्राप्ति संभव हो पाती है जिससे शरीर को ऊर्जा को प्राप्ति होती है और उसका तापमान बना रहता है।

 

प्रश्न 12. ज्ाइलम तथा फ्लोएम में पदार्थों के वहन में क्‍या अंतर है?

उत्तर :- ज़ञाइलम निर्जीव ऊतक हैं। ये जड़ों से जल और घुले हुए लवणों को पत्तियों में पहुँचाते हैं। फ्लोएम सजीव ऊतक हैं। ये पत्तियों में तैयार शर्करा को पौधे के सभी भागों तक पहुँचाते हैं। ज्ञाइलम ऊपर की तरह गति करने में सहायक होते हैं और फ्लोएम नीचे की तरफ गति करते हैं।

 

प्रश्न 13. फुफ्फुस में कूपिकाओं की तथा वृक्क में वृक्काणु ( नेफ्रॉन ) की रचना तथा क्रिया विधि की तुलना कीजिए।

उत्तर—

फुस्फुस में कूपिकाएँ

वृक्क में वृक्काणु

1. मानव शरीर में विद्यमान दोनों फेफड़ों में बहुत अधिक संख्या में कूपिकाएँ होती हैं।

 

2. प्रत्येक कूपिका प्याले के आकार जैसी होती है।

 

 

3. कूपिका दोहरी दीवार से निर्मित होती है।

 

 

4. . कूपिका की दोनों दीवारों के बीच रुधिर कोशिकाओं का सघन जाल बिछा रहता है।

 

5. कूपिकाएँ वायु भरने पर फैल जाती हैं।

 

6. यहाँ रुघिर की लाल रुधिर कणिकाओं में हीमोग्लोबिन ऑक्सीजन प्राप्त कर लेती है तथा प्लाज्मा में उपस्थित कार्बन डाइऑक्साइड कूपिका में चली जाती है।

 

7. कूपिकाओं में गैसीय आदान-प्रदान के बाद फेफड़े के संकुचन से कूपिकाओं में भरी वायु शरीर के बाहर निकल जाती है।

1. मानव शरीर में वृक्क संख्या में दो होते हैं। प्रत्येक वृक्क में लगभग 10 लाख वृक्काणु होते हैं।

 

2. प्रत्येक वृक्काणु महीन धागे की आकृति जैसा होता है।

 

3. वृक्काणु के एक सिरे पर प्याले के आकार की मैल्पीघियन सम्पुट विद्यमान होती है।

 

4. बोमैन संपुट में रुधिर कोशिकाओं का गुच्छ उपस्थित होता है जिसे कोशिका गुच्छ कहते हैं।

 

5. वृक्काणु में ऐसी क्रिया नहीं होती।

 

6. कोशिका गुच्छ में रुधिर में उपस्थित वर्ज्य पदार्थ छन जाते हैं।

 

 

7. मूत्र निवाहिका से मूत्र बहकर मूत्राशय में इकट्ठा हो जाता है और वहाँ से मूत्रमार्ग दूवारा शरीर के बाहर निकाल दियाजाता है।

 

 

लघु-उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 14. निम्नलिखित के नाम बताइए;

(a) पादपों में होने वाली वह प्रक्रिया जो सूर्य के प्रकाश की ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में बदलती है।

(b) वे जीव जो अपना भोजन स्वयं तैयार कर लेते हैं

(c) वह कोशिकांग जहाँ प्रकाश-संश्लेषण प्रक्रिया संपन्न होती है

(d) रंध्र के चारों तरफ स्थित कोशिकाएँ

(e) वे जीव जो अपना भोजन स्वयं तैयार नहीं कर सकते

(f) आमाशय की जठर ग्रंथियों द्वारा स्त्रवित एक एंजाइम जो प्रोटीनों पर अभिक्रिया करता है।

 

उत्तर—

(a) प्रकाश संश्लेषण,

(b) स्वपोषी,

(c) हरित लवक,

(d) रक्षक कोशिकाएँ,

(e) विषमपोषी,

(f) पेप्सिन।

 

प्रश्न 15. सभी पौधे दिन में तो ऑक्सीजन बाहर निकालते हैं और रात में कार्बन डाईऑक्साइड, क्या आप इस कथन से सहमत हैं, कारण बताइए।

उत्तर– दिए गए कथन से सहमत नहीं हो सकते, क्योंकि ये क्रियाएँ सिर्फ हरे पादपों द्वारा ही संभव है जो प्रकाश संश्लेषण क्रिया करते हैं। परन्तु कवक जैसे मृतोपजीवी पादप हमेशा कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित करता है।

 

प्रश्न 16. बताइए कि द्वार-कोशिकाएँ किस प्रकार रंध्रों के खुलने और बंद होने का नियमन करती हैं।

उत्तर– द्वार कोशिकाओं में जल के आवागमन छिद्र खुलते व बन्द होते हैं । द्वार कोशिकाओं में जब जल भरता है, तो छिद्र खुलते हैं तथा जल के निर्गत होते ही छिद्र बन्द हो जाता है। इस प्रकार द्वार-कोशिकाएँ रंध्रों के खुलने व बन्द होने का नियमन करती है।

 

प्रश्न 17. दो हरे पौधों को अलग-अलग ऑक्सीजन मुक्त पात्रों में रखा गया। एक पात्र को अंधेर में और दूसरे को अविच्छिन्न प्रकाश में । बताइए कि इनमें से कौन- सा पौधा अधिक समय तक जीवित रहेगा ? कारण बताइए।

उत्तर– अविच्छिन्न प्रकाश वाले पात्र का पौधा अपेक्षाकृत अधिक समय तक जीवित रहेगा, क्योंकि प्रकाश संश्लेषण क्रिया में उत्पनन ऑक्सीजन उसे अधिक समय तक श्वसन के लिए मिलता रहेगा।

 

प्रश्न 18. यदि कोई पौधा दिन में कार्बन डाइऑक्साइड निकाल रहा है और ऑक्सीजन ले रहा है, तो कया इसका अर्थ यह हुआ कि उस पौधे में प्रकाशसंश्लेषण नहीं हो रहा है ? अपने उत्तर का औचित्य बताइए।

उत्तर– उक्त कथन का अर्थ है, कि प्रकाश संश्लेषण नहीं हो रहा है अथवा यह क्रिया अत्यंत ही क्षीण गति से हो रहा है। दिन के समय प्रकाश संश्लेषण क्रिया श्वसन क्रिया से तीव्र गति से होती है जिसमें मुक्त कार्बन डाइऑक्साइड प्रकाश संश्लेषण में उपयोग हो जाता है एवं ऑक्सीजन गैस मुक्त होती है।

 

प्रश्न 19. जल से बाहर निकाले जाने पर मछलियाँ क्यों मर जाती हैं?

उत्तर :- मछलियों में श्वसन उनके गलपड़ों में उपस्थित रक्त जालिका में विसरण द्वारा होता है जो जल में घुलित ऑक्सीजन का उपयोग करती हैं । ये वायुमंडलीय ऑक्सीजन को ग्रहण करने में अक्षम हैं। अत: जल से बाहर निकालते ही मछलियों की मृत्यु हो जाती है।

 

प्रश्न 20. स्वपोषी और विषमपोषी जीवों में अंतर बताइए।

उत्तर– स्वपोषी जीव एवं विषमपोषी जीव में अंतर—

 

स्वपोषी जीव

विषमपोषी जीव

1. इनमें पर्णहरित पाया जाता है।

1. इनमें पर्णहरित नहीं पाया जाता है।

2. ये अपना भोजन स्वयं तैयार करते हैं।

2. ये अपना भोजन दूसरे जीवों से प्राप्त करते हैं ।

 

प्रश्न 21. क्‍या किसी जीव के लिए पोषण आवश्यक है? विवेचना कीजिए।

उत्तर– पोषण सभी जीवों के लिए आवश्यक है। पोषण से उन्हें विभिन्‍न शारीरिक उपायचयी क्रियाओं के लिए ऊर्जा प्राप्त होती है। उनके पुराने कोशिकाओं के टूटने फूटने पर नई कोशिकाओं का निर्माण कर शारीरिक विकाश करता है। पोषण जीवों के शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है।

 

प्रश्न 22. पृथ्वी पर से यदि सभी हरे पौधे समाप्त हो जाएँ तो कया होगा?

उत्तर– पृथ्वी पर से यदि सभी हरे पौधे गायब हो जाए तो भोजन के अभाव में सर्वप्रथम शाकाहारी जीव मर जाएँगे। शाकाहारी जीवों के समाप्त होने के बाद भोजन भाव में सभी मांसाहारी जीव भी मर जाएँगे।

 

प्रश्न 23. गमले में लगे एक स्वस्थ पौधे की पत्तियों पर वेसलीन लगा दी गईं कया यह पौधा लंबे समय तक जीवित बना रहेगा? अपने उत्तर के समर्थन में कारण बताइए।

उत्तर– गमले में लगे पौधे के पत्तियों पर वसलीन लगा देने से उनके सभी रंध्र (स्टामेटा) ढक जाने के कारण गैसों (ऑक्सीजन व कार्बन डाइऑक्साइड) जल एवं खनिज लवणों का आदान-प्रदान अवरूद्ध हो जाएगा जिससे पौधे अधिक समय तक जीवित नहीं रह पाएँगे।

 

प्रश्न 24. वायवीय श्वसन किस प्रकार अवायवीय श्वसन से भिन्न होता है?

उत्तर :- वायवीय एवं अवायवीय श्वसन में भिन्‍नता—

वायवीय श्वसन

अवायवीय श्वसन

1. यह क्रिया ऑक्सीजन की

उपस्थिति में संपन्न होता है जिसके कारण अत्यधिक ऊर्जा उत्पन्न होती है।

1. यह क्रिया ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में संपन्न होता जिसके कारण कम ऊर्जा उत्पन्न होती है।

2. इसमें सर्वप्रथम कोशिकाद्रव्य में  तत्पश्चात माइटोकॉण्डिया में श्वसन संपन्न होता है।

2. अवायवीय श्वसन कोशिका में ही संपन्न होता है।

3. इसके उत्पाद जल एवं कार्बन डाइऑक्साइड होते हैं।

3. इसके उत्पाद एथेनॉल, कार्बनडाइऑक्साइड व लैक्टिक अम्लm होते हैं।

 

प्रश्न 25. कॉलम A के अंतर्गत दिए गए शब्दों को कॉलम B के शब्दों से मिलानकीजिए

कॉलम (A)

कॉलम (B)

(a) फ्लोएम

(a) उत्सर्जन

(b) नेफ्रॉन

(b) भोजन का परिसंचरण

(c) शिराएँ

(c) रुधिर का थक्कन

(d) रुधिर पदिटकाएँ

(d) विऑक्सीजनित रुधिर

 

उत्तर– (a)—(ii)    (b)—(i)    (c)—(iv)    (d)—(iii)

 

प्रश्न 26. धमनी और शिरा में अंतर बताइए।

उत्तर—

धमनी

शिरा

1. इसकी दीवार पतली तथा सख्त होती है जिसके कारण इसकी  भीतरी व्यास अधिक होती है।

1. इसकी दीवार मोटी तथा लचीली होती है जिसके कारण इसका भीतरी व्यास कम होता है।

2. यह अनॉक्सीकृत रुघिर को शरीर |के विभिन्‍न भागों से हदय में लाती है।

2. यह ऑक्सीजन युक्त रुधिर को हृदय से शरीर के सभी भागों मेंपहुँचाती है।

3, इसमें वाल्व होते हैं जो रुघिर को सिर्फ एक ही दिशा में जाने देता है।

3. इसमें वाल्व नही होते जिससे रुधिर सो दिशाओं में आ-जा सकता

 

 

प्रश्न 27. प्रकाश-संश्लेषण के लिए पत्ती में कौन-कौन से अनुकूलन पाए जाते हैं?

उत्तर– प्रकाश संश्लेषण हेतु पत्तियों में अनुकूलन–

(a) पत्तियों का चौड़ा हिस्सा अधिकतम प्रकाश ग्रहण करने में सक्षम होता है।

(b) पत्तियों का शिरा जाल खनिज लवण, जल एवं उत्पन्न भोजन का त्वरित संवहन करता है।

(c) पत्तियों के सतह पर पाए जाने वाले रंध्र गैसों के आदान-प्रदान में सहायक होते हैं।

(d) पत्तियों के ऊपरी सतह पर अत्यधिक क्लोरोफिल प्रकाश संश्लेषण में सहायक होता है।

 

प्रश्न 28. माँसाहारियों की अपेक्षा शाकाहारियों की छोटी आँत लंबी क्यों होती है?

 

उत्तर– शाकाहारियों के भोजन में सेल्यूलोज की मात्रा अधिक होती है जिसे पचाने में

अधिक समय लगता है। इसलिए उनकी छोटी आँत लम्बी होती है। परन्तु

मांसाहारियों के भोजन में प्रोटीन की मात्रा अधिक होने के कारण उसे पचाने में

कम समय लगता है। अत: उनकी छोटी आँत अपेक्षाकृत कम लम्बी होती है।

 

प्रश्न 29. जठर ग्रंथियों से यदि श्लेष्मा का स्त्राव न हो तो बताइए क्या होगा?

उत्तर– जठर ग्रंथियाँ श्लेष्मा के साथ-साथ प्र अम्ल तथा पेप्सिन नामक एन्जाइम भी स््रावित करती हैं । यदि श्लेष्मा का स्राव न हो, तो पाए अम्ल एवं पेप्सिन एन्जाइम के प्रभाव से आमाशय की भीतरी दीवार पर घाव हो सकता है।

 

प्रश्न 30. वसा के पायसीकरण का क्या महत्व है?

उत्तर– वसा का पायसीकरण– पित्त रस में उपस्थित पित्त लवण वसा के बड़े गोलकों को तोड़कर छोटी छोटी टुकड़ों में बदल देता है जिसे वसा का पायसीकरण कहते हैं । इसके कारण अग्न्याशयी रस के उपस्थित लाइपेज की क्रियाशीलता बढ़ने से पाचन क्रिया सामान्य रूप से चलती रहती है।

 

प्रश्न 31. आहार-नाल के भीतर भोजन की गति क्यों होती है?

उत्तर– आहार नाल के मांसपेशियों द्वारा क्रमाकुंचन क्रिया के कारण भोजन की गति संभव हो पाती है।

 

प्रश्न 32. पचे हुए भोजन का अवशोषण प्रधानत: छोटी आँत में क्यों होता है?

उत्तर– भोजन का पाचन छोटी आँत में सम्पूर्ण होता है। छोटी आँत के आंतरिक सतह पर अँगुलीनुमा प्रवर्ध दीर्घरोम होता है जिसमें रुधिर वाहिकाओं का जाल होता है। इन दीर्घरोमों की रुधिर वाहिकाएँ पचे हुए भोजन का अवशोषण कर शरीर के विभिन्‍न कोशिकाओं तक पहुँचाते हैं।

 

प्रश्न 33. वर्ग A के कथनों को वर्ग B में दिए गए जीवों से मिलाइए।

वर्ग A

वर्ग B

(a) स्वपोषी पोषण

(i) जॉक

(b) विषमपोषी पोषण

(ii) पैरामीशियम

(c) परजीवी पोषण

(iii) हिरन

(d) खाद्य-धानियों के भीतर पाचन

(iv) हरे पौधे

 

उत्तर– (a)—(iv)    (b)—(iii)    (c)—(i)    (d)—(ii)

 

प्रश्न 34. स्थलीय प्राणियों की अपेक्षा जलीय प्राणियों में श्वसन-दर कहीं अधिक तीव्र गति से क्यों होती है?

उत्तर :- वायुमंडलीय ऑक्सीजन की अपेक्षा जल में धुलित ऑक्सीजन की मात्रा कम होती है। अत: जलीय जीबों में श्वसन दर स्थलीय जीवों की अपेक्षा अधिक तीव्र होती है।

 

प्रश्न 35. मानव हृदय में रुधिर-परिसंचरण को दोहरा परिसंचरण क्यों कहते हैं ?

उत्तर :- उत्तर के लिए अभ्यास प्रश्नोत्तर संख्या । देखें।

 

प्रश्न 36. हृदय में चार कक्ष होने के कया लाभ हैं?

उत्तर :- उत्तर के लिए महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर संख्या 2 देखें।

 

प्रश्न 37. प्रकाश-संश्लेषण की प्रमुख घटनाओं की चर्चा कीजिए।

उत्तर– प्रकाश संश्लेषण की प्रमुख घटनाएँ–

(i) पत्तियों द्वारा प्रकाश ऊर्जा अवशोषित करना

(ii) प्रकाश ऊर्जा का रासायनिक ऊर्जा में रूपान्तरण

(iii) जल का हाइड्रोजन व ऑक्सीजन में विघटन तथा CO2 का कार्बोहाइड्रेट में परिवर्तन ।

 

प्रश्न 38. निम्नलिखित परिस्थितियों में से प्रत्येक का प्रकाश संश्लेषण की दर पर क्या, प्रभाव पड़ता है?

(a) बादलों से आच्छादित दिनों में

(b) क्षेत्र में वर्षा न होने पर

(c) क्षेत्र में पर्याप्त खाद डालने पर

(d) धूल के कारण रंध्रों के बंद हो जाने पर

उत्तर– (a) प्रकाश संश्लेषण मंद होगा।

(b) प्रकाश संश्लेषण मंद होगा।

(c) प्रकाश संश्लेषण तेज होगा।

(d) प्रकाश संश्लेषण मंद होगा।

 

प्रश्न 39. जीवधारियों में ऊर्जा-मुद्रा का नाम बताइए । यह ऊर्जा कहाँ और कब उत्पन्न होती है?

उत्तर :- जीवधायियों में ऊर्जा मुद्रा ATP है जिसका निर्माण श्वसन क्रिया के दौरान माइटोकॉण्ड्रिया में होता है। पौधों ATP का निर्माण प्रकाश संश्लेषण क्रिया के समय होता है।

 

प्रश्न 40. अमरबेल, किलनियों और जोकों के संदर्भ में कौन-सी बात सामान्य होती हैं?

उत्तर– अमरबेल, किलनियाँ और जॉंक तीनों परजीवी हैं। अमरबेल अन्य पेड़-पौधों पर अपने पोषण के लिए निर्भर होते हैं जबकि किलनियाँ व जोक स्तनधारियों से अपना पोषण प्राप्त करता है।

 

प्रश्न 41. भोजन के पाचन में मुख की कया भूमिका होती है?

उत्तर– भोजन के पाचन में मुख की भूमिका—

दाँतों द्वारा भोजन को महीन टुकड़ो में परिवर्तित किया जाता है । मुख के लार ग्रंथि में उपस्थित एन्जाइम (एमाइलेज) स्टार्च को शर्करा में बदल देता है तथा भोजन को पेस्ट जैसे बना देता जिससे उसे आमाशय तक जाने में सुविधा होती है।

 

प्रश्न 42. आमाशय की भित्ति में विद्यमान ज़ठर ग्रंथियों के क्या-क्या कार्य होते हैं?

उत्तर :- ज़टर ग्रंथि के कार्य—

(i) पेप्सिन का स्रवण करना जो प्रोटीन का पाचन करता है।

(ii) भोजन को किण्वन से बचाने के लिए पाए अम्ल का ख्रवण

(iii) आमाशय की दीवार को पर से बचाने के लिए श्लेष्मा का ्रवण करना।

 

प्रश्न 65. कॉलम A के अंतर्गत दिए गए शब्दों को कॉलम B के शब्दों से मिलाइए:

कॉलम A

कॉलम B

(a) ट्रिप्सिन

(b) ऐमाइलेज

(c) पित्तरस

(d) पेप्सिन

(i) अग्नाशय

(ii) यकृत

(iii) जठर ग्रंथियाँ

(iv) लार

 

उत्तर :- (a)—(i)    (b)—(iv)    (c)—(ii)    (d)—(iii)

 

प्रश्न 43. निम्नलिखित एंजाइमों के उचित क्रियाधारों ( सब्स्ट्रेटों ) के नाम बताइए:

(a) द्रिप्सिन

(b) ऐमाइलेज

(c) पेप्सिन

(d) लाइपेज

उत्तर– (a) ट्रिप्सिन–प्रोटीन,

(b) एमाइलेज–स्टार्च,

(c) पेप्सित–प्रोटीन,

(d) लाइपेज–वसा

 

प्रश्न 44. धमनियों की अपेक्षा शिराओं की भित्तियाँ पतली क्यों होती हैं?

उत्तर– धमनियाँ हृदय से रक्त को उच्च दाब पर शरीर के विभिन्‍न भागों में पहुँचाता है। अतः इसकी भित्तियाँ मोटी व लचीली होती है जो उच्च दाब पर भी सुचारू रूप से कार्य करती रहती है। परन्तु शिराएँ शरीर के विभिन्‍न भागों  से रक्त को बिना दाब के हृदय तक लाती है। अतः इसकी शिराएँ पतली होती है।

 

प्रश्न 45. रुधिर में पट््‌टकाएँ न हों तो क्या होगा?

उत्तर :- रुधिर में प्लेटलेट्स नहीं होने की स्थिति में संयोगवश कट जाने पर रुधिर का थक्‍का नहीं बन पाएगा और वह लगातार बहता रहेगा।

 

प्रश्न 46. प्राणियों की अपेक्षा पौधों की ऊर्जा आवश्यकताएँ कम होती हैं। व्याख्याकीजिए।

 

उत्तर– पौधों में गति गति न होना एवं उनके अधिकांश भाग मृत कोशिकाओं के बने होने कारण उन्हें प्राणियों की अपेक्षा कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है।

 

प्रश्न 47. जड़ों के जाइलम में जल क्यों और कैसे अविच्छिन्न रूप से चढ़ता जाता है?

उत्तर- पौधों के जड़ों के जाइलम में जल एवं खनिज लवणों का सांद्रण बढ़ जाने पर परासरण दाब बढ़ जाता है। इस कारण जाइलम में जल अविच्छिन्न रूप से चढ़ता रहता है।

 

प्रश्न 48. पौधों के लिए वाष्योत्सर्जन क्यों महत्वपूर्ण होता है?

उत्तर :- पौधों द्वारा वाष्पोत्सर्जन क्रिया के कारण मिट्टी से जल का अवशोषण व संवहन आसानी से होता रहता है तथा पौधे ठंडे रहते हैं । अत: पौधों के लिए वाष्योत्सर्जनm महत्वपूर्ण है।

 

प्रश्न 49. पौधों की पत्तियाँ उत्सर्जन में किस प्रकार सहायता करती हैं ?

उत्तर :- पेड़-पौधे अनेक वर्ज्य पदार्थ अपने पत्तियों में इकट्ठा कर लेते हैं। पतझर के समय सारी पत्तियाँ गिरकर वर्ज्य पदार्थ को पौधों से दूर करती हैं। इस प्रकार पत्तियाँ उत्सर्जन में पौधों को सहायता करती है।

 

दीर्घ-उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. अमीबा में पोषण प्रक्रिया की व्याख्या कीजिए।

उत्तर :- उत्तर के लिए दीर्घ-उत्तरीय महत्वपूर्ण प्रश्न संख्या ८ देखें।

 

प्रश्न 2. मानव आहार-नाल का वर्णन कीजिए।

उत्तर :- उत्तर के लिए दीर्घ-उत्तरीय महत्वपूर्ण प्रश्न संख्या 8 देखें।

 

प्रश्न 3. मानव में साँस लेने की प्रक्रिया की व्याख्या कीजिए।

उत्तर :- उत्तर के लिए दीर्घ-उत्तरीय महत्वपूर्ण प्रश्न संख्या 4 देखें।

 

प्रश्न 4. पादप वृद्धि के लिए मृदा के महत्व की व्याख्या कीजिए।

उत्तर :- उत्तर के लिए पाठ्यपुस्तक प्रश्नोत्तर पृष्ठ 22 प्रश्न 4 देखें।

 

प्रश्न 5. मानव आहार-नाल का आरेख बनाइए और उसमें निम्नलिखित भागों को नामांकित कीजिए;

मुख, ग्रसिका, आमाशय, छोटी आँत

उत्तर :- उत्तर के लिए दीर्घ-उत्तरीय महत्वपूर्ण प्रश्न संख्या 8 (चित्र) देखें।

 

प्रश्न 6. स्व में कार्बोहाइड्रेटों, प्रोटीनों और वसाओं का पाचन किस प्रकार होता है

उत्तर :- उत्तर के लिए दीर्घ-उत्तरीय महत्वपूर्ण प्रश्न संख्या 8 देखें।

 

प्रश्न 7. प्रकाश-संश्लेषण की प्रणाली की व्याख्या कीजिए।

उत्तर :- उत्तर के लिए महत्वपूर्ण प्रश्न संख्या १6 देखें।

 

प्रश्न 8. जीवधारियों में विखंडन के तीन पथों की व्याख्या कीजिए।

उत्तर :- उत्तर के लिए पाठ्यपुस्तक प्रश्नोत्तर पृष्ठ 22 प्रश्न 2 देखें।

 

प्रश्न 9. मानवों में हृदय में से होकर रुधिर-प्रवाह का वर्णन कीजिए।

उत्तर :- उत्तर के लिए दौर्घ-उत्तरीय महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर 2 देखें।

 

प्रश्न 10. वृक्‍्कों में मूत्र निर्माण की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।

उत्तर :- उत्तर के लिए दीर्घ-उत्तरीय महत्वपूर्ण प्रश्न संख्या 6 देखें।

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