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Class 9 Science Subjective Question Chapter - 15 खाद्य संसाधनों में सुधार

Class 9 Science Subjective Question Chapter – 15 खाद्य संसाधनों में सुधार

 

                                                                        -:  खाद्य संसाधन – पौधे  :-

 

प्रश्न:1 मनुष्य को परपोषी क्यों कहा जाता है ?

उत्तर:- मनुष्य को परपोषी इसलिये कहा जाता है कि वह शरीर के भीतर भोजन उत्पादन नहीं कर सकता क्योंकि इनमें प्रकाश-संश्लेषण की क्षमता नहीं होती है।

 

प्रश्न:2 दाल, अनाज, सब्जियों और फल से हमें क्या प्राप्त होता है?

उत्तर:-

दाल- प्रोटीन प्रदान करते हैं।

अनाज- कार्बोहाइड्रेट प्रदान करते हैं। यह ऊर्जा प्रदान करते हैं।

फल व सब्जियाँ- विटामिन तथा खनिज प्रदान करते हैं।

 

प्रश्न:3 हरित क्रांति का मुख्य कारण क्या है ?

उत्तर:- हरित क्रांति का मुख्य कारण फसल के उत्पादन में कमी तथा अच्छे किस्म के बीजों की कमी को नियंत्रित कर फसल उत्पादन में वृद्धि करना तथा उन्नत खेती को प्रोत्साहन देना है।

 

प्रश्न:4  किस प्रकार के फसल को खरीफ फसल कहा जाता है ?

उत्तर:- वर्षा ऋतु में उगनेवाले फसल को खरीफ फसल कहते हैं।

 

प्रश्न:5 संकर फसल किसे कहते हैं ?

उत्तर:- किसी फसल की दो वांछित गुणों वाली पृथक प्रजातियों के मध्य कृत्रिम पादप-प्रजनन कराकर एक नवीन प्रजाति विकसित करने को पादप-संकरण कहा जाता है। पादप-संकरण के फलस्वरूप विकसित नवीन समुन्नत फसल किस्म को संकर या हाइब्रिड कहते हैं। संकर पौधों में दोनों जनक पौधों के वांछित गुणों का भली-भाँति सम्मिश्रण होता है। इसे ही संकर फसल कहते हैं।

 

प्रश्न:6 पादप-प्रजनन की परिभाषा लिखें।

उत्तर:- फसल की समुन्नत किस्मों से अनेक लाभ हैं। ये ज्यादा पैदावार, पूर्व-परिपक्वता, खाद का बेहतर असर, वाछित गुण, विस्तृत अनुकूलनशीलता वाली होती है।

 

प्रश्न:7 हरे पादपों को अपनी वृद्धि एवं विकास के लिये कितने पोषक तत्वों की जरूरत होती है?

उत्तर:- हरे पादपों की वृद्धि और विकास के लिये 16 पोषक पदार्थ आवश्यक हैं जिनमें कुछ सूक्ष्ममात्रिक तो कुछ वृहदमात्रिक तत्व होते हैं।

 

प्रश्न:8 सूक्ष्म पोषक क्या है?

उत्तर:- कुछ पादप पोषक ऐसे भी हैं जिनकी जरूरत केवल अल्पमात्रा में होती है, उन्हें सूक्ष्म पोषक कहते हैं। जैसे—लोहा, ताँबा, जस्ता, मैंगनीज, बोरॉन, मॉलीब्डेनम एवं क्लोरीन इत्यादि।

 

प्रश्न:9 खाद के अनुप्रयोग से मृदा को क्या प्राप्त होता है ?

उत्तर:- खाद के अनुप्रयोग से मृदा को पोषक तत्वों की प्राप्ति होती है, जैसे मुख्य रूप से नाइट्रोजन, फॉस्फोरस एवं पोटैशियम इत्यादि।

 

प्रश्न:10 द्राकृतिक उर्वरक के अनुप्रयोग से होनेवाली दो समस्याओं के नाम लिखें।

उत्तर:- प्राकृतिक उर्वरक के अनुप्रयोग से दो समस्यायें हैं—

(i) खाद की आवश्यकता बहुत अधिक मात्रा में पड़ती है जिससे किसानों को उसके परिवहन और भण्डारण में कठिनाई होती है।

(ii) इसमें विशिष्ट पादप पोषकों की काफी कमी होती है।

 

प्रश्न:11  वर्मीकम्पोस्ट में किस जीव का उपयोग किया जाता है ?

उत्तर:- वर्मीकम्पोस्ट में केंचुआ का उपयोग किया जाता है।

 

प्रश्न:12 किस प्रकार की खेती से एक से ज्यादा फसल का उत्पादन किया जाता है ?

उत्तर:- मिश्रित फसल उत्पादन की खेती से एक से ज्यादा फसल काउत्पादन किया जाता है।

 

प्रश्न:13 किसी एक प्रकार की मिश्रित खेती का नाम लिखें।

उत्तर:- गेहूँ और सरसों मिश्रित खेती की एक प्रकार है।

 

प्रश्न:14 मिश्रित फसल उत्पादन के एक महत्त्व का उल्लेख करें।

उत्तर:- यह जोखिम को न्यूनतम करता है।

 

प्रश्न:15 पीड़क (पेस्ट) क्या है ?

उत्तर:- समस्त रोगाणुओं को सम्मिलित रूप से पीड़क या पेस्ट कहते हैं।

 

प्रश्न:16 एक कीट-पीड़क का नाम लिखें।

उत्तर:- टिड्डी एक कीट-पीड़क है।

 

प्रश्न:17 खरपतवार क्या है?

 उत्तर:- वैसे अवांछित पौधों जो उगाये जाने वाले पौधों के साथ स्वतः उग जाते हैं, उन्हें खरपतवार कहते हैं।

 

प्रश्न:18 खरपतवारनाशी क्या है ?

उत्तर:- अच्छी उपज के लिये अवांछित पौधे या खरपतवारों का विनाश करनेवाले रसायनों को खरपतवारनाशी कहा जाता है।

 

प्रश्न:19 किसी दो आम खरपतवारों के नाम लिखें।

उत्तर:-   (i) चौलाई,     (ii) बथुआ

 

प्रश्न:20 रोगाणु पौधों में किन माध्यमों द्वारा प्रविष्ट होते हैं ?

उत्तर:- रोगाणु मिट्टी, पानी तथा हवा में उपस्थित रहते हैं और इन्हीं माध्यमों द्वारा ये पौधों

 

प्रश्न:21 पीड़कनाशी का क्या कार्य है

उत्तर:- फसलों की रोगों से सुरक्षा ही पीड़कनाशी का कार्य है।

 

प्रश्न:22 भण्डारण में अनाजों को हानि पहुंचानेवाले दो अजैविक कारकों के नाम लिखें।

उत्तर:- भण्डारण में अनाजों को हानि पहुँचानेवाले दो अजैविक कारक हैं-

(i) नमी,     (ii) तापमान

 

प्रश्न:23 भण्डारण के दौरान अनाजों को हानि पहुंचाने वाले दो जैविक कारकों के नाम लिखेंl

उत्तर:- भण्डारण के दौरान अनाजों को हानि पहुँचानेवाले दो जैविक कारक ये हैं-

  (i) सूक्ष्मजीव      (ii) कीट

 प्रश्न:24 भारतीय वैज्ञानिकों के प्रयास से दूध के उत्पादन में हुई वृद्धि को क्या कहते हैं?

उत्तर:- श्वेत क्रांति।

 

 प्रश्न:25 दालों के सेवन से हमें मुख्यतः प्राप्त होता है?

उत्तर:- प्रोटीन

 

प्रश्न:26  फॉस्फोरस किस प्रकार का पोषक है?.

उत्तर:- वृहत् पोषक

 

प्रश्न:27  गेहूँ किस प्रकार का फसल है?

उत्तर:- रबी फसल (Rabi Crop)

 

प्रश्न:28 गाजर घास किस प्रकार का पौधा है?

उत्तर:- पारथेनियम।

 

प्रश्न:29  2,4D का प्रयोग किस कार्य के लिए किया जाता है?

उत्तर:- खरपतवारनाशी या वीडी साइड्स

 

 प्रश्न:30  ऐकिक गुणों के वाहक DNA खंड को एक पौधे से दूसरे पौधे में प्रतिरोपित कर किसप्रकार के पौधे विकसित किए जाते हैं?

उत्तर:- नये किस्म के पौधे।

 

 प्रश्न:31 किस प्रकार की खेती में रसायनिक उर्वरकों, पीड़कनाशकों तथा अन्य रसायनों का उयोग कम से कम या बिल्कुल नहीं किया जाता है?

उत्तर:- कानिक खेती।

 

प्रश्न:32 सल्फर किस प्रकार का पोषक है?

उत्तर:- वृहत् पोषक

 

प्रश्न:33 खेतों से खरपतवारों के घटाने की प्रक्रिया को क्या कहते हैं?

उत्तर:- निराई या वीडिंग।

 

प्रश्न:34  धूमन किसे कहते हैं?

उत्तर:- धूमन क्रिया में कुछ वाष्पशील रसायनों जैसे ऐलुमिनियम फॉस्फाइट की बनी गोली को निश्चित मात्रा में अनाजों में डाला जाता है। इससे पीड़कों का नाश होता है।

 

 

                                                                            -:  अतिलघु उत्तरीय प्रश्न  :-

 

प्रश्न:1  किन्हीं दो श्रमिक पशुओं के नाम लिखें।

उत्तर:- दो श्रमिक पशु हैं-

(i) बैल     (ii) ऊंट

 

प्रश्न:2 किन्हीं दो दुग्ध उत्पादक पशुओं के नाम लिखें।

उत्तर:- दो दुग्ध पशु हैं-

(i) गाय      (ii) भैंस

 

प्रश्न:3 जन्तु भाजन-उत्पादों का नाम लिखें।

उत्तर:- जन्तु भोजन-उत्पाद् दूध, मांस, अण्डा तथा मछली हैं।

 

प्रश्न:4 हरा चारा प्रमुख किस्म कौन-कौन है?

उत्तर:- हरा चारा की प्रमुख किस्में इस प्रकार हैं—

नेपियर या हाथी घास, गिनी घास, रोड्स घास तथा सूडान घास।

 प्रश्न:5 कुक्कुटों के आहारों का नाम लिखें।

उत्तर:- विभिन्न प्रकार के महीन दले हुए अनाज,

जैसे—

चावल, चावल की भूसी, गेहूँ, चोकर, सक्का, बाजरा, मूंगफली की खली आदि कुक्कुटों आहार हैं।

 

 प्रश्न:6  एक अच्छे पशु आवास को दो विशता प्रमुख

उत्तर:- एक अच्छे पशु आवास की दो विशेषतायें निम्न हैं-

(i) आवास स्वच्छ, सूखा तथा हवादार होना चाहिये।

(ii) आवास इस प्रकार का होना चाहिये कि पशुधनों को प्रतिकूल मौसम, जैसे वर्षा, कड़ी धूप तथा अत्यधिक ठण्ड से मिले।

 

प्रश्न:7 मुर्गियों में वायरस से होनेवाले दो रोगों के नाम लिखें।-

उत्तर:- मुर्गियों में वायरस के होनेवाले दो रोग ये हैं-

(i) रानीखेत,     (ii) हैजा।

 

प्रश्न:8 संकर नस्ल की दो गायों का नाम लिखें।

उत्तर:- संकर नस्ल की दो गायें ये हैं-

(i) करन स्विस (ii) करन फ्राइस

 

प्रश्न:9 उन्नत नस्ल की दो विदेशी प्रजातियों की मुर्गियों का नाम लिखें।

उत्तर:- उन्नत नस्ल की दो विदेशी प्रजाति की मुर्गियों के नाम ये हैं—

(i)व्हाइट लेग हॉर्न (ii) रॉक आस्ट्रालॉप।

 

प्रश्न:10 मछली के अतिरिक्त किसी ऐसे दो जन्तु खाद्य पदार्थों का नाम लिखें जो जल से प्राप्त होते हैं?

उत्तर:- केकड़ा तथा झींगा ऐसे दो जन्तु खाद्य पदार्थ हैं जो जल से प्राप्त होते हैं।

 

प्रश्न:11 मधुमक्खी के छत्ते में रहनेवाली तीन प्रकार की जातियाँ कौन-कौन-सी हैं ?

उत्तर:- मधुमक्खी के छत्ते में रहनेवाली तीन प्रकार की जातियाँ ये हैं—

(i) एक रानी मधुमक्खी

(ii) कुछ नर मधुमक्खी या ड्रोन

(iii) कार्यकर्ता या सेवक

 

प्रश्न:12 मधुमक्खी से प्राप्त दो उत्पादों का नाम लिखें।

उत्तर:- मधुमक्खी से प्राप्त दो उत्पाद ये हैं मधु या शहद (i) मधुमोम।

 

प्रश्न:13 मधुमक्खी अपने भोजन के लिये फूलों से क्या लेती है ?

उत्तर:- मधुमक्खी अपने भोजन के लिये फूलों से परागकण एवं मकरंद लेती है।

 

प्रश्न:14 विज्ञान की वह शाखा जिसके अंतर्गत पालतू पशुओं से संबंधित पक्षों का अध्ययन होता है, क्या कहलाता है?

उत्तर:- पशुपालन

 

प्रश्न:15  हमारे देश में एक गाय प्रतिवर्ष औसतन कितना दूध देती है?

उत्तर:- 200 Kg.

 

प्रश्न:17  हमारे देश में प्रति व्यक्ति भोजन के रूप मार को वार्षिक खपत कितनी है?

उत्तर:- 131Gram

 

 प्रश्न:18 खरगोश के किस नस्ल से अच्छे किस के ऊन प्राप्त किए जाते हैं?

उत्तर:- अंगोरा किस्म के नस्ल से अच्छे किस्म के ऊन प्राप्त किए जा सकते हैं।

 

प्रश्न:19 गाय बच्चे जनने के बाद जिस सीमित काल के लिए दूध देती है, वह काल क्य कहलाता है?

उत्तर:- दुग्ध स्राव काला

 

प्रश्न:20 हरियाणा राज्य के किस संस्थान में अधिक दूध देनेवाली गायों की संकर नस्लें विकसित की गई है, उनके नाम क्या है?

उत्तर:- नेशनल डेयरी रिसर्च इंस्टीच्यूट (NDRT)

 

प्रश्न:21 उच्च-उत्पादन क्षमतावाली भैंसे मेहसाना तथा सूर्ती समान्यतः हमारे देश के किस राज्य में पाई जाती है?

उत्तर:- गुजरात में।

 

प्रश्न:22 पशुओं में कृत्रिम विधि से वीर्य की मादा की योनि में प्रविष्ट कराना क्या कहलाता है

उत्तर:- कृत्रिम वीर्य सेचन कहलाता है।

 

 प्रश्न:23  उन्नत नस्ल के पशुओं के वीर्यों का संग्रह किए जाने वाले संस्थान को क्या कहते हैं।

उत्तर:- वीर्य बैंक

 

प्रश्न:24 पशुओं में परिरक्षित वीर्य को मादा की योनि में सूई से प्रविष्ट कराकर अंडे को निषेचित करने की विधि क्या कहलाता है?

उत्तर:- कृत्रिम वीर्य सेचना

 

प्रश्न:25 पशुधनों को दिए जानेवाले हरे चारा के किन्हीं दो किस्मों के नाम लिखें?

उत्तर:- रोड्स घास, सूडान घास।

 

प्रश्न:26 पशुधनों में बैक्टीरिया से होनेवाले किन्हीं दो रोगों के नाम लिखें।

उत्तर:- क्षयरोग, एंथ्रेक्स।

 

प्रश्न:27  आर्थिक लाभ के लिए कुक्कुटों का पालन क्या कहलाता है?

उत्तर:- कुक्कुटपालन कहलाता है।

 

प्रश्न:28 आर्थिक मांस के उत्पादन के उद्देश्य से मुर्गियों के कौन से नस्ल का सामान्यतः पालन किया जाता है?

उत्तर:- रॉक आस्ट्रालॉर्प, ब्लैक माइनोको।

 

प्रश्न:29  बड़े आकार की ज्यादा संख्या में अंडे देनेवाली मुर्गियों की काई दो नस्लों के नाम लिखें।

उत्तर:- ILS-82,HH260 तथा B-77

 

प्रश्न:30  मुर्गियों के अतिरिक्त अंडे प्राप्त करने के लिए कुक्कुटो के कौन-कौन से प्रकार का पालन किया जाता है?

उत्तर:- असील, बसरा, कोचीन, ब्रह्म, चिटगाँव इत्यादि।

 

प्रश्न:31 हमारे देश में स्थित ऐसे दो स्थानों के नाम बताएँ जहाँ राष्ट्रीय कुक्कुट-प्रजनन फॉर्म चलाए जा रहे हैं?

उत्तर:- भुवनेश्वर, मुंबई, चंडीगढ़।

 

 प्रश्न:32 मुर्गीपालकों को कुल लागत खर्च का करीब कितने प्रतिशत मुर्गियों की खुराक पर खर्च करना चाहिए?

उत्तर:- 70%

 

प्रश्न:33  कुक्कुटों को होने वाले एक संक्रामक रोग का नाम लिखें।

उत्तर:- रानीखेत।

 

प्रश्न:34 विज्ञान की वह शाखा जिसका. सबंध मछली उद्योग से है, क्या कहलाता है?

उत्तर:- पीसीकल्चर या मत्स्यपालन का फिश फार्मिंग।

 

 प्रश्न:35 मत्स्यकी के अंतर्गत मछलियों के अतिरिक्त पाले जानेवाने किन्हीं दो जंतुओं के नाम लिखेंl

उत्तर:- झींगा, महाचिंगटा

 

 प्रश्न:36 जलीय पौधों तथा जंतुओं का पालन करना क्या कहलाता है?

उत्तर:- जलीय संवर्धन कहलाता है।

 

प्रश्न:37 कुल मछली उत्पादन के क्षेत्र में भारत का पूरे विश्व में कौन-सा स्थान है?

उत्तर:- सातवाँ स्थान है।

 

प्रश्न:38 समुद्री मछलियों तथा कवचीय मछलियों का उत्पादन एवं संवर्धन किस कार्यक्रम के अंतर्गत किया जाता है।

उत्तर:- समुद्री मत्स्यकी कार्यक्रम के अंतर्गत।

 

प्रश्न:39  आर्थिक महत्व वाली तीन प्रकार के समुद्री मछलियों का नाम बताएँ।

उत्तर:- सार्डिन, एनकोभीज, सीयरफिश, टूना इत्यादि आर्थिक महत्व की समुद्री मछलियाँ हैं।

 

प्रश्न:40 संद्रित मोतियों का उत्पन्न किस जलीय जंतु की सहायता से किया जाता है? 

उत्तर:- ऑएस्टर नामक जलीय जंतुओं का संवर्धन कर मोतियों का उत्पादन किया जाता है।

 

प्रश्न:41 मछलियों के कई प्रजा का एक ही तालाब में एक ही समय किए जानेवाले संवर्धन क्या कहलाता है?

उत्तर:- मिश्रित मछली संवर्धन।

 

प्रश्न:42  मछलियों में पिट्यूटरी हार्मोन की सूई लगाकर युग्मक प्राप्त करने की विधि व्या कहलाती है?

उत्तर:- प्रेरित प्रजनन।

 

प्रश्न:43 मधुमक्खी पालन के लिए व्यवहार में आनेवाले बक्से क्या कहलाते हैं?

उत्तर:- मधुमक्खीपेटिका।

 

प्रश्न:44 बकरियों की दो प्रजातियों का नाम लिखें।

उत्तर:- बकरियों की दो प्रजातियाँ इस प्रकार हैं- (i) जमुना परी नस्ल

(ii) हिमालयन नस्ल।

 

 

                                                                                -:  लघु उत्तरीय प्रश्न  :-

 

प्रश्न:1  पशुपालन की परिभाषा दें।

उत्तर:- पशुपालन विज्ञान की वह शाखा है जिसके अन्तर्गत पालतू पशुओं के भोजन, आवास, स्वास्थ्य, प्रजनन आदि पक्षों का अध्ययन किया जाता है।

 

प्रश्न:2  उपयोगिता के आधार पर पालतू पशुओं के वर्गों का उल्लेख उदाहरण के साथ करें।

उत्तर:- उपयोगिता के आधार पर पालतू पशुओं के वर्गों का वर्णन इस प्रकार है-

(i) पशुधन    (ii) कुक्कुट पालन    (iii) मत्स्य पालन     (iv) मधुमक्खी पालन

(i) पशुधन – पशुधन का पालन-पोषण आर्थिक लाभ के लिये किया जाता है। जैसे—दूध, , चमड़ा आदि के उत्पादन तथा आर्थिक विकास के लिये उनके श्रम का उपयोग करने के उद्देश्य से किया जाता है। उदाहरण-गाय, भैंस, बैल, साँढ़, बकरी इत्यादि।

(ii) कुक्कुट पालन– कुक्कुटों का पालन अण्डे तथा मांस के लिये किया जाता है। इनमें प्रचुर मात्रा में प्रोटीन पायी जाती है। उदाहरण—मुर्गी, बत्तख, टर्की तथा हंस इत्यादि।

(iii) मत्स्य पालन – मछली का पालन पौष्टिक भोजन के अतिरिक्त तेल, उर्वरक जैसे अन्य उपयोगी पदार्थ के लिये किया जाता है। उदाहरण—मछली (रोहू, कतला, हिलसा तथा सार्डी), झींगा, केकड़ा, लॉब्सटर इत्यादि।

(iv) मधुमक्खी पालन – मधुमक्खी पालन आर्थिक लाभ के लिये किया जाता है जिससे शहद तथा मधुमोम प्राप्त होते हैं। उदाहरणमधुमक्खी।

 

 प्रश्न:3 पशुपालन के अध्ययन के किन-किन क्षेत्रों में सुधार लाया जा सकता है ?

उत्तर:- पशुपालन के अध्ययन में निम्नलिखित क्षेत्रों में सुधार लाया जा सकता है-

(i) दुग्ध उत्पादन- दुधारू पशुओं की अत्यधिक संख्या होने के बावजूद हमारे देश में दूध का उत्पादन संतोषजनक नहीं है। हमारे देश में एक गाय औसतन करीब 200 kg दूध प्रति वर्ष देती है, जबकि यह औसत आस्ट्रेलिया और नीदरलैण्ड में 3500 kg तथा स्वीडन में 3000 kg प्रतिवर्ष है। अत: पशुपालन विज्ञान के अध्ययन से उन्नत नस्ल के अधिक दुधारू पशु प्रजनन के द्वारा प्राप्त किये जा सकते हैं। उनके रख-रखाव की उचित व्यवस्था की जा सकती है।

(ii) मांस उत्पादन- जनसंख्या के अनुरूप भोजन की बढ़ती आवश्यकता की पूर्ति के लि अधिक पुष्ट, मांसल तथा जल्दी बढ़नेवाली नस्ल की मुर्गियाँ प्रजनन के द्वारा प्राप्त की जा सकती हैं। इसी प्रकार इच्छित गुण वाले, उन्नत नस्ल के भेड़, बकरी, सूअर आदि मांस-उत्पादक पशुओं को प्रजनन के द्वारा पशुविज्ञान के अध्ययन से प्राप्त किया जा सकता है। हमारे देश में प्रति व्यक्ति भोजन के रूप में मांस की वार्षिक खपत सिर्फ 131g है जबकि अमेरिका में यह 1318 kg है।

(iii) अण्डा उत्पादन – जनसंख्या के अनुरूप हमारे देश में अण्डे की खपत दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। बढ़ते माँगों की पूर्ति के लिये अण्डा देनेवाली उन्नत किस्म की मुर्गियाँ प्रजनन के द्वारा प्राप्त की जाती हैं। हमारे देश में भोजन के रूप में अण्डे की प्रति व्यक्ति वार्षिक खपत मात्र 6 है जबकि अमेरिका में यह 295 है।

(iv) पछली उत्पादन- हमारे देश में मृदु जल की मछलियों के उत्पादन बढ़ाने की संभावन बहुत अधिक है। इस विज्ञान के अध्ययन से अण्डे से बच्चे का सफल निष्कासन, मछलियों आकार में समुचित वृद्धि, उनका उचित रख-रखाव, रोगों से बचाव आदि संबंधित बातें सीखी जा सकती है।

(v) पशुओं के मल-मूत्र का समुचित उपयोग – हमारे देश में गोबर का उपयोग सामान्यत: जलावन के रूप में किया जाता है। पशुओं के मल-मूत्र से बायोगैस का उत्पादन हो सकता है। इनका उपयोग खाद के रूप में भी किया जा सकता है।

(vi) कार्य क्षमता में बढ़ोतरी – पश्चिमी देशों की अपेक्षा हमारे देश के पालतू पशुओं में कार्य करने की क्षमता बहुत कम है। पशुपालन के सिद्धांतों का सही अनुपालन कर ऐसे पालतू पशुओं को कार्यक्षमता बढ़ायी जा सकती है।

(vi) ऊन उत्पादन – अन्य ऊन उत्पादक देशों की तुलना में हमारा देश बहुत पीछे है। पशुपालन के सिद्धांतों और तकनीक का इस्तेमाल कर ऊन-उत्पादक भेड़ों, अंगोरा किस्म के खरगोश को नस्ल सुधार कर ऊन का उत्पादन बढ़ाया जा सकता है।

 

प्रश्न:4 भारतीय गायों और भैंसों की प्रमुख प्रजातियाँ कौन-कौन सी हैं ?.

उत्तर:- भारतीय गायों की प्रमुख प्रजातियाँ निम्नलिखित हैं- (i) साहीवाल (ii) गीर (iii) रेडसिंधी (iv) थर्पाकर (v) हरयानवी।

भारतीय भैंसों की प्रमुख प्रजातियाँ निम्नलिखित हैं-(i) नागपुरी, (ii) सुर्ती, (iii) नीली-रवि, (iv) मेहसाना, (v) जाफराबादी।

 

प्रश्न:5 रुक्षांश क्या है ? ये पशुओं को कैसे प्राप्त होते हैं ?

उत्तर:- रुक्षांश पशुधन के लिये एक आहार है। इसमें पोषक तत्व काफी कम पाये जाते हैं। परन्तु पेट भरने के लिये तथा आहारताल के समुचित कार्य के लिये आहार में इनकी उचित मात्रा में होना आवश्यक है। ये पशुओं को भूसा, चोकर, चारा, जैसे ज्वार, बाजरा, रागि, मकई, फली, जैसे बरसीम, लूसर्न, लोबिया आदि से प्राप्त होते हैं।

 

प्रश्न:6 हमारे देश में दूध का औसत उत्पादन कम होने का क्या कारण है?

उत्तर:- हमारे देश में दूध का औसत उत्पादन बहुत कम है। इसका मुख्य कारण दुधारू पशु को दिये जानेवाला निम्न स्तर का आहार है। दुधारू पशु के आहार में हरा चारा का होना अत्यंत आवश्यक है। हरा चारा में विटामिन A की बहुलता रहती है। इसमें एक रंजित पदार्थ कैरोटिन होता है। यही कैरोटिन आँत और यकृत में पहुंचकर विटामिन A में परिवर्तित हो जाता है जिससे आवश्यकतानुसार शरीर को पौष्टिक तत्व मिलता रहता है। इसके अतिरिक्त पर्याप्त मात्रा में हरे चारे तथा पेयजल का न होना, निम्नस्तरीय देशी नस्ल के दुधारू पशु का जमावड़ा न होना तथा उन्नत नस्लों के दुधारू पशुओं का न होना, दूध के औसत उत्पादन को और देशों की तुलना में हमारे देशों की तुलना में बहुत कम है।

 

प्रश्न:7 दुधारू पशुओं को रोगाणुओं से होनेवाले प्रमुख रोगों तथा उनके लक्षणों का उल्लेख करें।

उत्तर:-

दुधारू पशुओं को रोगाणुओं से होने वाले प्रमुख रोग हैं—

(i) खुर एवं मुंह के रोग

(ii) चेचक

(iii) क्षयरोग

(iv) एंथ्रेक्स

(v) रिंगवर्म।

उपर्युक्त रोगों के लक्षणं इस प्रकार हैं-

(i) खून एवं मुँह के रोग वायरस द्वारा फैलते हैं। इसके अन्तर्गत खुर एवं मुँह में छाले, अधिक लार का बनना, भूख न होना, सुस्ती, उच्च ज्वर के साथ कैंपकपी इत्यादि लक्षण होते हैं।

(ii) चेचक भी वायरस द्वारा दुधारू पशुओं में होते हैं। इसके अन्तर्गत शरीर पर छोटे-छोटे

दाने तथा उच्च ज्वर इसके प्रमुख लक्षण हैं।

(iii) क्षयरोग बैक्टीरिया द्वारा दुधारू पशुओं में होते हैं। इसके अन्तर्गत धन, हाथ, फेफड़ा संक्रमित होते हैं। साथ-ही-साथ ज्वर इत्यादि भी दुधारू पशुओं में इसके लक्षण होते हैं।

(iv) एंधेक्स भी बैक्टीरिया द्वारा दुधारू पशुओं में होने वाले रोग हैं। इसके अन्तर्गत पशुओं का शरीर फूल जाता है, बुखार रहता है तथा दूध में कमी हो जाती है।

(v) रिंगवर्म कवक द्वारा दुधारू पशुओं में फैलते हैं। इसके प्रमुख लक्षणों में दुधारू पशुओं में खुजली का पाया जाना है।

 

प्रश्न:8 कृत्रिम वीर्य सेचन के लाभ क्या हैं?

उत्तर:- कृत्रिम वीर्य सेवन के लाभ निम्नलिखित हैं-

(i) विधि से अधिक उत्पादन वाले उच्च नस्लों के पशुओं (जैसे—दुधारू गाय- -भैंस, मुर्गियाँ) का विकास होता है।

(ii) पशुओं के प्रजनन की यह एक सस्ती विधि है। जैसे एक साँढ़ के वीर्य से करीब 3000 गायों को निषेचित किया जा सकता है।

(iii) परिरक्षित वर्ग को सुगमता से दूसरे सुदूर स्थानों पर ले जाया जा सकता है।

(iv) यह ज्यादा स्वास्थ्यकर तथा भरोसे योग्य विधि है।

(V) इस विधि के द्वारा उन्नत नस्ल का परिरक्षित वीर्य सालोंभर हर जगह उपलब्ध हो सकते हैं।

(vi ) इसके द्वारा विदेशों से उन्नत नस्लों के वीर्य आयात कर देशी किस्मों के पशुओं के नस्ल का सुधार किया जाता है।

 

प्रश्न:9 अण्डा देनेवाली मुर्गियों का आहार कैसा होना चाहिये?

उत्तर:- अण्डा देनेवाली मुर्गियों के आहार में खनिज का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। शरीर और अण्डे के वर्धन तथा अण्डे की खोल की बनावट के लिये कई प्रकार की खनिजों की जरूरत है। इनमें कैल्सियम और फॉस्फोरस प्रमुख हैं। खनिज की पूर्ति के लिये, बोनमील, सीत या पत्थर का चूर्ण तथा नमक इनके भोजन में दिया जाना चाहिये।

 प्रश्न:10 हमारे देश में अधिक दूध देनेवाली संकर नस्ल के तीन गायों का नाम लिखें। इन्हें किन-किन नस्लों के संकरण से विकसित किया गया है ?

उत्तर:- संकर नस्ल की तीन गायें करण स्विस, करन फ्राइस तथा फ्रिसवाल हैं। करन स्विस को भारतीय नस्ल के साहीवाल तथा स्वीट्जरलैंड की नस्ल ब्राउन स्विस से विकसित किया गया है। करन फ्राइस को भारतीय नस्ल थपीकर तथा हॉलैंड की नस्ल की प्रजाति हॉल्सटाइन-फ्रीसिऑन से विकसित किया गया है। फ्रिसवाल को भारतीय नस्ल के साहीवाल तथा हॉलैंड की नस्ल हॉल्सटाइन-फ्रीसिऑन से विकसि

किया गया है l

 

प्रश्न:11  हमारे देश में विकसित की गयी संकर नस्ल की मुर्गियाँ कौन-कौन-सी हैं ? इनकी विशेषताओं का उल्लेख करें।

उत्तर:- हमारे देश में विकसित की गयी संकर नस्ल की, ज्यादा उत्पाद देनेवाली मुर्गियाँ ILS-82, HH-260 तथा B-77 हैं। इनमें से ILS-82 तथा 8-77 तकरीबन 200 अण्डे प्रतिवर्ष तथा HH-260 प्रतिवर्ष 260 तक अण्डे देती है।

विशेषतायें – संकर नस्लकी मुर्गियों में केवल अण्डजनन क्षमता ही अधिक नहीं होती है,बल्कि इनकी खुराक भी कम होती है। एक सामान्य देशी नस्ल की मुर्गी 12 अण्डा देने के लिये जहाँ 6 kg भोजन खाती है। वहाँ ऐसी संकर नस्ल वाली मुर्गी मात्र 2 kg भोजन करती है। 1kg मांस देनेवाली देशी मुर्गी इस अवस्था तक की वृद्धि के लिये जहाँ 5-6 kg तक भोजन करती है वहाँ ठीक ऐसी ही अवस्था तक की वृद्धि के लिये संकर नस्ल की उन्नत किस्म की मुर्गी मात्र 2-31g भोजन करती है। संकर नस्ल वाली मुर्गियाँ शीघ्र परिपक्व हो जाती हैं तथा इनकी मृत्यु-दर भी कम है।

 

प्रश्न:12 लेअर तथा बौलर मुर्गियों की क्या विशेषतायें हैं ?

उत्तर:- लेअर मुर्गियाँ ज्यादा अण्डे देनेवाली होती हैं, जबकि ब्रौलर मुर्गियों से अधिक मांस प्राप्त होते हैं।

 

प्रश्न:13 मिश्रित मछली संवर्धन क्या है?

उत्तर:- मदुजलीय मछली उत्पादन में वृद्धि करने के उद्देश्य से मिश्रित मछली संवर्धन विधि अपनाई जानी चाहिये। मिश्रित मछली संवर्धन विधि में कई प्रजातियों की मछलियों का संवर्धन एक तालाब में एक ही समय किया जाता है।

 

प्रश्न:14 व्यावसायिक दृष्टिकोण से मधुमक्खियों की चार प्रजातियाँ कौन-कौन-सी हैं ?

उत्तर:- व्यावसायिक स्तर पर मधु-उत्पादक के लिये मधुमक्खियों की चार प्रजातियाँ निम्नलिखित हैं-

(i) सामान्य भारतीय मधुमक्खी-एपिस सेरना इंडिका

(ii) शैव मधुमक्ख-एपिस डोरसेटा

(iii) लिटिल मधुमक्खी-एपिस फ्लोरी

(iv) इटली मधुमक्खी-एपिस मेलीफेरा।

 

 प्रश्न:15  कार्यकर्ता या सेवक मधुमक्खियाँ शहद का निर्माण कैसे करती है।

उत्तर:- कार्यकर्ता द्वारा एकत्र किये गये परागकण तथा मकरंद ही इनके भोजन हैं। कार्यकर्ता के आहारनाल में परागकण तथा मकरंद में कई प्रकार के जीव रासायनिक परिवर्तन के बाद शहद या मधु का निर्माण होता है। इसी मधु को कार्यकर्ता छत्ते में संचित रखते हैं।

 

 प्रश्न:16 मधुमोम हमारे लिये किस प्रकार उपयोगी हैं,

उत्तर:- मधुमोम हमारे लिये कई प्रकार से उपयोगी होता है। जैसे इसका व्यवहार प्रसाधन सामग्री, मोमबत्ती, विभिन्न प्रकार के पॉलिश, दाढ़ी बनाने के उपयोग में आनेवाले क्रीम के उत्पादन में किया जाता है।

 

 प्रश्न:17 अनाजों के उत्पादन बढ़ाने की क्या आवश्यकता है ?

उत्तर:- हमारे देश की जनसंख्या जिस रफ्तार से बढ़ रही है, उस रफ्तार से खाद्य-पदार्थों का उत्पादन नहीं हो पा रहा है। अभी हमारी जनसंख्या सौ करोड़ से ज्यादा है एवं यह अगर इसी गति से बढ़ती रही तो 2020 तक हमारी आबादी लगभग 134 करोड़ हो जाएगी। इतनी बड़ी आबादी की जरूरतों को पूरा करने के लिये लगभग 241 मिलियन टन अन्न की आवश्यकता हर वर्ष पड़ेगी। लेकिन हमारे पास अन्न उत्पादन के लिये भूमि सीमित है। अत: हमें अनाजों के उत्पादन को बढ़ाने की आवश्यकता है।

 

प्रश्न:18 मौसम के आधार पर फसल कितने प्रकार के होते हैं ?

उत्तर:- मौसम के आधार पर फसल तीन प्रकार के होते हैं-

(i) खरीफ फसल (Kharif crop ):- ऐसी फसलें जिन्हें हम वर्षा ऋतु में उगाते हैं, खरीफ फसल कहलाती है जैसे—धान, ज्वार, बाजरा, मकई, कपास, ईख, सोयाबीन, मूंगफली आदि। इन्हें जून-जुलाई में बोया जाता है तथा फसल की कटनी अक्टूबर के आस-पास होती है।

(ii) ( रबी फसल (Rahi Crops –) :- जो फसलें शीत ऋतु में उगायी जाती हैं उसे रबी फसल कहते हैं, जैसे—गेहूँ, चना, तीसी, मटर, सरसों, आलू, अलसी आदि। इनकी बोआई अक्टूबर माह में एवं कटनी मार्च में होती है।

(iii) ग्रीष्य फसल (Summer Crop) :– दलहन (उरद, मूंग) की बोआई मार्च से बीच गर्मी के महीनों में की जाती है। जिस क्षेत्र में सिंचाई की अच्छी व्यवस्था रहती है, वहाँ धान, मकई, आलू एवं मूंगफली भी ग्रीष्म फसल की तरह लगाये जाते हैं।

 

प्रश्न:19 समुन्नत किस्मों के एक मुख्य गुण एवं एक मुख्य दोष को लिखें।

उत्तर:-

समुन्नत किस्मों के एक मुख्य गुण-

उच्च उपज (High Yield):- समुन्नत किस्मों से पारम्परिक किस्मों की अपेक्षा बहुत अधिक पैदावार मिलती है। इसलिये इन किस्मों को उच्च उपज वाली किस्में या समुन्नत प्रजातियाँ कहते हैं।

समुन्नत किस्मों के एक मुख्य दोष-

उच्च कृषीय निवेश (High agricultural inputs):- समुन्नत किस्मों के इस्तेमाल से फसल तैयार करने के लिये पारम्परिक किस्मों के मुकाबले अधिक कृषीय निवेशों की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिये इन किस्मों को अपेक्षाकृत अधिक उर्वरक, अधिक सिंचाई आदि।

 

प्रश्न:20 संकरण के लिये किस प्रकार के जनकों का चयन किया जाता है।

उत्तर:- संकरण के लिये फसलों के उपयोगी गुणों जैसे उच्च उत्पादन, उत्पादन की गुणवत्ता, उर्वरक के प्रति अनुरूपता, रोग-प्रतिरोधक क्षमता आदि प्रकार के जनकों का चयन किया जाता है।

 

 प्रश्न:21 वृहत् पोषक क्या है और इन्हें वृहत् पोषक क्यों कहते हैं ?

उत्तर:- चे तत्व जो पौधों की वृद्धि के लिये अत्यन्त आवश्यक होते हैं उन्हें वृहत् तत्व कहते हैं। ये पोषक तत्व बहुत अधिक मात्रा में आवश्यक है। अतः इन्हें वृहत् पोषक तत्व कहते हैं।

 

प्रश्न:22 पौधे अपना पोषक किस प्रकार प्राप्त करते हैं ?

उत्तर:- पौधे पोषक तत्वों को खाद तथा उर्वरकों से प्राप्त करते हैं।

 

 प्रश्न:23  रासायनिक उर्वरक का उपयोग प्राकृतिक उर्वरक की तुलना में आसान क्यों है ?

उत्तर:- प्राकृतिक उर्वरक में किसानों को इसके परिवहन और भण्डारण में कठिनाई होती है। साथ ही इसमें विशिष्ट पादप पाषकों की काफी कमी होती है। जिन फसलों में नाइट्रोजन, पोटाश, फॉस्फोरस आदि की आवश्यकता होती है। जैसे—गेहूँ, धान आदि उनमें प्राकृतिक खाद बहुत लाभप्रद नहीं होता, अत: रासायनिक उर्वरकों का उपयोग करना पड़ता है जो खास पोषक तत्व प्रदान करने वाले होते हैं। अतः रासायनिक उर्वरक का उपयोग प्राकृतिक उर्वरक की तुलना में आसान होता है।

 

 प्रश्न:24  कार्बनिक खेती में क्या होता है?

उत्तर:- खेती की वह पद्धति जिसमें रासायनिक उर्वरकों, पीड़कनाशकों तथा अन्य रसायनों का उपयोग कम-से-कम या बिल्कुल नहीं कर कार्बनिक पदार्थों का उपयोग हो, कार्बनिक खेती (organic farming) कहलाती है। इस प्रकार की खेती में पेड़-पौधों के अपशिष्ट, जानवरों के मल-मूत्र, कृषि-अपशिष्ट आदि कार्बनिक पदार्थों के अपघटन द्वारा मृदा की उर्वरता बढ़ाई जाती है। इसमें नील-हरित शैवाल का संवर्धन किया जाता है जो वायु से नाइट्रोजन गैस को ग्रहण कर नाइट्रोजनी यौगिकों में परिवर्तित कर जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ाता है।

 

 प्रश्न:25  फसलों के लिये सिंचाई का क्या महत्व है ?

उत्तर:- सिंचाई कृषि को वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा हम विभिन्न स्रोतों से समय-समय पर खेतों में लगी फसलों के जल की आवश्यकता की पूर्ति करते हैं। ताकि फसल सूखने न पाये और पैदावार अच्छी और भरपूर हो। अच्छी फसल और भरपूर पैदावार के लिये उचित और सामाजिक सिंचाई परम आवश्यक है।

भारतीय कृषि मानसून का जुआ है। हमारे देश में अधिकांश कृषि भूमि की सिंचाई वर्षा पर ही आधारित है। जिस वर्ष वर्षा अच्छी और समय पर हुयी तो भरपूर फसल तथा पैदावार होती है। ठीक इसके विपरीत जिस वर्ष अच्छी तथा समय पर वर्षा नहीं होती है फसल तथा पैदावार भी प्रभावित होते हैं। वर्षा की कमी के कारण उसकी सिंचाई के लिये विभिन्न साधनों का उपयोग किया जाता है जिनमें कुआँ एवं नलकूप, नहर जाल, तालाब इत्यादि के जरिये सिंचाई की जाती है। अत: खेती के लिये सिंचाई बहुत ही आवश्यक है।

 

प्रश्न26  नदी जल उठाव प्रणाली में क्या होता है ?

उत्तर:- नदी जल उठाव प्रणाली में उन क्षेत्रों में जहाँ नहर में जल प्रवाह पर्याप्त नहीं होता है उन क्षेत्रों के आस-पास की नदियों को वहाँ से सीधे जल को खींचकर सिंचाई की जाती है।

 

प्रश्न:27  मिश्रित फसल उत्पादन एवं अन्तरफसल उत्पादन में क्या अन्तर है ?

उत्तर:-

1. फसल असफलता को कम करना इसका प्रति इकाई क्षेत्रफल पैदावार बढ़ाना इसका उद्देश्य है।

2. दो फसलों के बीच बोने से पहले मिला इसमें मिलाये नहीं जाते हैं।

दिये जाते हैं।

3. इसमें पक्तियाँ नहीं बनायी जाती हैं। इसमें पंक्तियाँ बनायी जाती हैं।

4. इसमें फसल-विशेष में उर्वरक लगाना इसमें उर्वरक आवश्यकतानुसार पंक्ति में कठिन है।

लगाया जाता है।

5. इसमें फसल अलग काटना एवं बिनाई इसमें फसलों की कटाई व बिनाई अलग-अलग संभव नहीं है। संभव है।

 

 प्रश्न:28 फसल चक्रण के लिये दलहन पौधों का चुनाव क्यों होता है?

उत्तर:- फसल चक्रण द्वारा दलहन फसल का चुनाव इसलिये किया जाता है कि मृदा में पोषक तत्वों की पूर्ति रहे। क्योंकि दलहन पौधों की जड़ों में राइजोबियम जीवाणु के गाँठ मौजूद होते हैं। ये वायुमण्डलीय नाइट्रोजन में स्थिर कर उन्हें मिट्टी में पुनः प्रतिस्थापित कर देते हैं, जो फसल के लिये अनिवार्य पोषक तत्व हैं।

 

प्रश्न:29 फसल सुरक्षा से क्या तात्पर्य है ?

उत्तर:- फसल पौधों की खेतों में खरपतवार, कीटों, जीवाणु, कवक आदि द्वारा भिन्न-भिन्न प्रकार से हानि होती है। समस्त रोगाणुओं को सम्मिलित रूप से पीड़क या पेस्ट्स (Pests) कहते हैं। अत: फसल पौधों को विभिन्न तरीकों से पीड़कों एवं अन्य हानिकारक जीवों से मुक्त रखने की प्रक्रिया को फसल सुरक्षा कहते हैं।

 

प्रश्न:30 खेतों में खरपतवारों को फसलों से मुक्त करना क्यों जरूरी है ?

उत्तर:- खेतों में खरपतवारों को फसलों से मुक्त करना अत्यन्त आवश्यक है। क्योंकि इसके कारण फसल की वृद्धि पर बहुत ही प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और पैदावार भी अपेक्षाकृत काफी घट जाती है। अत: अच्छी उपज के लिये प्रारंभिक अवस्था में ही खरपतवार को खेतों से निकाल देना चाहिये।

 

प्रश्न:31 पीड़कनाशी क्या है ? खेतों में इसका उपयोग क्यों करते हैं ?

उत्तर:- वे विषैले रसायन जो पीड़कों को समाप्त करने या इन पर नियंत्रण के लिये उपयोग किये जाते हैं, पीड़कनाशी कहलाते हैं। कवकनाशी, कीटनाशी, कृन्तकनाशी सभी सम्मिलित रूप में पीड़कनाशी कहलाते हैं।

पीड़कनाशी से फसलों की रोगों से सुरक्षा की जाती है। जैसे—सूक्ष्म जीव (वायरस, जीवाणु, कवक आदि) कीटपीड़क भी फसलों को काफी हानि पहुंचाते हैं। इन कीटपीड़कों को पीड़कनाशी द्वारा समाप्त किया जा सकता है। साथ ही फसलों को रोगमुक्त कर उसके बढ़ने में मददगार होते हैं।

 

 प्रश्न:32 नमी और तापमान खाद्यान्नों को प्रभावित कैसे करते हैं ?

उत्तर:- खाद्यान्नों में नमी की मात्रा अधिक-से-अधिक 14% होनी चाहिये। परिपक्व खाद्यान्न में 16-18% तक नमी रहती है, जिसे भण्डारण के पहले सुखाकर 14% से कम करना जरूरी है। अगर खाद्यान्न में नमी अधिक रह गयी तो सूक्ष्मजीवों, कवकों आदि की वृद्धि और क्रियाशी  गति बढ़ जाती है जो हानिकारक है। इससे अनाजों के वजन और अंकुरण क्षमता में कमी आती है। उत्पादन की कीमत एवं गुणवत्ता का हास होता है।

खाद्यान्नों का सुरक्षित भण्डारण अपेक्षाकृत कम तापमान पर होना चाहिये अन्यथा सूक्ष्मजीव एवं कीटों की वृद्धि एवं क्रियाशीलता बढ़ जाती है। फलस्वरूप खाद्यान्न अपनी गुणवत्ता खो देते हैं और मानव के उपयोग के योग्य नहीं रह जाते। अत: नमी और तापमान खाद्यान्नों के भण्डारण में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

 

 

                                                                        -:  दीर्घ उत्तरीय प्रश्न  :-

 

 प्रश्न:1  मिट्टी की उर्वरता बनाये रखने के लिये खाद तथा उर्वरक के उपयोग की तुलना कीजियो

उत्तर:- यदि हम खेत में केवल खाद डालते हैं तो खेत की उर्वरा शक्ति धीरे-धीरे बढ़ती है, लेकिन तुरंत असर नहीं होता। लेकिन उर्वरा शक्ति लम्बे समय तक रहती है। यदि केवल उर्वरकों का ही प्रयोग किया जाता है तो फसल का उत्पादन अधिक होगा, क्योंकि उर्वरक तुरंत ही पोषक तत्व प्रदान कर देते हैं। लेकिन उर्वरा शक्ति लम्बे समय तक नहीं बनी रहती है।

 

प्रश्न:2 पादप-संकरण किस प्रकार फसल की नयी किस्में विकसित करने में सहायक होता है?

उत्तर:- पादप-संकरण के फलस्वरूप विकसित नवीन समुन्नत फसल किस्म को संकर या हाइब्रिड कहते हैं। संकर पौधों में दोनों जनक पौधों के वांछित गुणों का भली-भाँति सम्मिश्रण होता है। संकर पौधे अपने जनक पौधों से गुणों में सर्वथा भिन्न नहीं होते वरन् समुन्नत भी होते हैं। अत: संकर पौधे को फसल की समुन्नत किस्में कहते हैं। पादप-संकरण देश के फसल-सुधार कार्यक्रम का बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा है।

समुन्नत किस्म के फसलों की प्राप्ति के लिये विभिन्न उपयोगी गुणों, जैसे. उच्च उत्पादन, उत्पादन की गुणवत्ता, उर्वरक के प्रति अनुरूपता, रोग प्रतिरोधक क्षमता आदि का चयन किया जाता है। इन गुणोंवाले जनकों के बीच संकरण करवाया जाता है जो अन्तराकिस्मीय (पौधों की विभिन्न स्पीशीज के बीच होनेवाला संकरण), अन्तरास्पीशीज (पौधों के दो विभिन्न जेनेरा के बीच होनेवाला संकरण) हो सकता है। इन संकरणों के अलावे ऐच्छिक गुणों के लिये जिम्मेवार DNA के खण्ड या जीन को एक पौधे से दूसरे पौधे में प्रतिरोपित कर भी फसलों की नयी किस्में विकसित की जाती हैं। इसके फलस्वरूप ऐसी आनुवंशिकीय रूपांतरित फसल की प्राप्ति हो सकती है जो मौजूद वातावरण तथा जरूरतों के अनुकूल हो। अतः पादप संकरण फसल की नयी किस्म विकसित करने में सहायक होता है।

 

 प्रश्न:3  समुन्नत किस्मों के गुण और दोषों की तुलना करें।

उत्तर:- फसल की समुन्नत किस्मों के गुण-

(i) उच्च उपज (High yield) – समुन्नत किस्मों से पारम्परिक किस्मों की अपेक्षा बहुत अधिक पैदावार मिलती है। इसलिये इन किस्मों को उच्च उपज वाली किस्में या समुन्नत कहते हैं।

(ii) पूर्व परिपक्वता (Early maturation) – संकर किस्में अपेक्षाकृत कम समय में तथा एक साथ पककर तैयार हो जाती हैं, इससे खेत जल्दी खाली हो जाते हैं और किसान उसमें दूसरी फसल लगाकर अतिरिक्त मुनाफा कमा सकता है।

(iii) खाद का बेहतर असर (Better response to fertilizers) – रासायनिक उर्वरकों का प्रभाव समुन्नत किस्मों पर अपेक्षाकृत काफी अधिक होता है, इसीलिये इनसे पैदावार भी बहुत अधिक मिलती है।

(iv) वांछित गुणों की उपलब्धता (Availability of desiredharacter)- चूंकि किरण के दौरान अच्छे गुणों वाले पौधों का चयन किया जाता है। अतः समुन्नत किस्मों में वांछित गुणों का सम्मिश्रण रहता है, जैसे रोगाणु प्रतिरोधी क्षमता, दाल में प्रोटीन की गुणवत्ता, तिलहन में तेल की गुणवत्ता आदि।

(v) बौनी प्रजातियाँ (Dwarf varieties)- समुन्नत किस्में प्रायः बौनी होती हैं, जिसके कारण ये अपेक्षाकृत अधिक मजबूत होती हैं, फलत: मौसम की प्रतिकूल स्थितियों, जैसे तेज हवा के झोंके, तेज बारिश आदि का सामना करने में ये अधिक सक्षम होती हैं। इसके अलावे बौने पौधे कम पोषकों का उपयोग करते हैं।

(vi) विस्तृत अनुकूलनशीलता (Wider adaptability)- समुन्नत किस्में भिन्न-भिन्न वातावरण के अनुकूल होती हैं और आसानी से अपने को बदलती हुयी परिस्थितियों के अनुरूप दाल लेती हैं।

फसलों की समुन्नत किस्मों के दोष-

(i) उच्च-कृषीय निवेश (High-agricultural inputs)- समुन्नत किस्मों के इस्तेमाल से फसल तैयार करने के लिये पारम्परिक किस्मों के मुकाबले अधिक कृषीय निवेशों की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिये इन किस्मों को अपेक्षाकृत अधिक उर्वरक, अधिक सिंचाई आदि चाहियेl

(ii) कम चारे की प्राप्ति (Less fodder)- समुन्नत किस्मों से देशी किस्मों की अपेक्षा कम चारा उपलब्ध होता है, क्योंकि ये छोटे आकार के होते हैं।

(iii) खरपतवार-नियंत्रण (Weed control)- इनमें खरपतवार-नियंत्रण की अधिक आवश्यकता पड़ती है।

 

प्रश्न:4  मिश्रित फसल उत्पादन के लिये फसलों के चयन में किन सिद्धांतों का पालन किया जाता है?

उत्तर:- एक ही भूखण्ड पर दो या ज्यादा फसल एक साथ मिलाकर उगाने की प्रथा मिश्रित फसल उत्पादन कहलाता है। इसमें एक ही भूखण्ड पर दो या दो से अधिक फसलों को साथ-साथ उगाया जाता है, जैसे गेहूँ और सरसों, मूंगफली और सूर्यमुखी, गेहूँ और चना, मकई और उर्दबीन, सोयाबीन और अरहर, जौ और चिक मटर आदि। इस प्रथा द्वारा फसल को पूर्ण विफलता से बचाया जाता है। मुख्य रूप से उन क्षेत्रों में इस प्रकार की खेती की जाती है जहाँ वर्षा की कमी रहती है। इसके अंतर्गत सामान्यतः धान्य फसल (cereal crop) के साथ फलीदार फसल (legumi- nous crop) के सिद्धान्त का चयन किया जाता है।

 

प्रश्न:5 फसल-चक्रण क्या है ? किस प्रकार यह मृदा की उर्वरता बनाये रखती है ?

उत्तर:- एक ही भूमि पर बदल-बदलकर अनुक्रम में फसल उगाने की प्रणाली को फसल-चक्रण कहा जाता है।

अनाज की फसल से मिट्टी के तत्वों की कमी हो जाती है। इसके लिये अगली फसल दाल की ठगानी चाहिये। क्योंकि दाल की जड़ों में ग्रंथियाँ या गाँठ पाई जाती हैं। इन गाँठों में राइजोबियम नामक जीवाणु पाये जाते हैं, जो वायुमण्डल की नाइट्रोजन को स्थिर करते हैं, अर्थात् नाइट्रोजन को नाइट्रोजन के यौगिकों में परिवर्तित करते हैं। इस प्रकार मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ जाती है, जो कि पौधों की वृद्धि के लिये एक आवश्यक वृहद् पोषक है।

 

प्रश्न:6 खरपतवार नियंत्रण के तरीकों की चर्चा करें।

उत्तर:- खरपतवार को निम्नलिखित तरीकों से नियंत्रित किया जाता है.

(i) यांत्रिक विधि- इसमें खरपतवार को खुरपी से, हाथ से, जोत से जलाकर तथा बाढ़ से निकाला जाता है।

(ii) कर्षण विधि- बीज तैयार करना, समय पर फसल बोना और फसलचक्र।

(iii) रासायनिक विधि- खरपतवारनाशक रसायनों, जैसे-इाजीन, 214-डी०, आइसो-प्रोट्यूरान इत्यादि का छिड़काव करके।

(iv) जैविक विधि – काँटेदार खरपतवार (नागफनी) को कोकीनीयल कीड़ों द्वारा तथा जलीय खरपतवार को फिश ग्रास कार्य द्वारा।

 

प्रश्न:7  भण्डारण के दौरान खाद्य पदार्थों को नुकसान पहुँचानेवाले विभिन्न जैविक और अजैविक कारकों का वर्णन करें।

उत्तर:- भण्डारण के दौरान खाद्य-पदार्थों को नुकसान पहुँचानेवाले विभिन्न जैविक और अजैविक कारक ये हैं-

जैविक कारक – खाद्य-पदार्थों के भण्डारण अवधि में सबसे अधिक नुकसान सूक्ष्मजीवों, कोट तथा जंतुओं से होता है। सूक्ष्मजीव जैसे खमीर, फफूंदी, कवक और जीवाणु के अलावे पीड़क कोट जैसे लाल अन्न-भृग, दाल-भंग, धान-घुन, मकड़े आदि पशु, जैसे चूहे, खरगोश, बकरी आदि एवं पक्षियों, जैसे गौरैया, तोता, मैना आदि द्वारा खाद्यान्नों की मुख्य रूप से क्षति होती है।

अजैविक कारक – भण्डार के मध्य खाद्यान्नों को प्रभावित करनेवाले कुछ प्रमुख अजैविक कारक निम्नलिखित हैं-

(i) नमी – खाद्यान्नों में नमी की मात्रा अधिक-से-अधिक 14% होनी चाहिये। परिपक्व खाद्यान में 16-18% तक नमी रहती है, जिसे भण्डारण के पहले सुखाकर 14% से कम करना जरूरी है। अगर खाद्यान्न में नमी अधिक रह गयी तो सूक्ष्मजीवों, कवकों आदि की वृद्धि और क्रियाशीलता की गति बढ़ जाती है, जो हानिकारक है। इससे अनाजों के वजन तथा अंकुरण क्षमता में कमी आती है। उत्पादन की कीमत एवं गुणवत्ता का ह्रास होता है।

(ii) तापमान – खाद्यान्नों का सुरक्षित भण्डारण अपेक्षाकृत कम तापमान पर होना चाहिये अन्यथा सूक्ष्मजीव एवं कीटों की वृद्धि एवं क्रियाशीलता बढ़ जाती है। फलस्वरूप खाद्यान्न अपनी गुणवत्ता खो देते हैं और मानव के उपयोग के योग्य नहीं रह पाते। W

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